—रोहित माहेश्वरी
अयोध्या एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार वजह राम मंदिर नहीं, बल्कि ४० किमी दूर बसे मिल्कीपुर की वजह से। १० सीटों के उपचुनाव में मिल्कीपुर हॉट सीट बन चुकी है। मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होनेवाला उपचुनाव सपा और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। सीएम योगी भाजपा की ओर से तो अवधेश प्रसाद सपा की तरफ से इस सीट के प्रभारी हैं।
राम मंदिर निर्माण के बावजूद भारतीय जनता पार्टी फैजाबाद लोकसभा सीट हार गई। इसे लेकर देश-दुनिया में भाजपा की खूब किरकिरी भी हुई। मिल्कीपुर से विधायक रहे अवधेश प्रसाद इस बार सपा से सांसद चुने गए हैं। ऐसे में यह सीट रिक्त हुई है, जिस पर उपचुनाव होना है। सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद पर भरोसा जताया है, जबकि भाजपा में अभी टिकट पर मंथन चल रहा है, लेकिन भाजपा लोकसभा चुनाव में हुई हार का बदला मिल्कीपुर उपचुनाव जीतकर लेने के लिए मजबूत व्यूह तैयार कर रही है। मिल्कीपुर उपचुनाव की तिथि भले ही अभी घोषित न हो, लेकिन भाजपा यहां पर पिछले डेढ़ माह से लगातार जनसंपर्क व कार्यक्रमों से मतदाताओं के बीच में पैठ बनाने में जुटी है।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट विषम समीकरण वाली सीट मानी जाती है। इस सीट के सियासी वजूद में आने के बाद से बीजेपी सिर्फ यहां दो बार ही जीत सकी है, जिसमें पहली बार वर्ष १९९१ और दूसरी बार वर्ष २०१७ में जीती है। सियासी समीकरण के लिहाज से बीजेपी के लिए मुश्किल माने-जानेवाली इस सीट पर कमल खिलाने का तानाबाना बुनने में योगी जुट गए हैं।
सीएम योगी ने इस चुनाव की कमान खुद संभाली है। पखवाड़ेभर में ही वह दो बार दौरा कर चुके हैं और अब तीसरा दौरा भी उनका प्रस्तावित है। इस लिहाज से यह सीट प्रदेश में वीआईपी हो चुकी है, जिस पर दोनों प्रमुख दलों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। भाजपा के लिए जहां लोकसभा चुनाव की हार का बदला लेकर लाज बचाना अहम है तो अवधेश प्रसाद के लिए अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने की भी चुनौती है।
पिछले दिनों रामनगरी में अपने दो दिवसीय अयोध्या दौरे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिल्कीपुर उपचुनाव में जीत का ताना बाना बुनने में जुटे रहे। पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उनमें नई ऊर्जा का संचार करने के साथ ही सियासी गुणा गणित भी बैठाते दिखाई पड़े। जनप्रतिनिधियों को भी साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संगठनात्मक ढांचे की समीक्षा करने के साथ ही सीएम योगी ने इस बात पर जोर दिया कि मिल्कीपुर उपचुनाव में चुनाव जीतना ही नहीं, बल्कि जीत का अंतर बड़ा करना है। उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव व इस वर्ष संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिले मतों की भी जानकारी लेकर गुणा गणित समझाया। मुख्यमंत्री ने बैठक में कहा कि एक-एक बूथ पर नजर रखें और उसकी समीक्षा करें। बातचीत के दौरान सीएम ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में ३०० बूथ ऐसे थे, जहां बीजेपी का एजेंट नहीं था। इसलिए हर बूथ की मॉनीटरिंग होनी चाहिए।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट से रामलहर के दौरान १९९१ में भाजपा से मथुरा प्रसाद तिवारी विधायक बने थे। इसके बाद २०१७ में दूसरी बार भाजपा का खाता खुला और गोरखनाथ बाबा विधायक बने, वहीं सपा से १९९६ में मित्रसेन यादव, १९९८, २००२ व २००४ में रामचंद्र यादव, २०१२ और २०२२ में अवधेश प्रसाद विधायक बने। इस लिहाज से इस सीट पर सपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है।
मिल्कीपुर उपचुनाव के लिए भाजपा में टिकट की दावेदारी की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है। अलग-अलग फोरम पर अब तक २४ से अधिक पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से आवेदन के साथ बायोडाटा दिया जा चुका है। पार्टी नेतृत्व प्रत्याशी चयन में जल्दबाजी के मूड में नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से उपचुनाव में इस सीट की कमान संभालने के बाद स्थानीय संगठन ने पूरा ध्यान अब यहीं पर केंद्रित कर दिया है।
लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार का बदला लेने के लिए मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव को भाजपा ने प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसकी कमान संभाल रहे हैं, लेकिन जातिगत समीकरणों व पुराने नतीजों को देखकर अभी भी भाजपा की राह आसान नहीं लग रही है। हालांकि, यह चुनाव भाजपा व सपा सांसद अवधेश प्रसाद दोनों के लिए अहम माना जा रहा है, जिसे लेकर दोनों दल एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे और चुनाव बेहद रोमांचक होने की उम्मीद है। पब्लिक की मानें तो सुरक्षित सीट का जातिगत पैâक्टर फिलहाल सपा के पक्ष में दिख रहा।
स्वतंत्र पत्रकार