मुख्यपृष्ठस्तंभअर्थार्थ : इकोनॉमी का मेटा-इको इफेक्ट है एसवीबी बैंक की घटना

अर्थार्थ : इकोनॉमी का मेटा-इको इफेक्ट है एसवीबी बैंक की घटना

 पी. जायसवाल
मुंबई
जब नियंत्रण से परे दूर किसी घटना के कारण आर्थिक इकोसिस्टम प्रभावित होता है और उसका बृहद प्रभाव किसी दूर के आर्थिक सिस्टम पर होता है तो यह इकोनॉमी का मेटा-इको इफेक्ट होता है। और कमोबेश यही हुआ सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) के साथ। यह मेटा इसलिए की जो हुआ उस पर इस बैंक का कोई नियंत्रण नहीं था। पूर्व में इसके द्वारा लिए गए वित्तीय निर्णय वर्तमान में बदल रहे आर्थिक इकोसिस्टम से मेल नहीं खा पाए और आज यह धराशायी हो गया। कई अन्य के आकलन और नियंत्रण से परे कोरोना के अटैक, फिर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आई मंदी, मंदी से उत्पन्न महंगाई, महंगाई के कारण फेडरल बैंक समेत दुनिया के कई देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि ने ऐसा प्रभाव डाला है, जिसका आज आकलन करना जल्दबाजी होगा। दुनिया आज एक नेटवर्क में बंधी है। और ऐसे में किसी भी आर्थिक घटना का खासकर अमेरिका के किसी वित्तीय प्रतिष्ठान का ठहरे हुए पानी में कंकड़ मारने जैसा है, जिसकी लहर किनारे तक आयेगी। दुनिया के एक नेटवर्क में बंधने के कारण आज इकॉनमी में वैसी ही आश्चर्यजनक घटनाएं हो रही हैं, जैसे शरीर में कोरोना होने के बाद बदलाव हो रहे हों। जिस तरह से हम आज आकलन नहीं कर सकते कि पोस्ट कोरोना इफेक्ट किस किस रूप में सामने आएगा? शरीर को वैâसे बदलाव महसूस करने पड़ेंगे? वैसे ही इतनी सारी घटनाओं के एक साथ घटने से क्या-क्या मेटा-इको इफेक्ट होने वाला है, इसका आकलन कर पाना मुश्किल है। ताजा आकलन यही है कि स्टार्टअप इकोसिस्टम के नेटवर्क में बड़ी हलचल होने वाली है। सिलिकॉन वैली बैंक में जो आज हुआ है, वह ऊपर वर्णित घटनाओं का मेटा-इको इफेक्ट ही है। कोरोना के बाद जब सबका हाथ तंग था तभी स्टार्टअप कंपनियों के टॉप लाइन एप्रोच की समीक्षा होनी शुरू हुई। चारों तरफ से विमर्श शुरू हुआ कि स्टार्टअप कंपनियां ओवरवैल्यूड हैं। यह नंबर और टर्नओवर देखती हैं। बॉटम लाइन प्रॉफिट एप्रोच यदा कदा ही रहता है। इससे स्टार्टअप कंपनियां डिफेंसिव मोड में चली गर्इं। कोरोना, रूस यूक्रेन युद्ध, मंदी, महंगाई, महंगाई के क्रमिक कारणों से बैंकों ने ब्याज दर बढ़ाना शुरू किया। ब्याज दर बढ़ने से ऋण और जमा दोनों के ब्याज बढ़ने लगे। स्टार्टअप कंपनियां दोहरी मार झेलने लगीं, उनमें निवेश करनेवाले निवेशकों और फंड के पास बढ़े ब्याज पर निवेश के विकल्प के कारण उनकी तरफ निवेश का फ्लो कम होने लगा। कुछ निवेशक तो अपना निवेश निकालने भी लगे। अब स्टार्टअप कंपनियां जब नगदी से तंग होने लगीं तो उन्होंने बैंकों से अपना पैसा निकालना चाहा। सिलिकॉन वैली बैंक जिसके सबसे अधिक ग्राहक टेक और स्टार्टअप कंपनियां थी। उनके इस अप्रत्याशित व्यवहार ने बैंक के सामने संकट खड़ा कर दिया। स्टार्टअप कंपनियां जहां अपना जमा किया पैसा निकालने लगीं, वहीं जिन स्टार्टअप कंपनियों को ईएमआई देना था उन्हें उसे देने में दिक्कत होने लगी तथा ब्याज दर बढ़ने के कारण कई स्टार्टअप के लिए मार्वेâट से फंड उठाना मुश्किल हो गया। बैंक की नकद निकासी में वृद्धि और आवक में गिरावट होने लगी। इस संकट से निपटने के लिए बैंक ने अपने कई निवेशों को मजबूरन ऐसे समय में बेच दिया, जब उनकी कीमत काफी नीचे चल रही थी। सिलिकॉन वैली बैंक ने अपने पास आए जमा की काफी कम राशि को अपने पास रखा था और बाकी को रिटर्न के लालच में निवेश कर दिया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सिलिकॉन वैली बैंक जिसके पास २०२१ में १८९ अरब डॉलर का डिपॉजिट था, उसने पिछले कुछ सालों में अरबों डॉलर के बॉन्ड खरीदे थे। ८ मार्च को जब बैंक ने बताया कि उसने कई सिक्योरिटीज को घाटे में बेच दिया और इससे उसे भारी नुकसान हुआ तो अफरातफरी मच गई और बैंक से ग्राहकों ने पैसे निकालने शुरू कर दिए। दो दिन पहले संकट संभालने के लिए बैंक ने ग्राहकों से पैसे नहीं निकालने की अपील की थी, जिसने आशंकाओं के संकट को और बढ़ा दिया। अपनी नगदी स्थिति मजबूत करने के लिए बैंक ने २.२५ अरब डॉलर के नए शेयर बेचने की घोषणा की और इससे कई बड़ी वैâपिटल फर्मों में डर का माहौल बन गया और फर्मों ने कंपनियों को बैंक से अपना पैसा वापस लेने की सलाह दी। इन्हीं सबके बीच बैंक की मूल कंपनी एसवीबी फाइनेंशियल ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज हुई। ९ मार्च को इसके शेयर करीब ६० फीसदी गिर गए। इससे दूसरे बैंकों के शेयरों को भी भारी नुकसान हुआ। पहले से मंदी की आशंका से जूझ रही दुनिया में एसबीवी संकट ने तनाव और बढ़ा दिया और दुनिया भर के शेयर बाजार प्रभावित होने लगे। यह तनाव अभी और बढ़ेगा यह तय है। चूंकि कंपनी स्टार्टअप्स में निवेश के लिए जानी जाती है इसलिए पूरी दुनिया का स्टार्टअप इकोसिस्टम इससे प्रभावित होगा। दुनियाभर के बैंकिंग सेक्टर के शेयर भी इससे प्रभावित होंगे। फिलहाल तो संकट को देखते हुए बैंकिंग रेगुलेटर्स ने फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (एफडीआईसी) को इसका रिसीवर नियुक्त किया है, जो बैंक के वित्तीय कामों और जमाकर्ताओं के हितों को देखेगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बैंक में निवेशकों और ग्राहकों की १४ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा राशि जमा है, लेकिन समस्या यह है कि इनमें से ८९ फीसदी राशि का बीमा नहीं हुआ है। इन पैसों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अब एफडीआईसी के पास ही है। रिसीवरशिप का आमतौर पर मतलब है कि एक बैंक की जमा राशि को किसी अन्य स्वस्थ बैंक की ओर से ग्रहण किया जाएगा या एफडीआईसी जमाकर्ताओं को बीमित सीमा तक भुगतान किया जाएगा। यह राशि अधिकतम २,५०,००० डॉलर होती है। एफडीआईसी के मुताबिक, सिलिकॉन वैली बैंक की कुल संपत्ति १७ लाख करोड़ रुपए (२०९ बिलियन डॉलर) से ज्यादा है। एसवीबी अमेरिकी स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिहाज से बड़ा निवेशक था। यह बैंक सिलिकॉन वैली और तकनीकी स्टार्टअप्स में निवेश पर केंद्रित था। इसकी वेबसाइट के अनुसार, इसने कुल अमेरिकी स्टार्टअप के लगभग आधे और अमेरिकी उद्यम-समर्थित तकनीकी और स्वास्थ्य कंपनियों में ४४ फीसदी के साथ कारोबार किया। नेशनल वेंचर वैâपिटल एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार, इस बैंक में अधिक छोटे बिजनेसेस के खाते हैं और इनमें २,५०,००० डॉलर से अधिक रकम जमा है। अब बैंक के दिवालिया होने के बाद ये अब उनके लिए लंबे समय तक उपलब्ध नहीं रहने की आशंका जताई जा रही है। जो संकट को और बढ़ाने वाला है। दुनिया चूंकि एक जाल में बंधी है इसलिए इस वर्तमान संकट का मेटा-इको इफेक्ट भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम पर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। इसने भारत में कई स्टार्टअप में निवेश कर रखा है। सरकार भी प्रोएक्टिव हो गई है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने रविवार को बताया कि वह स्टार्टअप के संस्थापकों और सीईओ के साथ अगले सप्ताह बैठक करेंगे, ताकि इस संकट से निपटा जा सके।  फिलहाल तो इस मेटा-इको इफेक्ट का लक्षण आधारित इलाज ही करना होगा।
(लेखक अर्थशास्त्र के वरिष्ठ लेखक एवं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विषयों के विश्लेषक हैं।)

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