विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
पाकिस्तान की आईएसआई और दाऊद ने भारत का सबसे भयावह बमकांड करवाया था। यह सब कहते हैं, लेकिन सच कुछ और ही है। आईएसआई को दाऊद पर भरोसा न था। उससे अधिक यकीन उन्हें भारतीय तस्कर मोहम्मद डोसा पर था।
डोसा का माल पाकिस्तान भी जाता था। उसकी पाक तस्करों में न केवल गहरी पैठ थी, अच्छी साख भी थी। मुंबई में बम धमाके करवाने के लिए डोसा से आईएसआई ने सबसे पहले संपर्क किया। डोसा ने टाइगर मेमन से कहा, फिर दाऊद भी साजिश में शरीक हुआ।
उन दिनों मुंबई की मीनारा मस्जिद के पास डोसा का दफ्तर था। वह दुबई में बैठता था। तस्करी का कामकाज वहीं से संचालित करता था। उसके लिए भारत में कामकाज टाइगर देखता था। डोसा का तस्करी का माल कच्छ में उतरता था।
सवाल ये है कि क्या आईएसआई अफसरान सीधे डोसा तक पहुंचे थे? …नहीं।
बमकांड की योजना लेकर आईएसआई के अफसरान पहले पाकिस्तान के कुख्यात तस्कर याकूब अब्दुल्ला से मिले। उसने अधिकारियों को मो. डोसा से मिलने की सलाह दी। बाद में उनकी बैठक भी तय की।
कहते हैं कि याकूब अब्दुल्ला ऐसा दुर्दांत अपराधी व तस्कर था, जिसका माल पकड़ा तो एक ही दिन में पाक कस्टम्स के १० अधिकारियों की हत्या करवाई थी। यही याकूब अब्दुल्ला मुंबई का असली गुनहगार है।
रॉ के इस अधिकारी को बड़ा मलाल रह गया कि याकूब का कुछ करवा नहीं सके-
‘ऐसे लोगों को अवाम से संगसार करवाना चाहिए।’
दाऊद का निकाह
साबिर की हत्या से दाऊद इस कदर बौखलाया और ऐसा अशांत हुआ कि उसने हलफ उठा लिया, जब तक बड़े भाई की हत्या का बदला नहीं लेगा, तब तक निकाह नहीं करेगा, हुआ भी ऐसा ही।
दाऊद ने भाई के बदले में ऐसी खूंरेंजी कर डाली कि चारों तरफ उसके नाम की दहशत छा गई। कोई उसके पास फटकने की जुर्रत न करता। ऐसे में कोई घर की बेटी भी दाऊद के घर में वैâसे देता भला। कोई लड़की भी उसके पास आने के बारे में सोच भी नहीं पाती थी। ऐसे में उसका जीवन संवारने का काम किसने किया?
इन हालात में एक बार फिर गुरु लल्लू जोगी काम आए। एक कश्मीरी लड़की दाऊद को पसंद करती थी। परिवार भी राजी था, लेकिन एक अड़चन थी। वो लड़की बेचारी दाऊद के गुस्सैल मिजाज और खूरेंजी से बड़ी खौफजदा थी। वह सोचती थी कि किसी दिन दाऊद का हश्र भी उसके बड़े भाई जैसा ही हुआ तो वो क्या करेगी? लल्लू ने बड़े प्यार से लड़की को समझाया। इस समझाइश का बड़ा अच्छा असर हुआ। लड़की दाऊद से निकाह के लिए राजी हो गई। फिर क्या था। निकाह हुआ। पूरे रस्मोें-रिवाज हुए। हर तरह से खुशियां मनीं। शादी हुई दमन के करीब ही उदवाड़ा गांव की एक वाड़ी में, जिसकी मिल्कियत भी लल्लू जोगी की थी।
गुजरात के इस इलाके में दाऊद की शादी में शहनाई से बारातियों की खातिरदारी तक पूरा इंतजाम लल्लू की देख-रेख में हुआ।
उस शादी की याद में डूबे बंदे ने चटकारा लेकर कहा:
– लल्लू भाई नाम का ही लल्लू था सेठ, काम में उसके जैसा खोपड़ी कोई नर्इं था।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)