डॉ. रवींद्र कुमार
वो दिन गए जब लोग पानी पिलाने को पुण्य का कार्य समझते थे। लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुएं खुदवाते, प्याऊ लगवाते थे। तब पानी बेचा नहीं जाता था। प्यासों को पानी पिलाना धर्म का कार्य माना जाता था। आजकल के `पेज थ्री’ वाले सोशल वर्कर नहीं बल्कि लोग वाकई धर्म सेवा, समाजसेवा करते थे, वो भी फोटो छपवाना तो दूर अपना नाम सामने आए बिना। बहुत हुआ तो अपने दिवंगत माता-पिता अथवा दादा-दादी के नाम की प्याऊ होती थी।
समय बदला और तेजी से बदला। यहां तक कि पानी के मटके-सुराही की जगह मशीनें आ गईं। दिल्ली में दो पैसे का ग्लास पानी बिकता था। आज वह बढ़ते–बढ़ते एक रुपए प्रति ग्लास से अधिक हो गया है। बोतल बंद पानी तो १२ रुपए से १२० रुपए प्रति बोतल धड़ल्ले से बिक रहा है। पानी का धंधा जोर-शोर से फलने-फूलने लगा है। सब अपने पानी को सीधा हिमालय से निकला ही बता रहे हैं। पानी के बिकने के साथ ही देशी-विदेशी कंपनियां अपना-अपना पानी उतार के बाजार में उतर आई हैं। पहले घड़ा-सुराही दो ही आइटम थे, आज सैकड़ों चीजें इससे जुड़ गईं हैं। प्लांट, फिल्टर, वैंâडल कार्बन, टैंकर, ट्रक, प्लास्टिक बोतल, जार, नकली पानी, नकली सील (ढक्कन), खतरनाक केमिकल्स, हानिकारक प्लास्टिक, गैस्ट्रो, लेप्टो, वैंâसर और न जाने क्या-क्या? पानी का खासकर पेयजल का बिजनेस बहुत ही फलता-फूलता बिजनेस है। इसमें असीम संभावनाएं हैं। धर्म का धर्म, लाभ का लाभ, इसे कहते हैं शुभ-लाभ। लेकिन इन सबसे नेताजी कतई प्रभावित नहीं हुए, बल्कि ‘पेयजल’ सुनकर वह शहर ही छोड़ गए। पहले भी लोग घर छोड़ कर भागते थे तो मुंबई आकर ही दम लेते थे। आज भी वही परंपरा कायम है। कहां गए वो लोग जो गंगा मैया की शपथ लेते थे। वह सबसे बड़ी महान और पवित्रतम शपथ मानी जाती थी। आज हालत यह है कि नेताजी को पता चला कि उन्हें पेयजल मंत्रालय मिल रहा है तो उन्होंने शपथ लेने से ही इनकार कर दिया और सबको प्यासा ही छोड़ गए।
तो साहब ये फर्क है कल और आज में। कल तक पेयजल उपलब्ध कराना धर्म-कर्म था, आज पेयजल मंत्रालय ‘फालतू’ मान नेताजी रूठ गए और पार्टी सेवा का निर्जला व्रत ले बैठे हैं। उन्हें याद ही नहीं जो रहीम ने कहा था:
रहिमन पानी राखिए…पानी बिन सब सून…
पार्टी ने नेताजी को ‘उबारा’ नहीं, बल्कि नेताजी का पानी उतारने में पार्टी ने जरा भी देर नहीं लगाई और ताबड़तोड़ त्यागपत्र स्वीकार कर नेता जी का रहा-सहा पानी भी उतार दिया। नेताजी अरब सागर के किनारे मुंबई में अपने कोप भवन में आंसू बहाते रहे।
वॉटर…वॉटर एवरीवेयर…नॉट ए ड्रॉप टू ड्रिंक
ऐसा सुनते हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा लेकिन हमारे नेता तो अभी से पानी को ले के लड़ने लग पड़े। प्रैक्टिस मेक्स ए मैन परफेक्ट मेरी चिंता दूसरी है। अब पेयजल मंत्रालय का क्या होगा? अब पेयजल का क्या होगा? इस सब से ऊपर अब नेताजी का क्या होगा?
‘प्यासे आए, प्यासे तेरे दर से यार चले
तेरे शहर में हमारी गुजर मुमकिन नहीं
जाने कब तक सितमगर
तेरा ये बाजार चले।’