हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
विवेक अग्रवाल
बांद्रा में उस दिन गेईटी – गेलेक्सी सिनेमाघर के प्रिव्यू थिएटर में कुछ खास होने वाला था…
वहां खासी भीड़ थी…
चारों तरफ पठानी सूट में लंबे-तगड़े लड़कों की भीड़ थी…
मोटरसाइकिलों और जीपों का जमावड़ा लगा था…
…ऐसा माहौल था मानो कोई खास बंदा आने वाला है।
उस दिन सच में एक खास व्यक्ति वहां आया। एक छोटे-मोटे अभिनेता जोगिंदर सिंह उर्फ रंगा खुश, जो अमूमन खलनायकी करते थे, की एक फिल्म ‘औरत और शैतान’ का खास प्रिव्यू था। तमाम व्यवस्थाएं पूरी हो चुकी थीं। बेसब्री से उस खास मेहमान का इंतजार था, तभी वह खास मेहमान आ पहुंचा। जोगिंदर सिंह की सांसें फूलने लगीं। उसने खुशी से आगे बढ़कर मुअज्जिज मेहमान की अगवानी की, बाइज्जत थिएटर में ले गया, सबसे खास सीट पर मेहमान को बैठाया, उसके करीब की सीट पर बैठ गया।
फिल्म ‘औरत और शैतान’ शुरू हो गई।
फिल्म शुरू हुए अभी कुछ देर बीते होंगे… शायद १० मिनट ही… अचानक अंधेरे में ‘तड़ाक’ की एक आवाज गूंजी, और एक दहाड़ सुनाई दी, ‘ओए खोचे, ये वैâसा पिक्चर दिखाने लाया है… औरत का इतना बेइज्जती करता है… और तुम सोचता है कि हम देखेगा…’
ये अचानक क्या हुआ?
वो आदमी, जिसे तमाचा पड़ा था, जोगिंदर सिंह था। वो इंसान जिसने तमाचा मारा था, गुस्से में बिफरा था, शेर सरीखी आवाज में दहाड़ा था, वही खास मेहमान करीम लाला था।
गुस्से में भरा करीम लाला उठा और दनदनाता हुआ थिएटर से बाहर निकल गया। औरतों की बेइज्जती उसे कतई बरदाश्त न थी, तो भला औरत पर हो रहे बलात्कार के दृश्य वैâसे बरदाश्त करता?
करीम लाला के बारे में ये बात बताते हुए इस बंदे की हंसी नहीं रुक रही थी। वह इतना हंसा कि आंखों से आंसू तक छलक पड़े। उसने कहा:
– रंगा खुश तो बेरंगा नाखुश हो गया।
(बीपी की जुबानी)
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)