डॉ. ममता शशि झा मुंबई
किछु दिन पहीने हमर छोटकी बहिन विवाह के बाद पहिल बेर हमरा घर आयल छल। ओकरा संगी के सेहो बजा लेलियै। गप्प सरक्का के बाद सब गोटे भोजन कर लेल बैसलहुं, अनेक व्यंजन संग मिथिलाक बऽड़ी, मिथिला में बेटी अबई छई त बऽड़ी हेबाक चाहि। देखलियई जे नेहाक बऽड़ीक बाटी खाली छै, हमरा लागल जे ओकरा बऽड़ी बड़ पसंद छै, ओकरा बऽड़ी लेल आग्रह केलियै, दोसर बड़ी के कटोरी देखते ओकर चेहरा के भाव देख क एकटा खिस्सा मोन पड़ल।
हम ओकरा दिस देखी क बिहुसैत कहलियई, अहां के ई नहीं देब, अहां के जे रुचिकर लागे से खाऊ। नेहा पुछलक अहां हमर मोनक भाव कोना पढ़ी लेलहु?
कहलियै, आऊ अहां के एकटा खिस्सा सुनाबी।
ठीक छई सब एक्कही संगे बाजी उठल खिस्सा ओहि समयक अछी जहन फोनक सुविधा नहीं छल। एक दिन सौराठ बला ओझा अचानके राति में अपना सासुर पहुंचलाह।
हुनका संगे साईर, सरहोजनी सब सबके संगे हंसी-मजाक करैत भोजन करय लेल बैसला।
संजोग स ओही दिन घर में पटुआ सागक झोर बनल छल। राइत बेसि भ गेल छल। विभिन्न तरहक व्यंनजन आ पटुआ सागक झोर संग ओझा के लेल सचार लगाओल गेल, पटुआ सागक झोर के देखैत ओझा के मोन बिसुकी गेलैन, मुदा आन पदार्थ देखी क मोने मोन सोचला जे आगु में आबी गेल अच्छी त पटुआ साग के पहिने सधा ली, बाद में पसंदक चीज स्वाद स खायब।
खूब भूखायल छलाह, चारी-पांच घंटा के यात्रा क कऽ आयल छलाह।
ओझा हबड़-हबड़ येक्कही घोंट में पटुआ सागक झोर सुड़ऽकी गेलाह, लोक के लगलैन जे ओझा के सागक सनेह छॅन्ही, ताहि दुआरे बाटी तुरंत भरी देल गेल, ओझा मोन मसोसॅईत ओकरो पीब गेला, तखने तेसर बाटी पटुआ सागक झोर अबईत देखलखिन बेचारे थारी पर स तुरंत उठी गेलाह, मोन में तरूआ आ तीमन के चटकार बनले रही गेलनि।
नेहा के संग-संग सब गोटे जोर स ठहाका मारी क हँसय लागल।
नेहा के तरफ हम देखलियई त ओ मुस्कुराईत बाजी उठल- ‘सही पकड़िलियैन।’