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महावितरण बिजली खरीदी के विवादों में फंसा!.. एक कंपनी को फायदा देने के लिए टेंडर की शर्तों में किया गया संशोधन

सामना संवाददाता / मुंबई

महावितरण की १,६०० मेगावाट थर्मल और ५,००० मेगावाट सौर ऊर्जा की खरीद विवादों में घिर गई है, क्योंकि दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए निविदा शर्तों में १९ से अधिक संशोधन किए गए हैं। चूंकि यह शर्त है कि सौर एवं तापीय बिजली एक ही कंपनी द्वारा प्रदान की जाएगी, इसलिए आशंका है कि इसका लाभ केवल एक विशेष बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी को मिलेगा। महावितरण के टेंडरों में गाइडलाइन से परे जाकर एक खास कंपनी के लिए कई रियायतें दी गई हैं। इसलिए विद्युत नियामक आयोग ने इन संशोधनों के लिए राज्य सरकार की अनुमति से ही टेंडर प्रक्रिया करने का आदेश दिया है।
राज्य सरकार ने २८ जुलाई २०२३ को सौर ऊर्जा की खरीद और अन्य मामलों के लिए दिशानिर्देशों की भी घोषणा की है। आयोग ने कहा है कि केंद्रीय विद्युत अधिनियम की धारा ६३ के प्रावधानों के अनुसार महावितरण के लिए इन नियम व शर्तों का पालन करना अनिवार्य है। आयोग ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि महावितरण को सरकार की मंजूरी लेनी चाहिए क्योंकि उसमें संशोधन को मंजूरी देने का अधिकार आयोग को नहीं, बल्कि राज्य सरकार को है।
निविदा शर्तों के अनुसार, बिजली उत्पादन कंपनी को परियोजना को ३६ महीने के भीतर पूरा करना आवश्यक है और यह समय सीमा अब ४२ से ४८ महीने तक बढ़ा दी गई है। निर्धारित तिथि के बाद १८० दिनों के भीतर परियोजना पूरी नहीं होने पर महावितरण को मानक शर्तों के अनुसार ०.२ प्रतिशत मुआवजा मिलेगा। लेकिन टेंडर में यह शर्त लगाई गई है कि यदि परियोजना निर्धारित समय पर निष्पादित नहीं होती है, तो कंपनी अन्य स्रोतों के माध्यम से महावितरण को बिजली की आपूर्ति करेगी और नहीं लेने पर कोई मुआवजा नहीं देगी, इसके अलावा महावितरण ने कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए नियम और शर्तों में कई प्रकार की ढील दी है।

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