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मेहनतकश : ग्रेजुएट डिब्बावाला!

आनंद श्रीवास्तव

मुझे शिक्षा की चाह पहले से ही थी और मैं चाहता था कि डिब्बा वितरण क्षेत्र में भी शिक्षित लोग आने चाहिए। बस यही सोचकर मैंने काम करते-करते अपना ग्रेजुएशन पूरा किया, ऐसा कहना है ‘मुंबई जेवण डब्बे वाहतूक मंडल’ के सदस्य सुनील लक्ष्मण काटे का। मूलत: पुणे के सुनील काटे लोगों के घर से डिब्बा लेकर उनके ऑफिस तक पहुंचाने का काम करते हैं। मुंबई के इन डिब्बेवालों के टिफिन सर्विस मैनेजमेंट की चर्चा देश-विदेश में की जाती है। सुबह घरों से डिब्बा लेकर यह लोग अपने एक विशेष सिस्टम के तहत उक्त व्यक्ति के दफ्तर तक पहुंचाते हैं। सुनील काटे का कहना है कि पहले टिन के डिब्बे होते थे, जिन पर एक विशेष मार्किंग की जाती थी। इन्हीं मार्विंâग के आधार पर डिब्बे सही व्यक्ति तक पहुंचाए जाते थे। परंतु अब समय बदलता जा रहा है। अब मॉडर्न युग में टिन के डिब्बों की जगह विशिष्ट प्लास्टिक के डिब्बों ने ले ली है और अब डिब्बे वैâरी बैग के माध्यम से भेजे जाने लगे हैं। इसलिए मार्विंâग की जगह सीधे लोकेशन को ही लिखा जाता है। इसलिए अब बदलते दौर में इस क्षेत्र में भी अंग्रेजी या अन्य भाषाओं का ज्ञान व लिखाई-पढ़ाई आवश्यक होती जा रही है।
इस बात को ध्यान में रखकर सुनील काटे को महसूस हुआ कि ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की जाए और उन्होंने अपना काम करते-करते यशवंत राव चव्हाण मुक्त विद्यापीठ से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। उनसे प्रेरित होकर कई और डिब्बेवाले अब ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे हैं।
घाटकोपर-पश्चिम में रहनेवाले सुनील काटे अपनी युवावस्था में ही अपने इस पारिवारिक पेशे में जुट गए। लेकिन पढ़ाई की चाह हमेशा बनी रहती थी, जिसे आखिरकार सन २००४ में उन्होंने पूरा किया। अब वह अपने बच्चों को भी पढ़ा-लिखा रहे हैं। सुनील काटे कहते हैं कि वर्तमान में पढ़ाई अति आवश्यक है। मैं तो कहूंगा कि सभी को कम से कम ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करनी ही चाहिए। मेरा यह खानदानी पेशा है लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे कुछ नया करें। वैसे भी यह बदलाव का दौर है, हो सकता है हमारे डिब्बा के क्षेत्र में भी कुछ बदलाव हो, जिसमें शिक्षित होना बेहद जरूरी हो, तब पढ़ाई ही काम आएगी।

(यदि आप भी मेहनतकश हैं और अपने जीवन के संघर्ष को एक उपलब्धि मानते हैं तो हमें लिख भेजें या व्हाट्सएप करें।)

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