• अब भाजपा सरकार फिर से लाइसेंस-परमिट राज में लौटने को तैयार
लैपटॉप, कंप्यूटर और टैबलेट के आयात पर अचानक लाइसेंस थोपने की पहल समझ से बाहर है। यह सुधारों को उलटने जैसा है, जिनके फायदे सबने तीन दशकों तक चखे हैं।’
आयात-निर्यात के मोर्चे पर केंद्र के भाजपा सरकार की लचर नीतियां अक्सर देश को मुसीबत में डालती रहती हैं। ८० के दशक तक देश में आयात-निर्यात पर लाइसेंस परमिट राज का अंकुश था। ९० के दशक में जब नरसिम्हा राव व डॉ. मनमोहन सिंह की जोड़ी देश में नई आर्थिक नीति लेकर आई तो देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से बदलाव आने लगा। मगर लगता है तीन दशक बाद हम फिर से पुराने दौर में लौटने की तैयारी कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा कंप्यूटर-लैपटॉप के आयात पर बैन लगाना इसी ओर प्रयास है।
इस बारे में अर्थशास्त्री अजीत रानाडे का कहना है, ‘लैपटॉप, कंप्यूटर और टैबलेट के आयात पर अचानक लाइसेंस थोपने की पहल समझ से बाहर है। यह सुधारों को उलटने जैसा है, जिनके फायदे सबने तीन दशकों तक चखे हैं।’ १९९१ के बाद लाइसेंस मुक्त करने से विभिन्न क्षेत्रों ऑटोमोबाइल, पेट्रो केमिकल्स, फार्मास्यूटिकल, स्टील और धातु से लेकर टेलीकॉम उपकरणों के क्षेत्रों में शानदार वृद्धि दिखी। कुल मिलाकर आयात पर प्रतिबंध डब्ल्यूटीओ के सिद्धांतों के विपरीत है। इससे व्यापार साझेदारों से जैसे को तैसी कार्रवाई और दंडात्मक उपायों को बुलावा देना होगा। इससे इन हार्डवेयर की सप्लाई में भी रुकावट पैदा हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। लिहाजा उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ेगी। रानाडे की दलील है, ‘यह विशुद्ध संरक्षणवादी रवैया है और यह कीमतों को बढ़ावा देगा और गुणवत्ता में कमी आएगी। फिर लाइसेंस राज से रातोंरात निवेश नहीं आ जाएगा। चीन के मार्वेâ को बदल पाना मुश्किल होगा, क्योंकि आज मूल्यों में बदलाव के साथ उत्पाद उतारे जा सकते हैं।’
कुछ जानकारों का कहना है कि इसे जुलाई में चावल और अगस्त में प्याज के निर्यात पर बैन के साथ मिलाकर देखना चाहिए। गत वर्ष टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिससे हजारों टन सफेद बासमती बंदरगाहों पर फंस गया था। ऐसे में व्यापारियों को बड़ी संख्या में नुकसान हुआ था।
बता दें कि ब्राजील ने शुरू से ही कंप्यूटर के आयात पर प्रतिबंध लगा रखा था। उसका तर्क था कि ब्राजील खुद का कंप्यूटर सिस्टम डिवेलप करेगा। पर वह फेल हो गया। हिंदुस्थान में भी १९८१ तक कंप्यूटर आयात पर अंकुश था। लेकिन प्रोफेसर राजारमण कमिटी की कंप्यूटर आयात को सॉफ्टवेयर निर्यात से संतुलित करने की सिफारिश ने विभिन्न क्षेत्रों में कंप्यूटर के प्रसार की राह खोल दी। इस लिहाज से, हाल में पीसीज, लैपटॉप्स और टैबलेट्स के क्षेत्र में लाइसेंसिंग की पॉलिसी अपनाना दरअसल इस क्षेत्र में पिछले चार दशकों से बनी सर्वसम्मति को पलटना है। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम, कंप्यूटर के मामले में ‘प्रोडक्शन बाइ लाइसेंसिंग इंपोर्ट्स’ स्कीम में बदल गई है। सरकार अपनी काफी ऊर्जा यह साबित करने में लगा रही है कि वैâसे कंप्यूटर लाइसेंसिंग इंपोर्ट पॉलिसी को लाइसेंस राज नहीं कहा जा सकता। इसमें शक नहीं कि लाइसेंस राज के दौरान आयात के साथ-साथ मैन्यवैâक्चरिंग, इनपुट्स और आउटपुट्स पर भी जबर्दस्त नियंत्रण रहता था। यह भी सच है कि पिछले आठ वर्षों से दिख रही संरक्षणवादी प्रवृत्ति अभी १९९१ के पहले के दौर वाली ऊंचाई पर नहीं पहुंची है। बहरहाल, उद्योग हलकों में केंद्र सरकार के लैपटॉप और कंप्यूटरों के आयात पर बंदिश लगाने के पैâसले पर काफी शोरगुल मचा हुआ है। सरकार १ नवंबर से लागू होने वाले आयातकों के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता के पक्ष में है। सरकार की दलील है कि इससे लैपटॉप और कंप्यूटर के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन चारों ओर फिक्र यह है कि यह पैâसला तीन दशकों के उदारीकरण के फायदे को अनदेखा करता है।
तब भी नाकाम, अब भी नाकाम
सरकार में बैठे बहुत से लोग आज भी यही समझते हैं कि आयात एक बुराई है। यह घरेलू उत्पादन को नुकसान पहुंचाता है। लाइसेंस-कोटा-राज जब चरम पर था, तब इस बात को लेकर लगभग सर्वसम्मति हुआ करती थी कि विदेशी मुद्रा बचाने का एकमात्र उपाय है आयात कम करना। बहरहाल, आज भी हम आयात पर तरह-तरह से रोक लगाने की उसी पॉलिसी का सहारा ले रहे हैं। यह पॉलिसी तब भी नाकाम रही थी, आज भी नाकाम होगी।