आनंद श्रीवास्तव
सन १९७१ में उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रामपुर निवासी राजेंद्र गुप्ता ने अच्छी नौकरी पाने के लिए मुंबई का सफर तय किया था। लेकिन मुंबई में उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई तो उन्होंने खुद का कोई व्यवसाय करने का निर्णय लिया। वे करीरोड में रहते थे, इसलिए पास में ही सब्जी का छोटा-मोटा धंधा शुरू किया। कुछ साल करीरोड में रहने के बाद राजेंद्र गुप्ता १९७६ में प्रतीक्षा नगर आकर बस गए। उनका परिवार एक साथ रहता था। यहीं उनके चारों बच्चों शीतल, आनंदी, आशा और विवेक की पढ़ाई-लिखाई हुई।
राजेंद्र गुप्ता के पिताजी बीमार रहते थे। परिवार में बड़ा होने के नाते घर की सारी जिम्मेदारी इनके कंधों पर थी। अपने बीमार माता-पिता की सेवा करते हुए अपने भाइयों के साथ राजेंद्र गुप्ता अपना व्यवसाय संभालने के साथ-साथ अपनी बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। अब उनके बच्चे भी ग्रेजुएट हो गए हैं।
उनकी बड़ी बेटी शीतल ने एमडी कॉलेज से बी.एससी. की पढ़ाई पूरी की और आज मनपा के हेल्थ डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं, उनकी दूसरी बेटी आनंदी बी़ एससी आईटी की पढ़ाई के बाद निजी कंपनी में नौकरी कर रही है। तीसरी बेटी आशा को मोनो रेल में नौकरी मिल गई है जबकि बेटा विवेक इसी वर्ष ग्रेजुएट हुआ है। राजेंद्र गुप्ता चाहते हैं कि खुद ग्रेजुएट होने के बाबजूद जिंदगी भर सब्जी बेची लेकिन उनके बच्चों की जिंदगी अच्छे से गुजरे।
इनका कहना है कि मैं और मेरे भाइयों ने बड़ी मेहनत करके अपना घर चलाया है। यूपी से मुंबई आकर बसते समय शुरुआत में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पुलिस, मनपा और स्थानीय गुंडों की डांट खानी पड़ी, ग्राहकों के इंतजार में धूप और छांव में अठारह-अठारह घंटे सब्जी की दुकान पर बैठना पड़ता था और धंधा नहीं होने पर सारा माल उठाकर फेंकना भी पड़ता था। कई बार मेरे बच्चे भी स्कूल से छूटकर सीधे दुकान पर चले आते और मेरा हाथ बंटाते उन दिनों को अब मैं भुला देना चाहता हूं। अपनी जिंदगी में सिर्फ अच्छी यादों को संजोकर रखना चाहता हूं।