• पी. जायसवाल
पिछले दिनों तिनसुकिया असम में डिप्टी कमिश्नर की एक बैठक में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि जिला वार जीडीपी मापने की आवश्यकता है। यह विमर्श राजनीतिक स्तर पर ही सही, अगर असम के मुख्यमंत्री ने उठाया है तो पूरे देश में राष्ट्रीय विमर्श के बाद इस दिशा में सर्वमान्य मॉडल बनाने के लिए सहमति होनी चाहिए। महाराष्ट्र भी इस मॉडल को लागू कर सकता है और उत्तर प्रदेश भी।
हालांकि, हमें पता नहीं चलता कि हमारे जिले की अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है। सरमा के अनुसार डिप्टी कमिश्नर को जिले का मुख्य सचिव और जिले के पालक मंत्री को जिले का मुख्यमंत्री के तौर पर चिंतन करना चाहिए। विकास और राजस्व व्यवस्था को एक इकाई के रूप में एक करने के लिए सरमा एक चुनाव क्षेत्र को एक सर्किल ऑफिस से जोड़ने वाले हैं, ताकि जीडीपी के मापन समेत कई डाटा इकाईवार सामने आए, जिससे विकास कार्य तथा राजस्व एक साथ एक दिशा में चले। यह भी एक बढ़िया विचार है क्योंकि सही फॉर्मेट में डाटा रहने पर कई निर्णय डाटा के आधार पर लिए जा सकते हैं। मैं राजनेता के स्तर पर लिया गया एक बहुत ही बढ़िया विचार इसे मानता हूं। प्रशासनिक मैपिंग और राजनैतिक मैपिंग एक साथ होने से विकास का नियोजन क्रियान्यवन तथा जिम्मेदारी का निर्धारण सब कुछ आसानी से हो जाएगा। प्रशासन और राजनैतिक नेतृत्व एक साथ और एक-दूसरे के पूरक होकर काम कर सकेंगे। जिला वार संसदीय क्षेत्र और तहसील वार विधानसभा क्षेत्र हो जाए तो और अच्छा है, सारी असंगतियां सुसंगत हो जाएंगी।
कुछ साल पहले मैंने यही बात कही थी। अपने देश में एक कस्बा या एक गांव यह जान ही नहीं पाता है कि उसने जीडीपी में कितना योगदान किया है, उसके यहां से कितना टैक्स सरकार ने कलेक्ट किया है? ऐसी कोई व्यवस्था विकसित ही नहीं हो पाई है, जिससे हम भी टैक्स देते हैं, इस बात का गौरव बोध इन कस्बों और गांवों को हो पाए। यह सबको बताया जाना जरूरी है कि मौजूदा अर्थव्यवस्था में चाहे जीएसटी हो या आयकर, वह वसूला तो उपभोक्ता से ही जाता है। मतलब जो राज्य या जो जिला या जो कस्बा ज्यादा खपत करता है, वह मूल्य के माध्यम से ज्यादा टैक्स का योगदान करता है।
एक उदाहरण मैं उत्तर प्रदेश के एक व्यापारिक कस्बे सिसवा बाजार का लेता हूं। मान लीजिए कि वहां प्रतिदिन १ करोड़ की बिक्री होती है। इस एक करोड़ की बिक्री में करीब- करीब मान लीजिए ३० फीसदी की टैक्स लोडिंग होती है, जो जीएसटी, कंपनी के लाभ पर टैक्स, कंपनी के खर्चे के रूप में कमानेवाले लोगों के टैक्स और उस व्यापारी के टैक्स भी शामिल होते हैं। मतलब देश के लिए प्रतिदिन ३० लाख रुपए का टैक्स संग्रह वह सिसवा कस्बा करता है। इस तरह यहां से साल का ११० करोड़ आता है। भले ही वह टैक्स विभिन्न पड़ावों पर कई राज्यों में लग कर आया हुआ हो लेकिन अंतिम वसूली तो सिसवा के खरीददार से हुई है तो उन सब राज्यों के सब प्रकार के टैक्स का पोषक तो वह सिसवा का खरीददार ही हुआ न? लेकिन सिसवा के उस व्यापारी, उस खरीददार, वहां के नेता या प्रशासन को यह बात पता नहीं चल पाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसा कोई डाटा ही नहीं तैयार होता है हमारे यहां। अगर यही बिक्री का आंकड़ा सिसवा में ३ करोड़ प्रतिदिन का आता है तो समझ लीजिए कि देश के कर में योगदान ९० लाख प्रतिदिन और ३२८ करोड़ सालाना भी हो सकता है। ऊपर दिए गए आंकड़े उदाहरण और समझने के लिए ही हैं, क्योंकि ऐसा कोई डाटा सार्वजानिक माध्यम में उपलब्ध ही नहीं है। यदि असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने यह विचार पटल पर लाया है कि विकास और राजस्व को एक इकाई के रूप में शामिल कर यदि एक सर्किल ऑफिस से जोड़ेंगे तभी जीडीपी के मापन समेत कई डाटा इकाई वार सामने आएंगे और विकास कार्य तथा राजस्व एक साथ एक दिशा में चलेंगे। पंचायतीराज के लागू होने के बाद को उसे आत्मनिर्भर और सशक्त करने का यह सबसे बड़ा कदम होगा और सहकारी संघवाद के सपने को यह सच में पूरा करेगा। हर जिला, हर तहसील को पता रहेगा कि वह देश की इकोनॉमी में क्या योगदान कर रहे हैं और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है। यह बहुत से क्षेत्रीय विवादों और असंतुलनों के निपटारे में भी सहायक होगा। स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता को बढ़ाएगा। टैक्स के योगदान में भागीदारी के सच से परिचय होने पर नागरिकों में मन में जो गौरवबोध आएगा, वह राष्ट्रवाद को और मजबूत करेगा नौकरशाह समेत राजनेता को और जिम्मेदार बनाएगा।
इसलिए अगर उपायुक्तों के सम्मेलन में सरमा यह कह रहे हैं कि वे जिला इकाई में बड़े पैमाने पर बदलाव ला रहे हैं और उपायुक्त को नियमित प्रशासन के काम के अलावा विकासात्मक मापदंडों पर जिले की समग्र प्रगति पर समय देने की बात कह रहे हैं, तो हमें इसका स्वागत करना चाहिए। बकौल सरमा, उनकी पहली प्राथमिकता सभी जिलों में समान विकास लाना है। एक बार जब हम इसके मूल्यांकन को कर लेते हैं, तो वे चाहते हैं कि कम प्रदर्शन करने वाले उपायुक्त अपने उच्च प्रदर्शन वाले समकक्षों से मिलें।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)