मुख्यपृष्ठस्तंभमैथिली व्यंग्य : सहानुभूति

मैथिली व्यंग्य : सहानुभूति

डॉ. ममता शशि झा
मुंबई

शिबा ऑफिस पहुंचली ते हुनका माथ पर चोट के निशान देखि के हुनकर सहकर्मी सब एकदम दया के भाव चेहरा पर आनि हुनका घेरि के पूछ लगलनि, ‘की भेल, कतहु चोट लागल कि घर में क्यो हाथ उठेलक? यदि अहाँ के घरक लोक अहाँ संगे मारि-पिट केलक ते चलु हम सब हुनका सबके ठीक के देबनि, महिला आयोग चलु इ सब बात कह लगलनि।’ शिबा के क्यो बाज के मौका नहिं देलकनि, अपने अनुमान लगाब लगलनि सब गोटे, बेचारी शिबा!! सभक सहानुभूति के केंद्र छलि। चुपचाप मारि खा क आयल स्त्री के प्रति दया के भाव देखा के ओकर पति के बुझाब लेल पूरा समाज इकट्ठा भे जाइ छइ, असहाय बुझी ओकर सहायता के के अपन अहंकार के तुष्टि क लइत जाइ छथि। समाज में परिवर्तन आन में असमर्थ लोक सब!!
मुदा जँ कोनो स्त्री प्रतिकार केलक आ प्रत्युत्तर में मारि के आयल त इहे लोक सब ओकरा सँ घृणा कर लगइ छइ, ओकरा सँ दूरी बना लइ छइ। इ बात शिबा बुझइ छलखिन। अहिना लोक लोक के मोन टोब लेल शिबा बजली, ‘हमहूं मारलियनि एक थप्पड़, अपन बचाव में’ ध्वनि में अविश्वास मिश्रित हुंकार उठल, ‘की केलियइ? अहूं मारलियइ? हम सब त अहाँ के सज्जन, उच्च कुलिन के बुझइ छलहूं, अहां हेबे करबइ मारि खाय लायक, ताहि लेल अहां संगे येहन व्यवहार केने होयत। की केल जाय, येहन स्त्रीगण के नियंत्रण में राख के आर रास्ते कोन हेतइ!!! येहन अन्याय जे स्त्री, पुरुख पर हाथ उठाओत!!! बाज बला में पुरुष के संगे-संग स्त्रीगण के स्वर सेहो मिश्रित छल। व्याह स्त्री स्वर जे पितृसत्तात्मक सत्ता के आगु ल जेबाक काज करइ छलि, जे कहियो अहि तरहक प्रतिकार कर के साहस नहि केने छलि, पीढ़ी दर पीढ़ी पुरुष के पूजनीय मान के लेल बाध्य छलि, कियेक त अपन कोखि से जनमल पुरुखक माध्यम से स्त्री के शोषण के माध्यम छलि, अपन पुत्र के मोह में बान्हल, ओकर गलती के गलत नहि मानइ छलि, अपन बेटा संगे कहीं अहि तरहक घटना नहि भ जाय ताहि लेल, स्त्री भ क स्त्री के विरोधी छलि। शीबा अहि भीड़ के चेहरा के भाव देख लेल मुड़ी उठेलथि ते देखलथि सहानुभूति बला चेहरा आब क्रोध के भाव ओढ़ि लेने छल!!!

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