मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : परसिधी

मैथिली व्यंग्य : परसिधी

डॉ. ममता शशि झा मुंबई

रमण जी भोरे-भोर समाचार पत्र पढ़ि रहल छलाह। ओहि में छपल फोटो देखि क सुरभि दिस देखि क बजला ‘हद्द भ गेल आइ काल्ही समाचारो बला सब के कोनो ढंगक समाचार नहि भेटइ छन्ही, किछो छापि दइ जाइ छथिन।’
‘किया की छपल छइ से?’ सुरभि जिज्ञासा स पुछलखिन।
‘देखिययु ने एकटा बचिया आँखि मार के वीडियो बना क पूरा देश में रातो-रात प्रसिद्ध भ गेल से समाचार छपल छइ, बुझिययु इ कोन कला भेलइ जाहि लेल ओकर येतेक परशंशा’, रमण जी खौंझाइत बजला ‘भोरे-भोर समय बर्बाद क देलक।’
सुरभि, ‘लोक सब के असली समाचार दिस ध्यान नहि जाइ ताहि लेल अहि सब तरहक समाचार छापल जाइ छइ, ताकि लोक सब अहि में उलझल रहे, आ समाचार पत्र बला सब के अहि तरहक समाचार छाप लेल मोटगर पाई सेहो भेट जाइ छइ दुनु के लेल फायदा, एकटा के परसिधि आ दोसर के पाई।’
रमण जी, ‘आँखि बिना पाई लेने ठीक कर बला डॉक्टर के चर्चा कतहु नइ, मुदा आँखि मार बाली के चर्चा सब तरि, रिएलिटी शो में स्टेज पर जा के परसिध होअ लेल लोक सब कि नहि कर लागल अछी आइ काल्ही, सेलिब्रिटि के गला मिल क नाच करइया, क्षणिक परसिधि लेल।’
सुरभि, ‘लोक सब बुझइ छइ जे किछु के क प्रसिद्ध होअ में बड़ पापड़ बेल पड़इ छइ, आ समाचार पत्र बला सब के चटपटा समाचार चाहियइ जाहि स ओकर सर्वुâलेशन बढ़इ, कियेक त लोको सब ओहने समाचार सब से पहिने पढ़इ छइ, आखिर ओकरो सब के ते ट्रेन में समय बिताब लेल कोनो बात चाही। चाय के चुस्की संगे चटगर समाचार चाही।’
रमण जी, ‘सही बजलहुं ओहि में एडिटोरियल पढ़ बला जनता कतेक प्रतिशत रहइ छइ जे ओहि सब विषय पर चर्चा करतइ!!’
सुरभि ‘हा, सेहो बात सही छइ, मुदा देखइ नइ छियइ कोनो घोटाला बला समाचार जे किछु छपबो करइ छइ त दुइए तीन दिन के बाद कोना बिला जाइ छइ, ओहि समय में बिना ढंगक बात सब, आ लोक के दिमाग दोसर दिस कर लेल अहि तरह के समाचार सब बेसि छपाए लगइ छइ, जहने इ सब समाचार आब लागे त बूझि जाइ जे कोनो बड़का समाचार के नुकाब लेल इ सब समाचार आबि रहल अछी।’
रमण जी, ‘बात चित में बड़ अबेर भ गेल चलु अहाँ के ऑफिस आइ हम छोड़ी दइ छी।’
सुरभि मुस्कियाइत, ‘हां इ भेल ने समाचार में छप बला बात!!’

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