विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
क्या ये संभव है कि किसी को ‘दरिया का कीड़ा’ कह जा सकता है? जब बेहद पढ़ाकू इंसान को ‘किताबी कीड़ा’ कहते हैं, तो समंदर (दरिया) के हर राज जानने वाले को ‘दरिया का कीड़ा’ क्यों नहीं कह सकते?
अमदाबाद के उमर मियां पंजू मियां बुखारी उर्फ मम्मू मियां का यही नाम सरमायादारों में मशहूर रहा है। उसे डी-कंपनी समेत तमाम गिरोहों, खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों में इसी नाम से पुकारा जाता है।
९३ बमकांड के लिए पोरबंदर तट के करीब सुनसान स्थान पर हथियार तस्करी व उतराई में मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने उसे गिरफ्तार किया था। मम्मू मियां पर टाडा लग चुका है। उसने कोसाबारा गांव में आरडीएक्स की लैंडिंग करवाई थी।
२६ नवंबर २००८ को मुंबई पर हुए भयावह आतंकी हमले में भी उससे पूछताछ हुई। उसके वकील मुश्ताक सैयद के मुताबिक, टाडा अदालत ने अमदाबाद अपराध शाखा को पूछताछ की इजाजत नहीं दी। अपराध शाखा अधिकारियों का मानना था कि आतंकी उसी समुद्री मार्ग से आए, जो तस्करी के लिए कराची से मुंबई के बीच आम इस्तेमाल में है। मम्मू को पाकिस्तान से गुजरात और महाराष्ट्र तक हर समंदरी रास्ते की पूरी जानकारी है। कई ऐसे रास्ते हैं, जो सामान्य व्यापारिक और सैन्य जहाज भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। मम्मू के बंदे इनका भी बेधड़क प्रयोग करते हैं।
पुलिस ने मम्मू को दुबई में दिसंबर २००४ में गिरफ्तार किया था। २००५ में भारत प्रत्यर्पण हुआ। ९३ बमकांड के एक दशक बाद वह पकड़ा गया। सबसे पहले उसे सब इंस्पेक्टर बीआर अगथ पर गोलीबारी के आरोप में पोरबंदर अदालत ने दोषी करार दिया। ७ साल की सजा लग गई। १९९३ में एक रात वह तस्करी का माल लेकर जा रहा था। उसे रोकने और गिरफ्तार करने की कोशिश पर मम्मू ने गोलीबारी कर दी, जिसमें इंस्पेक्टर अगथ की मौत हुई थी।
मम्मू को लैंडिंग के एक मामले में अमदाबाद अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। उस पर कई मामले आज भी जारी हैं। ‘दरिया का कीड़ा’ भले ही वो कहलाए, आज तो वह ‘जेल का कीड़ा’ बन कर रह गया है। अब वो कभी जेल के बाहर आ सकेगा या नहीं, कोई कह नहीं सकता।
उस कच्छी गुजराती बंदे ने पूरी कहानी सुना कर ठेठ डोंगरी स्टाइल के जुमला जड़ा:
– मम्मू भाई बोले तो पूरा कस्टम वाला जितना फटाका नहीं फोड़ा होएंगा, उतना वो दिवाली देखेला ए।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)