मुख्यपृष्ठस्तंभहर सौ साल में आगे बढ़, रहा मकर संक्रांति पर्व

हर सौ साल में आगे बढ़, रहा मकर संक्रांति पर्व

आपको पढ़ कर आश्चर्य हो रहा होगा कि ये सूर्य की चाल से मनाया जाने वाला पर्व १४ कि जगह १७ को कब और क्यों मनाया जाएगा? दरअसल सितारों की चाल से संक्रांति पर्व की तारीख बढ़ रही है। हर सौ साल में आगे बढ़ रहा मकर संक्रांति पर्व, इस साल तो १४ जनवरी को मनाया जाएगा लेकिन एक सदी बाद यह१५-१६ जनवरी को मनाया जाएगा।
कब कब मनाई गई संक्रांति-
१७ वीं सदी में मकर संक्रांति ९ जनवरी को मनाई जाती थी, २०१२ में ये पर्व १५ जनवरी को भी मनाया गया और २११० में १६ जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी। ग्रहों की चाल में अंतर के कारण हर बार करीब १०० साल में मकर संक्रांति की तारीख एक दिन यानी २४ घंटे आगे बढ़ रही है। ज्योतिषीय गणना से ही मकर संक्रांति पर्व की तारीख तय होती है। मकर संक्रांति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। आम मान्यता यही है कि सूर्य के मकर में प्रवेश करने की तारीख १४ जनवरी है लेकिन २००८ में जब यह पर्व १५ जनवरी को आया तो लोग आश्चर्यचकित थे।
क्यों हो रहा है ऐसा-
मकर संक्रांति की तारीख में बदलाव अयनांश (ग्रहों की चाल में अंतर) के कारण होता है। अयनांश की गति करीब ७२ साल में ६० कला एक अंश (एक दिन) बढ़ती है। १७ वीं शताब्दी में संक्रांति ९-१० जनवरी को मनती थी। १८वीं सदी में ११-१२ जनवरी, १९ वीं सदी में १३-१४ जनवरी, २० वीं सदी में १४-१५ जनवरी को संक्रांति मनाई गई और अब २१वीं एवं आने वाली २२वीं सदी में संक्रांति १४, १५, १६ व १७ जनवरी की तारीखों में मनाई जाएगी।
वर्ष २०१६ में भी मकर संक्रांति १५ को ही मनी। ये क्रम हर दो साल के अंतराल में बदलता रहा। लीप इयर वर्ष आने के कारण मकर संक्रांति वर्ष २०१७ व २०१८ में वापस १४ को ही मनी। साल २०१९ व २०२० को यह फिर से १५ जनवरी को मनाई गई। ये क्रम २०३० तक चलेगा। यह अंतर बढ़ते-बढ़ते ७० से ८० वर्ष में एक दिन हो जाएगा। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष २०८० से लगातार १५ जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा। १६ व १७वीं शताब्दी में मकर संक्रांति ९ व १० जनवरी को मनाई जाती थी। १७ व १८वीं शताब्दी में यह ११ व १२ को, १८ व १९वीं शताब्दी में १३ व १४ जनवरी को जबकि १९ व २०वीं शताब्दी में १४ व १५ को मनाई गई। अब २१ व २२वीं शताब्दी में यह १४, १५ और १६ जनवरी को मनाई जाती रहेगी। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक पृथ्वी की गति प्रतिवर्ष ५० विकला (५ विकला यानी २ मिनि:) पीछे रह जाती है, वहीं सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हालांकि लीप इयर में ये दोनों वापस उसी स्थिति में आ जाते हैं। इस बीच प्रत्येक चौथे वर्ष में सूर्य संक्रमण में २० से २२ मिनिट का अंतर आ जाता है। यह अंतर बढ़ते-बढ़ते ७० से ८० वर्ष में एक दिन हो जाता है। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष २०८० से लगातार १५ जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा। विज्ञान के अनुसार मकर संक्रांति का अंतर पृथ्वी की आयन गति से होता है। आसमान का वर्नल इक्वीनोक्स (वैज्ञानिक गणना का एक काल्पनिक बिंदु) खिसकता रहता है। यह २६ हजार साल में एक बार आसमान का एक चक्कर पूरा करता है, जो हर साल ५२ सेकंड आगे खिसक जाता है। समय के साथ बदलाव जुड़ते-जुड़ते करीब ७० से ८० साल में एक दिन आगे बढ़ जाता है। मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनि देव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
– पवित्र दूबे

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