डा. रमेश ठाकुर
भेड़ियों को अब कोई हल्के में नहीं लेगा? क्योंकि उन्होंने अपने ऐसे खूनी खौफनाक रूप से परिचय करवाया है, जिससे लोग अब उनके नाम मात्र से भी कांपा करेंगे। उनके इतने खतरनाक मंजरों को पुराने बुजुर्गों ने भी कभी नहीं देखा। बुजुर्ग भेड़िए से संबंधित गुजरे स्मरण सुनाते हैं कि भेड़िए अक्सर गांव-कूचों में देखे जाते थे, तब इतने हिंसक नहीं होते थे। मुर्गी या अन्य छोटे-छोटे बेजुवान पशु-पक्षियों पर झपट्टा मारकर जंगलों में चले जाते थे। लेकिन इंसानों का खून उन्होंने कभी नहीं पिया। पर, खून भी पी रहे हैं और मांस का सेवन भी? भेड़ियों का तांडव बेशक बहराइच में है, पर भय पूरे भारत में फैल चुका है। घटनास्थल पर मीडिया का जमाव़़ड़ा लगा है। अखबारों और टीवी में भे़ि़ड़यों की ही खबरें चल रही हैं। भे़ि़ड़ए क्यों आदमखोर बने और क्यों इंसानों के खून के प्यासे हुए? ये सवाल चारों ओर गूंज रहा है। भेड़िए इंसानों पर बिना वजह हमला नहीं करते, उनका शिकार मुख्यत: गाय, भैंस, कुत्ते या छोटे-ब़़ड़े बेजुबान जानवर होते हैं। शेर, बाघ, भेड़िए व अन्य जंगली जानवर आदमखोर तभी बनते हैं जब उन्हें जंगलों में पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता।
सच्चाई एक ये भी है कि ऐसे जानवर जो एक बार इंसानों का मांस खा लेते हैं या रक्त का स्वाद चख लेते हैं, तो वो उसके आदी हो जाते हैं। फिर वह इंसानों के मांस के अलावा कुछ भी खाना पसंद नहीं करते। हो सकता है बहराइच के आदमखोर भेड़ियों के साथ भी ऐसा ही हुआ हो, महीने भर पहले उन्होंने एक बच्चे को निवाला बनाया था उसके बाद वह इंसानी मांस के ही आदी हो गए। भेड़ियों को काबू करने की जब प्रशासनिक कोशिशें नाकाम हुईं, तो ग्रामीणों ने ईश्वर को याद करना शुरू किया। पूरी-पूरी रातें भगवान का नाम जपने और हनुमान चालीसा पढ़ने में गुजारी। लेकिन दहशत के निशान फिर भी बरकरार रहे। प्रशासन द्वारा भेड़ियों को नहीं पकड़ने पर स्थानीय लोग ये भी कहने लगे हैं कि हम चांद पर तो पहुंच गए लेकिन ३०-४० किलो वजन के जानवर को पक़़ड़ने में अब भी असमर्थ हैं। सवाल वाजिव है, प्रशासन को ऐसी आलोचना पर गंभीर होना चाहिए।
घटनास्थल पर लोगों में भय इस कदर बैठ गया कि उन्होंने काम धंधा करना तक छोड़ा हुआ है। बच्चों को स्कूल भेजना बंद करके उन्हें घरों में कैद कर दिया है। किसानों ने खेतों में जाना भी त्याग दिया। भेड़ियों को पकड़ने के लिए प्रशासन के आला अफसर भी गांवों में तैनात हैं। डीएफओ से लेकर जिलाधिकारी महोदया तक ने भी गांव में डेरा डाला हुआ है। उनकी मौजूदगी में भी भेड़िए शिकार करने से नहीं चूक रहे हैं। संभावनाएं ऐसी भी जताई गईं कि भेड़िे एक-दो नहीं, बल्कि कई सारे हैं। भे़ि़ड़यों का पूरा झुंड इलाके में मौत बनकर घूम रहा है। यह भी कहा जाने लगा है कि ये भेड़िए हमारे यहां के नहीं हैं। ये पड़ोसी देश नेपाल से भागकर बहराइच इलाके में घुसे हैं। क्योंकि बहराइच की सीमाएं नेपाल से सटी हुई हैं। हिंसक जानवरों का वहां से आना-जाना हमेशा लगा रहता है। वैसे, इन खूनी भे़ि़ड़यों को हाइब्रिड भी बताया जाने लगा है। अब सच्चाई क्या है ये तो ईश्वर ही जानता है। लेकिन भेड़ियों के भय की खबर अब बहराइच तक सीमित नहीं रहीं, पूरे हिंदुस्थान में आग की तरह फैल चुकी है।
गौरतलब है कि भेड़िए के आंतक की शायद ये पहली ऐसी घटना है, जिसने माहौल इस कदर खराब किया हो। भेड़ियों के आतंक से वन विभाग से लेकर प्रदेश के वन मंत्री भी चिंतित हैं। आसपास जिलों के कई मुख्य वन संरक्षक भी भेड़िए को पकड़ने में लगे रहे। दर्जनों टीमों का गठन किया गया जिसमें डीएफओ व अन्य प्रमुख वनकर्मियों ने अभियान को लीड किया। अलग-अलग क्षेत्रों में ड़्रोन कैमरे लगाए गए हैं। लेकिन तत्कालिक सफलता उन्हें फिर भी नहीं मिल सकी। हारकर बाहर से एक्सपर्ट बुलाने प़़ड़े। सूचनाएं ऐसी भी हैं कि उन भेड़ियों ने पूर्व में नेपाल के जिलों धनगढ़ी और महेंद्रनगर में भी खूब आतंक मचाया था। काफी मशक्कत के बाद नेपाली वन विभाग कर्मियों ने उन्हें भारतीय सीमा में खदेड़ा था। बहराइच का क्षेत्र ज्यादातर वनीय भूभाग में तब्दील है, जहां विभिन्न किस्म के जंगली जानवरों की चहलकदमी सदैव बनी रहती है।
भेड़िए द्वारा इंसान का मांस खाना निश्चित रूप से किसी गहरी पहेली जैसा है। सच है कि भेड़िए आदमखोर नहीं होते, वो इंसानों का नहीं, बेजुबान जानवरों का मांस खाने के लिए जाने जाते हैं। हां, इतना जरूर है अगर शिकार की उपलब्धता न हो तब वह हिंसक हो जाते हैं। भेड़ियों का ज्यादातर शिकार मोल, जंगली मुर्गें, लेमिंग, सांप, की़ड़े-मकोड़े, खरगोश व तमाम तरह के पक्षियों से लेकर हिरण और चूहे होते हैं। भेड़ियों का सबसे पसंदीदा शिकार खुर वाले जानवर होते हैं और स़़ड़ा हुआ मांस, यहां तक कि छोटे स्तनधारी जानवरों को भी खाने में भे़िड़ए खुश रहते हैं। लेकिन ऐसा पहली मर्तबा सुनने में आया है कि भेड़िए सिर्फ इंसान का मांस ही खाने को आतुर हैं।
घटना विचित्र है, इसलिए विज्ञान द्वारा या आधुनिक तकनीकों से इस पहेली को सुलझाने की सख्त जरूरत है। पता चले, आखिर ये भेड़िए इतने हिंसक क्यों हुए, ऐसा तो नहीं, कहीं इन भेड़ियों की शक्ल में कोई दूसरे जानवर हो, क्योंकि घरती पर जिस तरह से बदलाव होने लगे हैं जिसकी तस्वीरें भी नित रोज देखने को मिल भी रही हैं। जैसे, नई-नई बीमारियां, वायरस, पक्षी, पौधे, बिन मौसम बारिश, धूप, तूफान आदि कुदरती आपदाएं उदाहरण हैं ही। राज्य सरकार को तत्काल प्रभाव से सुनिश्चित करना चाहिए कि भे़ि़ड़यों का आतंक बहराइच तक ही सीमित रहे, अन्य राज्यों में न फैले? इसके लिए प्रशासन को हर संभव कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि जब से इन भेड़ियों के संबंध में दिल दहला देने और भयभीत करने वाली सूचनाएं आई हैं देशवासी घबराए हुए हैं। क्योंकि सीधे-साधे जानवरों के अचानक हिंसक होने से लोग वैसे ही दुखी हैं। आवारा कुत्तों का बिना वजह काटना, घरेलू कुत्तों द्वारा हमला करने की घटनाएं तो अब आम हो चली हैं। भे़ि़ड़यों से उत्पन्न दहशत को जल्द से जल्द खत्म करने की दरकार है। क्योंकि इसका भय समूचे हिंदुस्थान में आग की भांति फैल रहा है।