मुख्यपृष्ठस्तंभअर्थार्थ : शेयर मार्केट मुट्ठी में

अर्थार्थ : शेयर मार्केट मुट्ठी में

पी. जायसवाल मुंबई
एक दिन की बात है। गांव के एक लड़के का मैसेज आया कि भईया शेयर मार्वेâट में निवेश शुरू कर रहा हूं, कोई बढ़िया किताब हो तो बताइए, जिससे शेयर मार्केट को समझ सकूं। यह गांव कोई बड़ा गांव नहीं है, नेपाल बॉर्डर का दूरस्थ गांव है। उस लड़के ने शेयर मार्केट का कोई ऐप भी डाउनलोड किया था, जिसका स्क्रीनशॉट उसने भेजा। उसमें उसे २ लाख के निवेश पर करीब ९ फीसदी का लाभ हुआ था। मैं थोड़ा चौंका, क्योंकि ऐसी मान्यता थी कि शेयर मार्केट में निवेश संस्थागत निवेशक शहरों में ही या कुछ लोग ही करते हैं। अगर गांव का व्यक्ति और उसके मोबाइल ऐप पर यह है तो मतलब भारत की एक बड़ी जनसंख्या मोबाइल और डाटा क्रांति के बाद डिजिटल दुनिया को मुट्ठी में कर रही है, जिसमें अब शेयर मार्केट भी शामिल है।
ये दरअसल खुदरा निवेशक हैं, खुदरा निवेशक वे निवेशक होते हैं, जो अपनी बचत सीधे शेयर बाजार में निवेश करते हैं। इन खुदरा निवेशकों ने न केवल निवेशक आधार का विस्तार किया है, बल्कि बाजार के लिए एक मजबूत आधार भी प्रदान किया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च २०२० में डीमेट खातों की संख्या लगभग ४ करोड़ से बढ़कर २०२४ में लगभग १४ करोड़ हो गई है। एनएसई के आंकड़ों से पता चलता है कि २०१९ से २०२३ के बीच पांच सालों में १२ करोड़ से ज्यादा निवेशक रजिस्टर हुए। अकेले जनवरी २०२४ में ५४ लाख से ज्यादा निवेशक जुड़े। बीएसई के अनुसार, ९ फरवरी २०२४ तक रजिस्टर्ड निवेशकों की संख्या करीब १६ करोड़ थी। इसका मतलब है कि भारत में धन के द्वारा धन कमाने की होड़ में १० करोड़ से अधिक नए निवेशक शामिल हुए हैं। उच्च विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) द्वारा पैसे बाहर ले जाने जैसी चुनौतियों के बीच खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी एक रीढ़ की हड्डी और और बफर के रूप में अब कार्य करती है, जिससे बाजार का लचीलापन और स्थिरता दोनों बरकरार रहता है। अगर आज एफपीआई जाते हैं तो उस अंतर को खुदरा निवेशक पाट देते हैं। पहले भारतीय शेयर बाजार की गतिशीलता विदेशी संस्थागत निवेशकों के उत्साह से प्रभावित थी, लेकिन अब यह परिदृश्य नहीं रहा। खुदरा निवेशक अब दैनिक बाजार में लेन-देन का एक बड़ा हिस्सा है। यह उनके बढ़ते प्रभाव और सक्रिय भागीदारी से प्रमाणित भी होता है। खुदरा निवेशकों की भागीदारी और शेयर मार्केट का ८०,००० के पार जाना सिर्फ एक झलक नहीं है, यह भारतीय आबादी द्वारा वित्तीय बाजारों के स्वदेशीकरण के साथ एक गहरे निरंतर एवं स्थायी जुड़ाव को दर्शाता है।
ऐतिहासिक रूप से भारतीयों की पहली पसंद बैंकों में फिक्स्ड डिपॉजिट या राष्ट्रीय बचत पत्र जैसे सुरक्षित विकल्प ही रहते थे। भारतीय निवेशक लाभ की उछाल से ज्यादा सुरक्षा और स्थिरता को महत्व देते थे। इसके पहले तक उन्होंने आमतौर पर शेयर बाजार में कम रुचि दिखाई थी। हालांकि, जब से इंटरनेट की सुलभता, स्मार्ट फोन की संख्या, शेयर ट्रेडिंग के एप और वित्तीय समावेशन के तहत सबके बैंक एकाउंट बढ़े हैं, इनकी संख्या खूब बढ़ी है। हाल के रुझानों से इस व्यवहार में बदलाव का पता चलता है। हमारे गांव के उस युवा निवेशक जैसे अन्य युवा भी शेयर बाजार में निवेश करके और पारंपरिक परिसंपत्तियों से परे अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाकर अब जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं। विशेष रूप से नई पीढ़ी अब सक्रिय रूप से अपना पैसा इक्विटी, म्यूचुअल फंड और ईटीएफ में लगा रहे हैं। हाल के वर्षों में भारतीय इक्विटी में वृद्धि में इस महत्वपूर्ण भागीदारी का प्रमुख योगदान रहा है। इस ट्रेंड ने कई कंपनियों को खुदरा निवेशकों की बढ़ती रुचि का लाभ उठाने के लिए शेयर बाजार के माध्यम से फंडिंग की तलाश करने और अपना आईपीओ लाने के लिए प्रेरित किया है।
इंटरनेट की सुलभता, स्मार्ट फोन की संख्या, शेयर ट्रेडिंग के ऐप, ऑनलाइन और मोबाइल बैंकिंग ने वित्तीय बाजार में इस भागीदारी के लिए एक आधारभूत सरंचना का निर्माण किया है, जिसमें सबका योगदान है। अब शेयर मार्केट इनकी मुट्ठी में आ गया है, जो पहले ब्रोकरों के ऑफिस में बंद रहता था। एक योगदान इसमें कोरोना जैसे काल का भी है, जिसने डिजिटल विकल्पों की तरफ लोगों को जबरदस्ती मोड़ा। कोरोना के बाद डिजिटल निवेश प्लेटफॉर्म बढ़े हैं और इस परिवर्तन में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कुछ साल पहले तक भारत में शेयर बाजार में निवेश संस्थागत निवेशकों के हाथों में छोड़ दिया जाता था, क्योंकि यह माना जाता था कि यह बाजार काफी हद तक जोखिम भरा निवेश है, जिसे आम आदमी बर्दाश्त नहीं कर सकता। संस्थागत निवेशक ही इसके गतिशीलता को निर्धारित करते थे, लेकिन अब इस भागीदारी से यह बीते दिनों की बात हो गई।
वैसे इस बदलाव के कुछ जोखिम भी हैं, क्योंकि उस गांव के लड़के की तरह नए और युवा निवेशक अभी उतने वित्तीय साक्षर नहीं हैं। बहुत से प्रâॉड लोग या शेयर बाजार के संगठित माफिया इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसे में सेबी और शेयर बाजार को आगे आकर आक्रामक रूप से जैसे इनकी संख्या बढ़ रही है, उसे आक्रामक रूप से मार्वेâट की जानकारी और वित्तीय साक्षरता के लिए मार्वेâट ट्यूटोरियल की लर्निंग शुरू की जानी चाहिए। क्योंकि बाजार का मीठा तो अच्छा होता है, लेकिन जिस दिन इसने बड़ा झटका दे दिया तो कई की दुनिया बिखर जाएगी।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)

 

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