डॉ. ममता शशि झा मुंबई
जगदीश जी अपन बेटा तन्मय के स्कूल स लेब लेल जाय काल में हेलमेट ल गेनाइ बिसरी गेल छला। स्कूटर पर बैस काल में तन्मय अपन पापा के हेलमेट पहिर लेल कह लगलनि।
तन्मय के आइए स्कूल में ट्रैफिक के नियम, हेलमेट पहिर के कारण और ओहि नियम के नहीं मानला पर होअ बला जुर्माना के संबंध में जानकारी `अपन सुरक्षा अपन कर्तव्य’ अहि कार्यशाला में सीखेने छलइ ट्रैफिक विभाग के लोक सब आबि के।
जगदीश जी `बिसरि गेलियइ हड़बड़ी में, चल किछु नहि होय छइ।’ तन्मय `नहि पापा इ गलत बात, हेलमेट हरदम लगा क निकल के चाही और जे पाछा बैसइ छइ तकरो लगाब के चाही, अपन जीवन के सुरक्षा के जिम्मेदारी अपने लेबाक चाही।’
जगदीश जी `की बात बौआ आइ बड़ कानून झाड़ी रहल छी!’
तन्मय, `हमारा सब के स्कूल में ट्रैफिक पुलिस बला सब आबि के सबटा ट्रैफिक के नियम आ नियम तोड़ पर लाग बला जुर्माना के पूरा जानकारी दे के गेलखिन आइ, आ लोक के लापरवाही के कारण सड़क दुर्घटना में सरकार के होअ बला नुकसान के बारे में सेहो कहलखिन आ हमरा सबके जिम्मेदार नागरिक बन लेल कहलखिन।
जगदीश जी, `चल घर अहि स्कूल बला सब के पढ़ाब के नहि रहइ छइ खाली विद्यार्थी सब के समय केना बर्बाद करी ताहि में मोन लगइ छइ।’
तन्मय छगुंता से अपना पापा दिस देखि के स्कूटर पर बैस गेल। आगा गेला पर ओकर पापा ट्रैफिक पुलिस के देखि के मोने मोन अपशब्द सोचइत फुसफुसलेला’ एकरो आइए ठार रह के छलइ, जहन ऑफिस जाय काल में गाड़ी सब के गुत्थम गुत्थी भेल रहइ छइ तहन ककरो पता नहि रहइ छइ।’ तन्मय सुनि लेलकनि बात आ कहलकनि ओहो स्थिति लोक के अपन अनुशासनहीनता के कारण होय छइ, क्यो नियम के नहि मानि क जल्दी स निकल लेल।
जगदीश जी खौजाइत बजला `हरौ छोड़ा बेसि बपजेठ नहीं बन, दू टा बात की सिखा देलकन स्कूल में की बड़ काबिल बन लगला।’
तन्मय के आश्चर्ज लगलइ जे पापा ओकरा हरदम गलती कर पर सही बात सिखा क बुझबइ छलखिन अपन आ पैघ लोक के गलती देखा देला पर कोना बिगड़ी गेल छलखिन, मम्मी के `हाथी के दांत’ बला फकरा मोन पड़ि गेल छलइ।
स्कूटर के आईना में तन्मय के मुस्की देखि क ओ और खाउंझाइत ट्रैफिक पुलिस से बचने के चक्कर में हड़बड़ा क निकल लगला कि ट्रैफिक पुलिस रोकि लेलकनि आ चलान काट लेल रशीद ल के हुनका लग ऐलनि।
तन्मय दुनु गोटे के इशारा बुझि नही सकल, पापा ओकरा हाथ में पाई देलखिन, बेटा के अपना दिस देखइत देखि के बजला, अरे सब बेईमान सब छई!!
तन्मय आश्चर्य स पापा दिस देखइत सोचलक `के!’