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महा-संग्राम : असमंजस में उत्तर भारतीय… भाजपा के `मन’से कार्ड से स्वाभिमान पर लगी चोट!

रामदिनेश यादव

राजनीति कितनी गंदी हो सकती है, उसकी पराकाष्ठा इन दिनों भाजपा पार कर रही है। जिस व्यक्ति ने उत्तर भारतीयों की पिटाई की और ललकार कर उन पर हमले करवाए, आज वही व्यक्ति महाराष्ट्र में भाजपा के लिए दोस्त बन गया है। भाजपा उसके साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव में कुछ प्रतिशत वोट को पाने की लालसा में हैं। भाजपा यह सब शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष को टक्कर देने के लिए कर रही है।
चूंकि भाजपा को पता चल गया है कि इस लोकसभा चुनाव में उसके दलों को फोड़ने की राजनीति का उसे अब तक कोई लाभ नहीं हुआ है इसलिए अब वह हिंदी भाषी व उत्तर भारतीयों की पिटाई करने वाली पार्टी को अपने साथ मिलाने जा रही है। भाजपा शायद यह भूल गई है कि पार्टी राष्ट्रीय है और देश के लगभग १६ राज्य हिंदी भाषी बहुल हैं। यहां हिंदी भाषी और उत्तर भारतीय लोगों का अच्छा-खासा वोटबैंक भाजपा को मिलता रहा है। भाजपा के इस कदम से हिंदी भाषी और उत्तर भारतीय समाज में बेहद नाराजगी पैâल रही है। जानकारों की मानें तो भाजपा महारष्ट्र में हिंदी भाषी एवं उत्तर भारतीय विरोधी पार्टी को लेकर अपना २ प्रतिशत वोट बढ़ाने में भले सफल हो जाए, लेकिन देश भर में पैâले उत्तर भारतीय व हिंदी भाषी वोटों को तेजी से खिसकने से नहीं रोक पाएगी।
मराठी मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा की तरफ से यह कदम शायद उसे ग्रामीण इलाकों में कुछ लाभ जरूर दे, लेकिन मुंबई सहित आस-पास के महानगरों में बसे उत्तर भारतीय खासा नाराज दिख रहे हैं। अब वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। दरअसल, उन्हें भरोसा था कि भाजपा उत्तर भारतीयों के प्रति बुरी नजर रखने वाले और उन पर हमले करने वालों से बचाएगी। लेकिन यह क्या जिससे उन्हें डर था, जो उनकी पिटाई करता था, उसे ही बगल में लाकर खड़ा कर दिया है। भाजपा की इस नीति से वास्तव में उत्तर भारतीय सदमें में हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वे भाजपा के साथ किस मुह से रहें। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव में भाजपा को इसका बड़ा नुकसान होगा। बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय वोट भाजपा खेमे से खिसक जाएंगे। खासकर, मुंबई महाराष्ट्र में भाजपा पर इसका असर साफ दिखेगा।
भाजपा के साथ उसके नए मित्र दल के गठबंधन को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति में बवाल मचा हुआ है। भाजपा की इस करतूत ने उत्तर भारतीयों के नजरिए को स्पष्ट कर दिया है। राजनीति इतनी गंदी होती है यह अब उत्तर भारतीयों को समझ में आने लगा है। इस बार लोकसभा में भाजपा की दुश्मन के साथ गठजोड़ की राजनीति से उत्तर भारतीय समाज व हिंदीभाषियों के माथे पर चिंता की लकीरें आना स्वाभाविक है। मुंबई में लगभग ४० लाख उत्तर भारतीय हैं, जिनमें अब भाजपा के खिलाफ सुगबुगाहट शुरू हो गई है। वे भाजपा से खिसक सकते हैं।
हिंदुत्व की बात तो करते हैं,हिंदीभाषियों की क्यो नहीं?
बाता दें कि वर्ष २००८ में उत्तर भारतीय समाज के लोगों पर भाजपा के नए मित्र दल `मन’से ने प्रांतवाद की राजनीति को हवा देते हुए हमला किया था। उस समय हिंदीभाषियों के बचाव में कई उत्तर भारतीय नेता सामने आए थे, जिसमें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता साथ आए थे। उन्होंने हिंदीभाषियों की आवाज बनकर प्रांतवादियों का विरोध किया, लेकिन भाजपा ने तब भी हिंदीभाषियों के प्रति कोई स्पष्ट कदम नहीं अपनाया था। आज स्थिति ऐसी है कि भाजपा में हिंदी भाषी नेतृत्व नहीं है। भाजपा हिंदुत्व की बात जरूर कर रही है, लेकिन हिंदी भाषियों की पिटाई करने वालों के खिलाफ कोई बात क्यों नहीं कर रही है?

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