मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : चुनावी होली

मैथिली व्यंग्य : चुनावी होली

डॉ. ममता शशि झा
मुंबई

आई भोरे-भोर चमेली हाथ चमकबइत बाजल, ‘हम आइ सांझ से ल क होली के परात तक नहि आयब काज कर लेल।’
‘कियेक, कत जेबाक छ तोरा?’ काजबाली के नहि आब के बात सुनी के केहन तरेगण देखा लगइ छइ से ते बुझिते हेबइ सब गोटे।
चमेली, ‘चुनावक तिथि तय भ गेलइया ने!’
‘आहिरे बा, ओहि से तोरा कि लेना-देना।’ आश्चर्य से पूछलियइ।
चमेली, ‘चुनाव के समय में ज कोनो पाबनी-तिहार पड़ी जाइ छइ त बुझीयउ जे नेता सब आ राजनैतिक पार्टी सबके लेल सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन के द्वारा चुनाव प्रचार कर के बड़का मौका भेट जाइ छइ आ फंड रीलिज कराब के कारण भेट जाए छइ।’
हम पूछलियइ’ह, ‘बुझलियइ, मुदा तोहर की काज ओहि मे?’
चमेली मुस्कियाइत बाजल, ‘अहां नहि बुझलियइ, कोनो कार्यक्रम के सफलता दर्शक पर निर्भर होइ छइ, हम दर्शक ल जेबाक कॉन्ट्रैक्ट लेने छी।’
‘कॉन्ट्रैक्ट’ हमरा चेहरा के प्रश्नवाचक मुद्रा देखि के ओ कहनाइ शुरू केलक ‘जगह-जगह कवि सम्मेलन के आयोजन हेतइ, सब जगह पर श्रोता चाही, आइ के समय में सब स बड़का समस्या दर्शक जूटेनाइ छइ, ओहुना कवि सब के कविता सबतरि येक्कहि रंग रहई छनि, व्हाट्स एप बला जोक सब। के हँसतनि? ताहि लेल हम हर जगह श्रोता ल जाइ छी पाइ दे के, ओकरो सब के श्रेणी होए छइ, किछु के आवाज जोरदार होइ छइ, त ओ बीच-बीच में कवि के वाहवाही करइ छइ, कतेक नाटकीय होइ छइ त ओ सब बीच-बीच में उठि क थपड़ी पिट क ठाड़ भे क नचइ छइ, थोड़े लोग अपना चेहरा पर रंग लगा के बैसि जाइ छइ, होली के माहौल बनाब लेल, कियेक ते ओत आयल किछु संभ्रांत, आ नेता के परिवार लोक सब ते खाली ऑर्गेनिक रंग से माथा पर ठोप टा लगबइ छथिन, हुनकर सब के स्किन जे खराब भ जेतनि। हमर जतेक परिचित अछि से सब चुनाव के बाट देखइत रहइया, आस लगेने रहइया जे चुनाव येतइ, त किछु कमाए-खाय के मौका चमेली के माध्यम से भेंट जायत, नेता सब से त आस नहि पूरत!!’
‘मुदा तोरे किया देलखुन कॉन्ट्रैक्ट’ जिज्ञासावश पूछलियइ।
‘नहि बुझलियइ, हम जतबे पाइ लोक सब में बांटइ छियइ, ओतबे पाइ हुनका सब से लइ, हम नेता आ पार्टी के लोक सब जांका बेइमानि नहि करइ छी, आ दोसर बात जतेक के बिल पर साइन कर लेल कहइ छथिन हम साइन के दइ छियनि’, चमेली व्यंग से कहलक।

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