डॉ. ममता शशि झा
मुंबई
रामसुख जी अपन कनिया रानी के कहलखिन ‘चलु अहाँ के गणपति पूजा देखब ल चलइ छी।’
रानी ‘ह हम तुरंते नुआ बदलि क अबइ छी।’
रामसुख जी के इ सुनि क हँसी आबि गेलनि, कियेक त हुनका अनुभव छलनि जे तुरंत सन के कोनो शब्द के पालन स्त्रीगण सब के कतहु बाहर जाय काल में तैयार होअ में नहि होइ छइ। ओ कहलखिन, ‘अहिना बड़ सुन्नर लगइ छी, चलु ओहुना भगवान के दर्शन कर लेल अहाँ जाय छी, अहाँ के दर्शन नहिं क्यों करत।’ रानी मूंह चमकबइत हाँय-हाँय ठोर रंगी क बिदा भेलि। देखलनि जे जत पूजा के पहिने एकटा पंडाल रहइ छलइ आब तीन टा पंडाल में बटि गेल छलइ। बोर्ड देखलखिन ‘एकता मित्र मंडल!’ सोचलनि जे तिलक जी जे समाज के एकजुट कर लेल अहि पूजा के उद्देश्य ल क चलइ छला आइ ओकर की हाल भ गेल छइ! ‘एकता में शक्ति ‘ओकर थीम छलइ, पति-पत्नी के अहि थीम पर मुस्कि छुटि गेलनि, अगला पंडाल में गेला त ओत ‘चिकनी चमेली पौआ चढ़ा के आई’ गीत पर अभद्र नृत्य भ रहल छलइ, वितृष्णा स मोन भरि गेलनि। तेसर पंडाल में गेलथि त ओहि गणेश जी के मूर्ति सब स पैघ छलनि, पीओपी के आ पूरा पंडाल के थर्माकोल नकली प्लास्टिक के फूल आ तोरण स सजावट केल गेल छलइ ओकर थीम ‘पर्यावरण सुरक्षा’ छलइ।
रानी ‘यें यो अहाँ त कहने छलऊ अब थर्माकोल आ पीओपी के उपयोग बंद भ गेल छइ।’
रामसुख ‘हां, सही कहने रही, लेकिन लोक सब के अपन अहंकार देखाब लेल बड़का बड़का मूर्ति आन के रहइ छइ आ एकर समिति में पुलिस बला सब छथिन!!’
रानी ‘ओ!! चलु घर। काल्ही विसर्जन काल में सबटा गणेश जी के येक्कही ठाम दर्शन क लेबनि।’
रामसुख जी बृहन्मुंबई महानगरपालिका के सफाई विभाग में कार्यरत छला। हुनका पछिला साल के विसर्जन के दृश्य ध्यान आबि गेलनि, सफाई विभाग के पंद्रह हजार स बेसी कर्मचारी के सफाई के काज में लाग पड़ल छलनि। विसर्जन काल में जे अपना के जतेक पैघ बूझइ ओतेक बेसी फटक्का फोड़इत आ ओतेक बेसी जोर स गाजा-बाजा बजबइत अपन शक्ति के देखबइत गणेश जी के समुद्र तक ल जाय छथिन आ विसर्जन के बाद कि भेलनि तकर कोनो होश नहि रहइ छनि ककरो, पूजा कर के निर्णय आम नागरिक के सफाई के जिम्मेदारी सरकार के!!
विसर्जन के असली अर्थ जँ सब गोटे बुझी जेता त अपन अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, गलत आदत के विसर्जन करता!! सेह असली विसर्जन होयत!!