धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
]महायुति सरकार के शासन में महाराष्ट्र के चारों मेंटल अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती मानसिक मरीजों की सुरक्षा रामभरोसे चल रही है। आलम यह है कि इन अस्पतालों में आए दिन मरीजों के बीच झड़प और मारपीट होते रहती है। इन घटनाओं में रोगी एक दूसरे को काटकर घायल तक कर देते हैं। इसके साथ ही कर्मचारियों पर भी हमला कर देते हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष २०२१ से लेकर अब तक मरीजों में हुई झड़प के कुल ४६५ मामलों में २७८ लोग घायल हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र के ठाणे, नागपुर, रत्नागिरी और पुणे मेंटल अस्पतालों में विभिन्न मानसिक रोगों के शिकार मरीजों को उनके परिजन इलाज के लिए भर्ती करते हैं। लेकिन इन अस्पतालों में पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध और मानव बल की कमी के कारण सभी मरीजों पर नजर रखना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सीसीटीवी वैâमरों की मदद ली जा रही है, जो नाकाफी साबित हो रही है। ऐसे में आए दिन उनके बीच मारपीट और झड़प की घटनाएं होती रहती हैं। इसे रोकने में अस्पताल प्रशासन भी असफल साबित हो रहा है। दूसरी तरफ महायुति सरकार इसे लेकर ठोस कदम नहीं उठा रही है, जिससे मेंटल अस्पतालों में यह समस्या और भी जटिल होती जा रही है। हाल ही में आरटीआई एक्टिविस्ट चेतन कोठारी ने इसे लेकर जानकारी मांगी थी, जिसमें सरकार की इस उदासीनता का खुलासा हुआ है।
कोविड से २१ मरीजों और कर्मचारियों की हुई मौत
आरटीआई में जानकारी दी गई है कि साल २०२१ से लेकर अब तक मेंटल अस्पतालों में कुल ९२४ मरीज और कर्मचारी कोरोना महामारी के शिकार हुए हैं। इनमें से २१ की मौत हुई है। ठाणे मेंटल अस्पताल में ३०७ मरीज और १०५ कर्मचारी संक्रमण के शिकार हुए हैं। इनमें से १० मरीज और दो कर्मचारियों की मौत हुई है।
नागपुर मेंटल अस्पताल में सबसे ज्यादा मामले
चेतन कोठारी ने कहा कि आरटीआई में बताया गया है कि सबसे ज्यादा मामले नागपुर मेंटल अस्पताल में सामने आए हैं। यहां मरीजों में झड़प की कुल १९७ घटनाएं हुई हैं। इसके बाद पुणे में १६६ और ठाणे में १०३ घटनाएं हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा १६६ मरीज पुणे, जबकि ठाणे मेंटल अस्पताल में ११२ मरीजों के घायल होने की जानकारी दी गई है। इसके साथ ही ठाणे मेंटल अस्पताल में मरीजों द्वारा मेडिकल स्टाफ पर किए गए १० हिंसात्मक हमलों में १० कर्मचारी घायल हुए हैं। स्टाफ द्वारा बरती गई बर्बता की एक जानकारी सामने आई है। वहीं रत्नागिरी मेंटल अस्पताल में भी ऐसे मामले सामने नहीं आए हैं। इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी से किसी भी अस्पताल में कोई मौत नहीं हुई है।