विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
अबू के चुनाव लड़ने की योजना पता चलते ही सीबीआई हरकत में आ गई। पुर्तगाल में सजा काटने के आधार पर उसका नामांकन रद्द करवाने की तैयारी शुरू हो गई। सीबीआई अधिकारियों ने कुछ लिखित जानकारी संबंधित मंत्रालयों और विभागों को भेजी और वह थी कि तीन साल से अधिक समय तक अबू ने मोनिका के साथ नकली पासपोर्ट एवं वीजा पर पुर्तगाल में रहने के आरोप साबित होने पर लिस्बन जेल में काटने संबंधी।
अब सवाल खड़ा हो गया कि किसी को विदेश में काटी सजा के आधार पर देश में चुनाव लड़ने से कैसे रोका जा सकता है? अबू के वकील अशोक सरावगी और हिंदी फिल्मों के अभिनेता सत्येंद्र सिंह ने मिलकर उसी दौरान राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी (आरएसपी) का गठन किया था। सरावगी कहते हैं कि हमने चुनाव आयोग में राजनीतिक दल के पंजीकरण का अगस्त २००६ में आवेदन कर दिया था। उनसे मंजूरी भी मिल गई। वर्तमान दलों से परेशान लोगों के लिए आरएसपी अच्छा विकल्प होगा। हमने सत्येंद्र सिंह को दल का अध्यक्ष बनाया है।
ये बात और है कि इस दल के कितने सदस्य बने, किसी को आज तक नहीं पता। उन्हें मोटरसाइकिल चुनाव चिह्न भी आवंटित हो गया। इस दल के महासचिव अशोक सरावगी खुद बने। आरएसपी ने २० सीटों पर चुनाव लड़ना तय किया।
अबू ने अपने गांव मुबारकपुर से चुनावी दंगल में खम ठोकने का इरादा किया। अब ये कोई नहीं बता सकता कि विदेश में सजा काटने के करण अबू को आचार संहिता के तहत चुनाव लड़ने से चुनाव आयोग रोक पाया या नहीं, लेकिन ये जरूर था कि अबू खुद ही चुनाव नहीं लड़ा।
इस बार अबू नहीं, उनके वकील अशोक सरावगी के लिए कान में अबू के एक बंदे ने मंत्र फूंका-
‘सॉलिड फट्टे है भाय ये काला कोट।’
टायर पर चाकूबाजी का अभ्यास
वह एमपीडीए में पहले भी गिरफ्तार हो चुका है। उसका पूरे उल्हासनगर इलाके में खासा आतंक था। इसके पहले भी उसे एक बार अदालत दो साल के लिए तड़ीपार कर चुकी थी। उस वक्त तक उसके खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, हफ्तावसूली, धमकियां देने जैसे कुल २५ मामले दर्ज थे। ठाणे के खतरनाक गुंडे दीपक सोंडे को अदालत ने दिसंबर २००३ के अंतिम सप्ताह में दो साल के लिए ठाणे, मुंबई और रायगढ़ जिलों की सरहद से दूर रहने यानी तड़ीपारी के आदेश सुनाए।
दीपक सोंडे ठाणे जिले की उस दस नंबरी सूची में भी था, जिसके बारे में आम धारणा है कि एक बार जो गुंडा इसमें आ जाता है, उसका अघोषित ‘ब्लैक वारंट’ कट जाता है। दीपक का अपराध जगत में प्रवेश ठाणे जिले में ८० के दशक के आरंभ में डवैâतियों से हुआ था। उसने उल्हासनगर के दो प्रमुख गिरोहों गोपाल राजवानी और पप्पू कालानी के बीच कई बार आयाराम-गयाराम नेताओं की तरह गिरोह बदले थे। तड़ीपारी के ठीक पहले वह विधायक और गिरोह सरगना पप्पू कालानी के साथ था। दीपक सोंडे की पत्नी मीना सोंडे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की उल्हासनगर जिले की अध्यक्ष थी। वह एनसीपी के टिकट पर मनपा का चुनाव लड़ी और पार्षद बनी थी।
उसके बारे में एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि हत्या करने के लिए उसने चाकू को मुख्य हथियार बनाया था। हत्या में पारंगत होने के लिए वह ट्रक और बसों के टायरों पर अभ्यास करता था। इस तरह उसने किसी शिकार के शरीर में चाकू न केवल तेजी से घुसाने बल्कि उसे घुमाने और बाहर निकालने का अच्छा अभ्यास कर लिया था। इसके कारण उसकी कलाइयों में खासी मजबूती आ गई। वह बड़ा जबरदस्त चाकूबाज बन गया था।
एक दिन अदालत के बाहर दीपक से मुलाकात करने के बाद रुखसत हो रहा था कि पास में एक बंदा आया, धीरे से कान में फुसफुसाया-
‘येड़ा बन के पेड़ा खाने में मास्टर है ये सर, थोड़ा संभल के रहने का।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)