पी. जायसवाल मुंबई
बैंकों के वसूली के तरीकों को लेकर लगातार प्रश्न उठते रहे हैं। इस बार संसद में लोन रिकवरी का यही मुद्दा चर्चा में रहा। संसद में जब प्रश्न पूछा गया तो भागवत कराड की जगह खुद वित्त मंत्री ने इसका जवाब दिया और वसूली के तरीकों को लेकर चेतावनी भी दी। बकौल वित्त मंत्री जोर-जबरदस्ती के साथ लोन को रिकवरी करने की उन्हें शिकायतें मिली हैं और उन्होंने निजी और सरकारी सभी बैंकों को हिदायत दी है कि लोन रिकवरी के दौरान सख्त कदम उठाने से परहेज करें। ऐसे मामलों में संवेदनशील और मानवीय आधार पर ही कोई कार्रवाई करें।
६ जुलाई २०२३ को वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों के प्रतिनिधियों के साथ बैंकों के कामकाज की समीक्षा करने के लिए बैठक भी की थी। इस बैठक में वित्त मंत्री ने बैंकों से कस्टमर्स की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सर्विसेज को सरल बनाने के साथ ग्राहकों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने को कहा था। रिजर्व बैंक ने भी बैंकों के वसूली एजेंट्स द्वारा ग्राहकों को प्रताड़ित करने के बढ़ते मामलों को संज्ञान में लिया है और इसके लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं, जिसमें वसूली एजेंट्स द्वारा की गई बदसलूकी और उनकी कार्रवाई की जिम्मेदारी अब बैंकों, एनबीएफसी और फिनटेक कंपनियों पर होगी।
आरबीआई ने कहा है कि ये सुनिश्चित करना होगा कि वसूली एजेंट्स वसूली के दौरान ग्राहकों को न तो धमकी दें और न ही उन्हें प्रताड़ित करें। लोगों की निजता का उल्लंघन कर सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने की मंशा के साथ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। रिकवरी कॉल केवल सुबह ८ से शाम ७ बजे तक ही की जा सकती है। साथ ही रिकवरी एजेंट्स फोन या सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक मैसेज नहीं भेज सकते।
ग्राहकों को भी यह जानना जरूरी है अगर वे डिफॉल्ट करते हैं और वसूली एजेंट्स उनसे संपर्क करने के दौरान प्रताड़ित करते हैं तो उसके कॉल, एसएमएस ई-मेल का रिकॉर्ड जरूर रखें और तत्काल राहत के लिए पुलिस में भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। पुलिस से राहत नहीं मिलने पर कोर्ट से राहत लेकर प्रताड़ना के लिए मुआवजा क्लेम कर सकते हैं। प्रताड़ना जारी रहने पर आरबीआई के पास शिकायत कर सकते हैं।
वसूली एजेंटों द्वारा सबसे अधिक परेशान कोरोना काल में किया गया था। कोरोना काल में सरकार द्वारा मोरेटोरियम सुविधा दिए जाने के बावजूद बैंकों और खासकर के गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के कॉल आ रहे थे और हर तरह के दबाव बनाए जा रहे थे कि आप मोरेटोरियम न ले सकें और कई बार तो ईसीएस भेज कर बाउंस भी करा रहे थे। कई रिकवरी एजेंट तो सोसाइटी के बाहर आकर खड़ा हो जाते थे, सोसाइटी को चिट्ठी लिखते थे कि इस बिल्डिंग के फलां मेंबर ने लोन लिया है लेकिन किश्त नहीं दिया है। एक रिकवरी एजेंट ने तो एक व्यक्ति की पत्नी का फोन नंबर निकाल कर उसे फोन किया। साथ ही उनकी निजता में सेंध लगाते हुए हुए उनके फोन से डाटा निकालकर उनके पड़ोसियों को भी फोन करके परेशान करना शुरू कर दिया। रिकवरी के लिए ये रिकवरी एजेंट हमारी आपकी निजता में इतना घुस गए थे कि ये मौलिक अधिकारों तक का हनन करने लगे थे। एनबीएफसी ने तो लोन रिकवरी के लिए शॉर्ट टर्म तरीके अपनाने शुरू कर दिए थे।
उस समय रिकवरी एजेंट एक ही दिन में बाउंस किश्त के भुगतान हेतु ग्राहक को तनावग्रस्त कर देते थे। कई वसूली एजेंट ग्राहक को फोन करने लगते थे। जबकि मद्रास हाई कोर्ट द्वारा जी. पलानीसामी बनाम द ब्रांच मैनेजर के केस में दिए गए आदेश में ऐसी कार्रवाई पूरी तरह से अवैध और कानून में टिकाऊ नहीं मानी गई थी। बकौल कोर्ट रिकवरी एजेंटों को मसल मैन के रूप में रखने की प्रक्रिया को हतोत्साहित करने की जरूरत है। निष्कर्ष में कोर्ट ने कहा था कि हम देश में कानून के शासन द्वारा शासित हैं। ऋण की वसूली या वाहनों की जब्ती कानूनी तरीकों से ही की जा सकती है। बल द्वारा कब्जा करने के लिए बैंक गुंडों को नियुक्त नहीं कर सकते। इसी तरह के एक और मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंक डिफॉल्टर से ऋण की वसूली के लिए मसलमैन को तैनात कर उन्हें अपने जीवन को समाप्त करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। केरला हाई कोर्ट के एक जज ने तो यहां तक कहा कि ऋण वसूली के लिए बैंकों द्वारा बनाई गई एजेंसी प्रणाली पब्लिक पॉलिसी के खिलाफ एक समझौता है और यह लागू करने योग्य नहीं है और यह न केवल गैरकानूनी है, बल्कि अनैतिक भी है।
ऐसे में जब इतनी सारी घटनाएं हो चुकी हैं, माननीय कोर्ट ने भी समय-समय पर इस पर आपत्तियां दर्ज की हैं, तो यही कहा जा सकता है कि देर आए दुरुस्त आए। इसी दौरान इस पर संसद में चर्चा हो रही है, वित्त मंत्री बैठक में इस मुद्दे को उठा रही हैं और रिजर्व बैंक प्रतिक्रिया दे रहा है।
ऐसे में यदि आपको भी कभी लगे कि एजेंट उपर्युक्त नियमों में से किसी का भी पालन नहीं कर रहा है या आपकी निजता के अधिकार का उल्लंघन कर रहा है तो बैंक के पास शिकायत दर्ज करें या बैंकिंग लोकपाल से संपर्क करें। एजेंट से पहले अपनी पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहें और यदि वह अपमानित करने पर ही तुल जाए तो पुलिस में केस कर देना चाहिए और यदि पुलिस सुनने को तैयार न हो तो मजिस्ट्रेट के पास केस करें।
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री व सामाजिक तथा राजनैतिक विश्लेषक हैं।)