अभिषेक कुमार पाठक / मुंबई
महानगर की विकास योजनाओं के नाम पर जमीन अधिग्रहण करनेवाला एमएमआरडीए (मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण) अब रियल इस्टेट अॅथॉरिटी बनता नजर आ रहा है। हाल ही में एमएमआरडीए ने ४२,७९३ स्क्वायर मीटर जमीन के ७ प्लॉट बेचने के लिए टेंडर जारी किया है। यह कदम सवालों के घेरे में है, क्योंकि यह जमीन किसी प्रोजेक्ट या जरूरी कामों के लिए अधिग्रहित की गई थी, मगर अब इसका इस्तेमाल मुनाफा कमाने के लिए किया जा रहा है।
विकास योजनाओं में होनी चाहिए इस्तेमाल
मुंबई जैसे शहर में जमीन अधिग्रहण अपने आप में एक बड़ी बात होती है। एमएमआरडीए जैसी संस्थाओं को यह जिम्मेदारी दी जाती है कि वे जमीन का सही उपयोग करें और इसे विकास योजनाओं में लगाएं। मगर जब इन्हीं जमीनों को बेचने का फैसला किया जाता है, तो यह दर्शाता है कि मुनाफे के चक्कर में सार्वजनिक हितों की अनदेखी की जा रही है। इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब ये जमीनें अधिग्रहित की गई थीं, तब इन्हें प्रोजेक्ट और जरूरी कामों के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल किया गया? एमएमआरडीए के इस कदम से साफ जाहिर होता है कि उसने अपने असली उद्देश्य से भटक कर जमीन का व्यापार करना शुरू कर दिया है।
मुंबई के बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए इस्तेमाल होनी चाहिए
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ये जमीनें सही तरीके से उपयोग की जातीं, तो मुंबई जैसे महानगर में बुनियादी ढांचे में सुधार और विकास की संभावनाएं काफी बढ़ सकती थीं। मगर एमएमआरडीए के इस पैâसले ने लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया है कि क्या यह संस्था अब सार्वजनिक भलाई के बजाय अपने मुनाफे पर ध्यान केंद्रित कर रही है। एमएमआरडीए का यह कदम न केवल उसके ऊपर सवाल उठाता है, बल्कि अन्य सरकारी एजेंसियों के लिए भी एक चिंताजनक संकेत है। अगर जमीन अधिग्रहण का उद्देश्य मुनाफा कमाना ही रह गया है, तो आम जनता की भलाई और विकास की दिशा में की जा रही योजनाओं का क्या होगा? यह एक गंभीर विषय है, जिस पर विचार करना आवश्यक है।