१४ जनवरी के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही उत्तरायण हो जाएंगे और संपूर्ण भारतवर्ष में मकर संक्रांति के निमित्त पतंग पर्व की शुरुआत हो जाएगी। मकर संक्रांति का त्योहार देश के कई भागों में पतंग पर्व के रूप में ही मनाया जाता है। विशेष रूप से मुंबई और गुजरात में तो इस दिन दशकों से पतंगबाजी की परम्परा रही है। इसलिए यहां मकर संक्रांति के पर्व को पतंग पर्व के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तरायण मुंबई-गुजरात समेत संपूर्ण हिंदुस्थान का लोकप्रिय पर्व है। इस दिन आकाश में उड़ती पतंगों को देखकर मन में स्वच्छंदता का अनुभव होता है, वह स्वतंत्रता का अहसास करता है। मानो कोई पतंग आकाश में नहीं उड़ रही हो, बल्कि मन पंछी बन सूर्य के उत्तरायण होने पर खुशी का इजहार कर रहा हो। लोग इस दिन सुबह से खाना-पीना भूलकर देर रात तक केवल पतंगबाजी में लगे रहते हैं। एक-दूसरे की पतंग काटने की प्रतिस्पर्धा होती है। हर कोई दूसरे की अधिक से अधिक पतंग काटना चाहता है। पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भरा रहता है और जैसे ही किसी की पतंग कटती है तो उल्लास का हो-हल्ला शुरू हो जाता है। ८-१० दिन पहले से ही उत्तरायण की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। पक्के से पक्का मांझा बनवाना, रंग-बिरंगी पतंगें लाना और संक्रांति के दिन खान-पान, नाच-गाने का इंतजाम करना। संक्रांति के दिन सुबह सभी लोग मूंगफली, तिल तथा गुड़ की गजक खाते हैं। तिल-गुड़ का दान भी करते हैं। उसके बाद सुबह से लेकर रात तक पतंगबाजी चलती है। सुबह-सुबह सभी अपनी-अपनी छतों पर चढ़ जाते हैं। पतंग, मांझा, खाने का सामान वगैरह लेकर। पतंगबाजी रात तक जारी रहती है। रात के समय आम तौर पर सफेद या चमकीले रंग की पतंगें नजर आती हैं। पतंग की डोर के साथ कागज का फानूस (कंदील) बांधा जाता है। आजकल तो चाइना मेड कंदील आ गए हैं। ऐसे कई कंदील, जिनमें जलती हुई मोमबत्तियां लगी होती हैं, एक लाइन में धीरे-धीरे कुछ अंतर से छोड़े जाते हैं। अंधेरी रात में आकाश में इन चमकीले कंदीलों का दृश्य देखने लायक होता है। दिन में तो आसमान जैसे दिखाई ही नहीं देता, रंगबिरंगी पतंगों से भरा होता है, अनगिनत रंगीन पतंगें आसमान पर दिखाई देतीं हैं, बहुत ही मनमोहक दृश्य होता है। रात में यह दृश्य और मनोरम होता है आसमान में ऐसा लगता है, जैसे किसी ने दीवाली के दीए लगा दिए हों। मकर संक्रांति के दिन देश के कुछ भागों में गिल्ली-डंडा खेलने का भी महत्व है। लोग अपने-अपने गुट बनाकर गिल्ली-डंडा खेलते हैं।
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का बहुत महत्व है। रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति का जिक्र वाल्मिकी रचित रामायण में भी मिलता है। रामचरित मानस में भगवान श्रीराम द्वारा पतंग उड़ाए जाने का भी उल्लेख है। रामचरित मानस के एक दोहे में श्रीराम के पतंग उड़ाने का वर्णन इस प्रकार है-
राम इक दिन चंग उड़ाई।
इन्द्रलोक में पहुंची जाई।।
अर्थात, भगवान श्रीराम ने अपने साथियों के साथ मिलकर जब एक दिन पतंग उड़ाई तो वह इंद्रलोक तक जा पहुंची। इससे प्रमाणित होता है कि पतंगबाजी का रिवाज प्राचीन समय से ही चला आ रहा है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर रेखा से उत्तर रेखा की ओर आना आरंभ करते हैं। उनके इस स्थानांतरण का स्वागत पतंग उड़ाकर किया जाता है। महाराष्ट्र में भी इस दिन जमकर पंतगबाजी होती है। इसकी लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर्व के अवसर पर करोड़ों रुपए का ‘पतंग व्यवसाय’ होता है। इस दिन महाराष्ट्र में ‘तिल-गुड़ घ्या आणि गोड गोड बोला’ का प्रचलन है। इस दिन यह बोल बोलने के साथ ही तिल के साथ-साथ एक-दूसरे को उपहार बांटने का प्रायोजन है। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने घर दूसरी महिलाओं को आमंत्रित कर उन्हें हल्दी-कंकू लगाकर तिल-गुड़ के साथ-साथ उपहारों की टीका करके भै: देती हैं। यह एक शुभ शगुन माना जाता है।
– शीतल अवस्थी