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बीएल संतोष की यूपी समीक्षा- ठेकेदारी में गुजराती दबदबे के खिलाफ उठे स्वर पर चुप्पी साध गये!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

अहंकारी व्यवहार की दवा भी नहीं दे पाये संतोष!

2019 की अपेक्षा 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी से भाजपा की सीटें आधा होने से परेशान नेतृत्व ने संगठन में सबसे सामर्थ्यवान कहे जाने वाले महामंत्री संगठन को यूपी में हुई हार का कारण जानने आये थे। लेकिन टीम गुजरात के दबदबे के खिलाफ उठे सवालों से वह कन्नी काट गये। सूत्रों के अनुसार दो दिन में यूपी में हुई हार का कारण तलाशने आये बीएल संतोष अपने प्रवास में अलग-अलग फोरम के सैकड़ों कार्यकर्ताओं से मिले। कार्यकर्ताओं को अनुमान था कि सबकी बातें सुनने के बाद संतोष कुछ बड़ा आश्वासन भी देंगे। फिलहाल प्रथम दृष्टया कार्यकर्ताओं ने अपनी बात कह कर उन्होंने सबकी बात सुन कर संतोष कर लिया है। यदि उनके मन में संगठन पर किसी तरह की कार्रवाई करने की मंशा होगी भी तो वह उनके दिल्ली पहुंचने के कुछ दिन बाद दिखेगा। सूत्र बताते हैं कि बीएल संतोष ऐसी कोई बात जान कर नहीं गये हैं जो पहले से ही सर्वविदित न रह हो। बताया गया कि पिछड़े, दलित, महिला, अल्पसंख्यक सबसे मिले लेकिन मिल वही पाये जिसे वर्तमान काकस उनके पास भेजा।

पार्टी कार्यालय पर उपस्थित कार्यकर्ताओं ने तो यहां तक कहा कि लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को बार-बार यह कहते सुना गया है कि “2014 में जिस गुजरात मॉडल का हवाला देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आये हैं वही 2024 में उनके जाने का कारण बनेगा।यह सच साबित होता दिख रहा है। संगठन गुजराती तानाशाही से ऊब चुका है। नाम न छापने की शर्त पर एक कार्यकर्ता ने कहा कि माल्यार्पण के दौरान राजनाथसिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं अमितशाह द्वारा बाहर करने के वायरल वीडियो को बार-बार देखने से यूपी की जनता और राजपूत वर्ग बहुत आक्रोशित होता था।” जेपी नड्डा को बाहर करने का तो कोई असर नहीं था लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर जेपी नड्डा की टिप्पणी ने कट्टर संघियों का पैर बांध दिया। प्रत्याशियों में अमितशाह और उनके गुर्गों के अहंकारी छवि की नकल करना चुनाव में भारी पड़ गया। अधिकतर ठेकों पर गुजराती ठेकेदारों का कब्जा होने का जो प्रचार हुआ उसका राज्य भाजपा और प्रदेश सरकार समय रहते सही काट नहीं दे पाये। पार्टी के भीतर सिस्टम वाले कार्यकर्ताओं की चंद दिन में हालत बदल गयी लेकिन जिनके परिश्रम से सरकार बनीं उन्हें केवल इस लिये वंचित होना पड़ा कि वह व्यक्ति विशेष की गैंग में भर्ती नहीं ले पाये।

कार्यकर्ता खुलेआम बोल रहा है कि यूपी के लूट का माल राजस्थान के रास्ते गुजरात पहुंच गया हमें भनक तक न लगी।जिस तरह कृष्ण की विरह में डूबी गोपियों को ज्ञानी उद्धव नहीं समझा पाये उसी तरह वैचारिक उपासना में तप रहे कार्यकर्ताओं को बीएल संतोष भी नहीं संतुष्ट कर पाये हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हों या मुख्यमंत्री सामान्य कार्यकर्ता का इनमें से किसी से भी मिलना असंभव जैसा है। क्या बीएल संतोष यह कर सकते हैं कि कार्यकर्ताओं की बात व्यक्तिगत न सही सामुहिक ही महीने में कहीं सुनी जा सके।भाजपा के पास वोट पर पकड़ रखने वाले कुछ पिछड़े नेता मान भी लिये जांय तो दलित वोटों पर पकड़ रखने वाले किसी नेता को विकसित नहीं किया गया। भाजपा का दलित नेता वही है जो सामान्य वर्ग या टीम गुजरात के कथित पिछड़े वर्ग के किसी नेता का कृपापात्र हो। अपने और अपनों को पोषित करने में जुटे सरकार और पार्टी के अहम लोग यदि जल्दी अपने आचरण में सुधार नहीं किये तो 2027 में भाजपा बुरी हार के मुहाने पर खड़ी मिलेगी।

एक कार्यकर्ता 2017 के बाद लखनऊ में बेघर नेताओं के मकानों और फ्लैट्स की सूची लेकर घूम रहा था। उसका सवाल यह था कि जब ये लोग पिछले सात वर्षों से दिन रात पार्टी की सेवा में लगे रहे तो इन्हें कब और कैसे गाड़ी तथा आवास की सिद्धियां प्राप्त को गयीं। उसने कहा कि यह सब समीक्षा फर्जी है। जिन पदाधिकारियों के जिलों, बूथों से पार्टी साफ हो गयी उनके स्थान पर पार्टी नये लोगों को अवसर देगी। सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाली पार्टी के कर्णधार अपनों का साथ, अपनों के विकास में उलझ कर बेपटरी हो गयी है।समीक्षा की खानापूर्ति से कुछ भी संतोष कर लिया जाय, पार्टी के सामने 2027 में हार का खतरा खड़ा है। यही हाल रहा तो पार्टी 2014 के पहले वाली दशा में फिर पहुंच जायेगी। फिलहाल बीएल संतोष आने वाले विधानसभा के उपचुनाव और राष्ट्रीय कार्यसमिति को लेकर थोड़ा पत्ता खोले लेकिन ज्वलंत सवालों को श्रोता बन कर सुन लिया।यदि प्रदेश और जिलों के प्रमुख कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष से मिलना आसान हो जाये तो समझा जायेगा कि संतोष के दौरे से कार्यकर्ताओं को राहत मिलेगी।सोशल मीडिया पर सुस्त पड़ चुकी पार्टी में कितनी चुस्ती आयी है इस पर सभी की निगाह है। प्रदेश के सभी जिलों में पार्टी की बिल्डिंग बनाने को प्रमुखता देने वाला भाजपा नेतृत्व यूपी पार्टी मुख्यालय पर राज्य के 80 जिलों से आने वाले कार्यकर्ताओं के लिये एक निश्चित कक्ष नहीं दे पाया है।

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