पी. जायसवाल
मुंबई
इस हफ्ते वित्तीय जगत में हमें दो महत्वपूर्ण संदेश मिले हैं। पहला, जब निवेश के विकल्प और शेयर मार्केट हिल रहें हैं तो सोने-चांदी की मांग बढ़ रही है। इससे इसके खरीददार बढ़ रहें हैं और इसकी कीमतें बढ़ रही हैं। दूसरा, रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा है कि बैंकिंग सेक्टर अपनी बैलेंस शीट के संतुलन पर ध्यान दें। ताकि, संपत्ति-दायित्व का संतुलन बना रहे। ये दोनों संकेत बड़ी सीख हैं और इसका छिपा हुआ मेसेज आम आदमी के लिए यह है कि आप अपने जीवन की भी प्लानिंग अभी से करें।
वैसे भी जन्म से मृत्यु तक की यात्रा में उम्र का अंतिम पड़ाव अर्थ योजना के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। जब हम छोटे होते हैं तो हमे पैसे या देखभाल की कोई चिंता नहीं होती है क्योंकि हमारे मां-बाप सब चीज का ध्यान रखते हैं। जब हम जवान होते हैं तो हम अपने पैसे और अपना ध्यान खुद रखने में समर्थ हो जाते हैं, लेकिन जब हम बूढ़े होते हैं तब हमारे पास हमारे मां बाप नहीं होते हैं और हमारा शरीर कमजोर हो जाता है, तो कई लोग चलने-फिरने में भी असमर्थ हो जाते हैं। इनमें कई लोग तो नित्य क्रिया भी बिस्तर पर ही करने लगते हैं। जीवन में ऐसे पड़ाव के लिए सक्षम रहने के दौरान ही अर्थ नियोजित करना बहुत जरूरी हो जाता है। खासकर तब, जब बदलते सामाजिक परिवेश में औलाद आपसे दूर रहती हो या जब पास रहने के बावजूद बेटा-बहू दोनों काम-काजी हो और पोते स्कूल में पढ़ते हों। ऐसे समय में आपका आर्थिक रूप से ताकतवर रहना ही आपके लिए सहायक हो सकता है।
आइये चर्चा करते हैं कि जीवन के ऐसे पड़ाव की अर्थ आधारित योजना आप वैâसे बना सकते हैं? पहली बात, आप यह मान लें कि बुढ़ापे मे शायद ही कोई आपके पास रहेगा। क्यूोंकि बहुत से हम उम्र रिश्तेदार या मित्र भी बूढ़े हो गए होंगे या गुजर चुके होंगे। इसीलिए जीवन में हम उम्र के साथ-साथ छोटी उम्र के लोगों के साथ भी दोस्ती करें ताकि मित्रता निभाने कम से कम बुढ़ापे में कोई शारीरिक रूप से सक्षम दोस्त आपके पास रहेगा। मतलब संपत्ति दायित्व का संतुलन यहां भी बनाएं और सतत बनाते रहें।
अपनी सारी संपत्ति कभी भी पूरी तरह से संतानों के नाम पर न करें। इसकी जगह आप वसीयत का बंदोबस्त कर सकते हैं या वैसे भी उत्तराधिकार के कानून के तहत सारी संपत्तियां वारिस को ही जानी है। अगर आप को लगता है कि आपको बुढ़ापे में अपनी बेटी या बेटे या दोनों के यहां रहना पड़ सकता है तो किसी एक के नाम संपत्ति हस्तांतरित न करें, अन्यथा आगे चलकर विवाद हो सकता है। ऐसी परिस्थिति के लिए योग्य वकील के माध्यम से वसीयत तैयार करा लें। अथवा यदि आप ट्रस्ट बनाना चाहें तो संपत्ति ट्रस्ट में डाल के ट्रस्ट के मुख्य उद्देश्य में आप, अपनी और अपने परिवार की देखभाल डाल सकते हैं।
जवानी के समय में ही बीमा सुविधा का अध्ययन कर अपना योग्य बीमा करा लें। आप मेडिकल बीमा तो जवानी के समय से ही अवश्य कराएं और जांच कर लें कि कौन सी कंपनी ज्यादा उम्र तक स्वास्थ्य बीमा कवर कर रही है, उसी कंपनी में बीमा कराएं। इस बीमा मे सस्ता या महंगा न देखें, बल्कि ये देखें कि इसमें वैâशलेस हो। आसपास के सभी अच्छे हॉस्पिटल इसमें शामिल हों और बुढ़ापे के तथा अन्य क्रिटिकल बीमारियां इसमें कवर हों। वर्तमान में बीमा के साथ-साथ बहुत सी कंपनियां पेंशन बीमा भी उपलब्ध करा रही हैं। बुढ़ापे में जब अशक्त हो जाते हैं उस समय भी आपके पास आर्थिक ताकत होनी चाहिए ताकि आपकी वैल्यू हमेशा बनी रहे। भविष्य कि बेसिक जरूरतों का ध्यान में रखते हुए पेंशन बीमा भी करा लेना चाहिए, ताकि एक मासिक तय राशि आपको बुढ़ापे में मिलती रहे। बीमा को बहुत से लोग विनियोग कि तरह इस्तेमाल करते हैं, जबकि बीमा पूरी तरह से जोखिम का विषय है और इसका इस्तेमाल उसी के लिए करना चाहिए। विनियोग बीमा के जगह आपको टर्म बीमा कराना चाहिए, जिसकी प्रीमियम राशि काफी कम रखकर आप करोड़ों में बीमा करा सकते हैं। ऐसे समय में आपके बाद आपकी आश्रित पत्नी, पति या संतान इस राशि का उपयोग कर सकते हैं। आप अपने बीमा में नॉमिनी का उल्लेख जरूर करें। अगर पति का बीमा है तो पत्नी का नाम और पत्नी का बीमा है तो पति का नाम, उसके बाद ही संतान का नाम। आपके पास जितने बैंक खाते हैं, उसमे आप अपने पति या पत्नी का नाम नॉमिनी में जरूर डालें।
बुढ़ापे में जब आप अशक्त हो जातें हैं तो आप काम बिलकुल नहीं कर पाते हैं। ऐसे समय के लिए जवानी में कुछ ऐसी संपत्तियां बना लें जिसकी किराए कि राशि बुढ़ापे में भी आपके पास आ जाए। बुढ़ापे में कोई भी कागज दस्तखत करने से पहले और अगर पढ़ना संभव न हो तो किसी नजदीकी विश्वासी व्यक्ति से एक बार पेपर जरूर पढ़ा लें। आप अपने संपत्ति, विनियोग एवं बैंक खाते के पेपर बहुत ही संभाल कर रखें और उसकी एक लिस्ट भी रखें। इसकी जानकारी हमेशा आपके किसी नजदीकी विश्वासपात्र को जरूर रहनी चाहिए और संभव हो तो इसकी जानकारी आपके सीए एवं वकील को भी रहनी चाहिए। आप यदि आयकर विवरणी दाखिल करते हैं तो कोशिश करिए की आपकी सारी पैतृक एवं स्वयं अर्जित दोनों संपत्तियां बैलेंस शीट में दिखाई गई हों। यदि आप के पास कंपनी के शेयर या कोई और विनियोग पत्र हो तो उसे किसी को एंडोर्स करने से बचना चाहिए। किसी भी तरह के पावर ऑफ अटॉर्नी पर दस्तखत करने से पहले खुद पढ़ लें या किसी विश्वासी से पढ़ा लें। अपनी देनदारी और लेनदारी की लिस्ट हमेशा तैयार रखें और अपने वारिसों को बता दें।
हिंदुस्थान में अभी यह सुविधा नहीं है, लेकिन मेरा मानना है कि बीमा कंपनियों को ओल्ड एज होम या रिटायरमेंट होम बीमा पॉलिसी लानी चाहिए। इच्छुक व्यक्ति चाहे तो यह बीमा पॉलिसी ले सकता है और बुढ़ापे में ६५ साल के बाद उसे ता उम्र बीमा कंपनी की तरफ से ओल्ड एज होम सुविधा प्रदान कराने का विकल्प रहेगा। यदि संबंधित बीमित व्यक्ति बुढ़ापे में उस ओल्ड एज होम का इस्तेमाल करना चाहता है तो या नहीं चाहता है तो भी अच्छी बात ही है। इसका मतलब है कि उसका परिवार, बच्चे बुढ़ापे में उसकी बराबर से देखभाल कर रहें है। इस ओल्ड एज होम बीमा में सिर्फ उसका रहना मतलब खाना ही नहीं, नर्सिंग एवं सभी स्वास्थ्य सुविधाएं भी शामिल होनी चाहिए। भले ही इसके लिए प्रीमियम की राशि शुरू में ही ले ली जाए। क्योंकि सिर पर माता-पिता का हाथ होने से बचपन तो सुरक्षित होता ही है, मगर बुढ़ापा भी सुरक्षित रहे, इसका इंतजाम हमें खुद करना पड़ता है। क्योंकि तब मां-बाप का हाथ सिर पर नहीं होता है।
सरकार को भी ओल्ड एज होम या रिटायरमेंट होम के बारे में विशेष योजना बनानी चाहिए क्योंकि जिनके बच्चे विदेश में रह रहें हैं और वृद्धावस्था में वह अकेले रहने को अभिशप्त हैं, अकेले में तनाव उन्हें घेर लेता है। स्वास्थ्य संबंधी एवं अन्य समस्याएं आ जाती हैं। ऐसे समय में अगर वह ग्रुप में बेहतर देखभाल और स्वास्थ्य सुविधाओं के दायरे में रहते हैं तो उनका जीवन का अंतिम पड़ाव आरामदायक हो सकता है और वो भी पूरे स्वाभिमान के साथ। उपरोक्त बताई गई युक्तियों के साथ आप अपनी आर्थिक योजना बना सकते हैं, जिससे इस पड़ाव में भी आप अपने पैरों पे खड़े रह सकें और आपको किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े। इस लेख का उद्देश्य भी यही है कि दौड़ती भागती जिंदगी में एक अलार्म बजा देना।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)