जिस तरह से वहां अचानक हिंसा भड़की है, उससे साफ लग रहा है कि मामले में केंद्र की ओर से लापरवाही बरती गई है। अब यहां केंद्र या राज्य सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण नहीं कर सकतीं क्योंकि दोनों ही जगह पर डबल इंजन की सरकार जो है।’
पिछले एक सप्ताह से मणिपुर में आग लगी हुई है। मणिपुर में हुई जातीय हिंसा में मरने वालों की संख्या को लेकर अब जाकर पहली बार अधिकृत आंकड़ा जारी किया गया है। राज्य सरकार के नए सुरक्षा सलाहकार के अनुसार, मणिपुर में ३ मई से अब तक जातीय संघर्ष में कम से कम ३० लोगों की मौत हुई है। हालांकि, अपुष्ट रिपोर्टों में इसे सैकड़ों में बताया गया है। घायलों की संख्या हजारों में हो सकती है। हैरानी की बात है कि देश के पूर्वोत्तर का एक प्रमुख राज्य इस तरह हिंसा की आग में जल रहा है, वहीं आज के नीरो चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। कर्नाटक चुनाव के प्रचार में पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों व्यस्त हैं।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने पूर्वोत्तर राज्य में शांति की अपील के साथ-साथ जातीय समुदायों के बीच एक संवाद शुरू करने की अपील की है। पर ऐसे जुनून के समय रिजिजू जैसे नेताओं की कोई अपील काम में नहीं आती। वहां सेना-पुलिस की कड़क कार्रवाई असर दिखाती है। जिस तरह से वहां अचानक हिंसा भड़की है, उससे साफ लग रहा है कि मामले में केंद्र की ओर से लापरवाही बरती गई है। अब यहां केंद्र या राज्य सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण नहीं कर सकतीं क्योंकि दोनों ही जगह पर डबल इंजन की सरकार जो है।
३० हजार लोग बचाए गए
मणिपुर में हिंसा को रोकने के लिए बुलाई गई भारतीय सेना और असम राइफल्स ने अब तक लगभग ३०,००० नागरिकों को सफलतापूर्वक बचाया है और उन्हें ऑपरेटिंग बेस में ले जाया गया है। सेना का कहना है कि बचाव अभियान शुरू होने के बाद से हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है। इसके परिणामस्वरूप कर्फ्यू के घंटों में ढील दी गई है, जो अब चुराचांदपुर में सुबह ७ बजे से १० बजे तक है।
मणिपुर में आदिवासी गुटों के बीच हिंसक भिड़ंत अक्सर होती रहती है। वहां मैतेई, कुकी और नगा ये तीन प्रमुख समुदाय हैं। कुल आबादी में मैतेई समुदाय करीब ५३ प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासियों में नगा और कुकी शामिल हैं और आबादी में इनकी संख्या करीब ४० प्रतिशत है और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
मणिपुर की पूरी लड़ाई ‘पहाड़ बनाम घाटी’ की है। दरअसल, मणिपुर का करीब ९० फीसदी इलाका पहाड़ी है, पर वहां के स्थानीय नगा और कुकी आदिवासी लोग राज्य की कुल आबादी का करीब ४० फीसदी हैं। राज्य में आदिवासी कानून के तहत पहाड़ी इलाकों में केवल वो आदिवासी समुदाय ही रह सकता है, जो अनुसूचित जनजातीय हो। मणिपुर के कानून के वजह से घाटी में बसा ५३ फीसदी वाला मैतेई समुदाय, इसके बावजूद भी पहाड़ी इलाकों में नहीं बस पा रहा है। इसके अलावा नागा और कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों से नौकरी के लिए घाटी वाले इलाकों में आकर बस जा रहे हैं।
करीब २३ समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की मांग कर रहे हैं। अभी हाल ही में मणिपुर के न्यायालय ने मणिपुर सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया है। न्यायालय के इस पैâसले के विरोध में नगा-कुकी समुदाय के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने आदिवासी एकता मार्च निकाला था। इस दौरान दोनों समुदायों के बीच खतरनाक हिंसा हुई, जो लगातार बढ़ती चली गई। इसी क्रम में राज्य की सुरक्षा के लिए सरकार ने ‘शूट एट साइट’ के आदेश जारी किए थे।
पुलिस-कुकी से शुरू हुआ संघर्ष
२८ अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने- सामने थे। लेकिन ३ मई को स्थिति बिगड़ गई और इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग तो दूसरी तरफ कुकी और नगा समुदाय के लोग थे। इनके बीच जातीय हिंसा के बाद स्थिति बेकाबू हो गई। आलम यह था कि हिंसा का असर मणिपुर की राजधानी इंफाल सहित कई इलाके में पैâल गया।