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शिव और शक्ति के मिलन की रात महाशिवरात्रि

अजय भट्टाचार्य
मुंबई
महाशिवरात्रि के पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना गया है। शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव को समर्पित है। फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है, जो इस साल आज मनाई जाएगी। कालनिर्णय पंचांग के अनुसार, वास्तव में चतुर्दशी तिथि आज २०.०४ बजे से प्रारंभ होगी जो १९ फरवरी को दोपहर १६.१९ बजे तक रहेगी। महाशिवरात्रि के लिए निशिता काल पूजा का मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में होना आवश्यक है, इस आधार पर महाशिवरात्रि पूजा का मुहूर्त १८ फरवरी को प्राप्त हो रहा है, इसलिए महाशिवरात्रि आज मनाई जाएगी। इस साल महाशिवरात्रि पर पुत्र प्राप्ति का दुर्लभ संयोग बन रहा है, क्योंकि महाशिवरात्रि शनिवार के दिन पड़ रहा है। ऐसे में इस बार महाशिवरात्रि के साथ शनि प्रदोष व्रत भी है। शनि प्रदोष व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शनि प्रदोष व्रत रखने से भोलेनाथ प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं।
महाशिवरात्रि के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाशिवरात्रि के दिन शिव और शक्ति का मिलन हुआ था। महाशिवरात्रि की पूरी रात महादेव के भक्त अपने आराध्य की पूजा के लिए जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी।
कुछ पौराणिक कहानियां यह भी कहती हैं कि महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका न तो आदि था और न अंत। मान्यता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वो शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ़ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला। अद्भुुत महादेव की अद्भुत कहानी के अनुसार, माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग ६४ अलग- अलग जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल १२ जगह का नाम पता है। इन्हें हम १२ ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं, इसलिए महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। ये दिन शिव और शक्ति के मिलन की रात है। इस दिन शिवभक्त अपने आराध्य का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखने के साथ जलाभिषेक करते हैं। इस दिन बाबा की विधिवत पूजा करने के साथ जलाभिषेक करने से व्यक्ति को सभी दुखों से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ घर में खुशियां ही खुशियां आती हैं।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि।
शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:।।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महानिशीथकाल में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे, जबकि कई मान्यताओं में माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ है। गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, पद्मपुराण और अग्निपुराण आदि में शिवरात्रि का वर्णन मिलता है। कहते हैं, शिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बिल्व पत्तियों से शिवजी की पूजा करता है और रात के समय जागकर भगवान के मंत्रों का जाप करता है, उसे भगवान शिव आनंद और मोक्ष प्रदान करते हैं।
रुद्र रूप होते हैं पिता
एक बार गणेश जी ने भगवान शिवजी से कहा कि पिता श्री आप यह चिता भस्म लगाकर मुंडमाला धारण कर अच्छे नहीं लगते, मेरी माता गौरी अपूर्व सुंदरी और आप उनके साथ इस भयंकर रूप में। पिता श्री आप एक बार कृपा करके अपने सुंदर रूप में माता के सम्मुख आएं, जिससे हम आपका असली स्वरूप देख सकें। भगवान शिव जी मुस्कुराए और गणेश की बात मान ली। कुछ समय बाद जब शिव जी स्नान करके लौटे तो उनके शरीर पर भस्म नहीं थी। बिखरी जटाएं संवरी हुर्इं और मुंडमाला उतरी हुई थी। सभी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, शिवगण उन्हें अपलक देखते रह गए। वो ऐसा रूप था कि मोहिनी अवतार रूप भी फीका पड़ जाए। भगवान शिव ने अपना यह रूप कभी प्रकट नहीं किया था। शिवजी का ऐसा अतुलनीय रूप कि करोड़ों कामदेव को भी मलिन कर रहा था। `सत्यम् शिवम् सुंदम्’ गणेश जी अपने पिता की इस मनमोहक छवि को देखकर स्तब्ध रह गए और मस्तक झुकाकर बोले मुझे क्षमा करें पिता श्री! अब आप अपने पूर्व रूप को धारण कर लीजिए। भगवान शिव मुस्कुराए और पूछा, क्यों पुत्र अभी-अभी तो तुमने ही मुझे इस रूप में देखने की इच्छा प्रकट की थी और अब पुन: पूर्व स्वरूप में आने की बात क्यों?
गणेश जी ने मस्तक झुकाए हुए ही कहा, क्षमा करें पिता श्री मेरी माता से सुंदर कोई और दिखे, मैं ऐसा कदापि नहीं चाहता। शिवजी हंसे और अपने पुराने स्वरूप में लौट आए। पौराणिक ऋषि इस प्रसंग का सार स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आज भी ऐसा ही होता है। पिता रुद्र रूप में रहता है, क्योंकि उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियां अपने परिवार का रक्षण, उनके मान सम्मान का ख्याल रखना होता है तो थोड़ा कठोर रहता है। मां सौम्य, प्यार, लाड़, स्नेह उनसे बातचीत करके प्यार देकर उस कठोरता का संतुलन बनाती है, इसलिए सुंदर होता है मां का स्वरूप। पिता के ऊपर से भी यदि जिम्मेदारियों का बोझ हट जाए तो वो भी बहुत सुंदर दिखने लगेगा।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके स्तंभ प्रकाशित होते हैं।

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