आनंद श्रीवास्तव
भारत-पाक बंटवारे के समय मुंबई आकर बसे परिवारों में से एक है रानी घनश्यामदास सुहांदा का परिवार। `सिंध प्रांत से भारत आए सिंधियों ने अपना सब कुछ खो दिया था। वो देश के अलग-अलग हिस्सों में सरकारी बैरक में जाकर बसे, कुछ ने अपना अलग आशियाना बनाया, लेकिन मेरे माता-पिता व ज्यादातर रिश्तेदार उल्हासनगर, सायन, कोलीवाड़ा और चेंबूर में आकर बस गए और हम लोग चेंबूर आ गए। इस बंटवारे में हमने अपना सब कुछ खो दिया था। लेकिन आज अपने दम पर खड़े हैं।’ ऐसा कहना है रानी सुहांदा का। हालांकि, उनके पति घनश्यामदास सुहांदा अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनसे प्रेरणा लेकर वो उनका बनाया हुआ व्यवसाय संभाल रही हैं। बंटवारे के बाद मुंबई में आकर बसने के बाद से इनकी तीसरी पीढ़ी ने अपने आपको स्थापित कर लिया है। रानी सुहांदा के दोनों बच्चों ने मुंबई में ही पढ़ाई की और अब अपने पिता की दुकान संभाल रहे हैं। इनकी इलेक्ट्रिक वस्तुओं की दुकान है। इसी दुकान से इनका घर चलता है। दोनों बच्चों ने दुकान संभालते हुए ग्रेजुएशन पूरा किया। इनका बड़ा बेटा दीपक और छोटी बेटी नीता ने हमेशा से ही पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाया है। दीपक के बेटे के रूप में रानी सुहांदा की चौथी पीढ़ी फिलहाल स्कूल में है। रानी सुहांदा अपने परिवार से काफी खुश हैं। वो कहती हैं कि मेरे बच्चे ही अब मेरे लिए सब कुछ हैं। नई पीढ़ी अब इस व्यवसाय को आगे बढ़ाएगी और उसे विकसित करेगी। ऐसी उम्मीद उन्होंने जताई है। फिलहाल, इन दिनों सिंधी समाज का त्योहार `चालिया पर्व’ चल रहा है। इसे मनाने में उनका परिवार जुटा हुआ है। रानी सुहांदा भी अपना इलेक्ट्रिक शॉप बंद होने के बाद इस पूजा में शामिल होने जाती हैं। उनके दोनों बच्चे भी अपनी मां को पूजा-पाठ में सहयोग करते हैं। जब रानी सुहांदा कहीं जाती हैं तो उनकी बेटी नीता दुकान पर बैठती है और व्यवसाय संभालती है। रानी सुहांदा का कहना है कि बेटी नीता ग्रेजुएट होने के बाद एक इवेंट कंपनी में कार्यरत थी। लेकिन जब से इनके पिता का देहांत हुआ है, तब से वह मेरे साथ दुकान संभालती है। बेटा नौकरी पर जाता है इसलिए दुकान खोलने से लेकर बंद करने तक नीता मेरे साथ रहती है। इस बात की मुझे बेहद खुशी है।
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