• एक ऐप ब्लॉक होने पर आतंकी दूसरा बनवा लेते हैं
फोन पर गोपनीय बातचीत करना सुरक्षित नहीं रहता। खुफिया एजेंसियां इन्हें ट्रैक कर लेती हैं। इसलिए आतंकवादियों ने अब एक दूसरा रास्ता खोज लिया है। देश में सक्रिय आतंकवादी खुफिया एजेंसियों की रडार से बचने के लिए अब फोन ऐप्स का सहारा ले रहे हैं। ये सुरक्षित होते हैं और इन्हें पकड़ पाना थोड़ा मुश्किल होता है। हालांकि, खुफिया एजेंसियां भी इनके पीछे लगी रहती हैं। हाल ही में एजेंसियों ने ऐसे १४ ऐप्स का पता लगाया, जिनके सहारे ये आतंकी बातचीत किया करते थे। इसके बाद सरकार ने इन सभी ऐप्स को बैन कर दिया। नई तकनीक के आने से आतंकी भी इसका खूब उपयोग कर रहे हैं। खास बात यह है कि सरकार कितने ऐप्स बैन करेगी क्योंकि ये आतंकी बहुत चालाक हैं। जब कोई ऐप सरकार की निगाह में आ जाता है तो ये आतंकी खुद उसे हटा देते हैं और उसकी जगह पर नया ऐप बनवा लेते हैं।
मोबाइल ऐप्स का अधिकतर उपयोग जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए हो रहा है। इन ऐप्स का इस्तेमाल कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा अपने साथियों और समर्थकों से बातचीत करने के लिए किया जाता है।
ऐप्स का कोई प्रतिनिधि नहीं
मजे की बात है आतंकी जिन ऐप्स का उपयोग कर रहे थे, उसका हिंदुस्थान में कोई प्रतिनिधि ही नहीं था। सरकार ने उन्हें तलाश करने की बहुत कोशिश की पर कोई नहीं मिला, तब उन्हें ब्लॉक किया गया। असल में ‘जांच एजेंसियां ओवरग्राउंड वर्कर्स और आतंकवादियों द्वारा आपस में बातचीत करने के लिए किस चैनल का इस्तेमाल किया जाता है, उस पर नजर रखती हैं। एक मैसेज को ट्रैक करते समय पता चला कि मोबाइल ऐप का देश में कोई प्रतिनिधि नहीं है और उस पर होनेवाली गतिविधियों को ट्रैक करना मुश्किल है।
हाईटेक नेटवर्क का जाल
सरकार के इस कदम के बाद घाटी में सक्रिय अन्य खुफिया एजेंसियों की मदद से ऐसे ऐप्स की सूची तैयार की गई, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं। पता चला कि देश में आतंकियों ने एक नए हाईटेक नेटवर्क का जाल बिछाया है। इसके जरिए आतंकी संगठन आइसिस और अलकायदा दोनों मिलकर स्लीपर सेल तैयार कर रहे हैं। यह संगठन इसके लिए ऐप्स का सहारा ले रहे हैं। ये आपस में संचार के लिए एक ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह आतंकी संगठन देश के अलग-अलग राज्यों में सक्रिय है।
बनाते हैं स्लीपर सेल
ये आतंकी संगठन नफरत फैलाने और अपने संगठन को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। ये धार्मिक भावनाओं को भड़काने और नफरत फैलाने वाली पोस्ट करते हैं। फिर जो मुस्लिम युवा इसकी पोस्ट को लाइक और इन्हें फॉलो करते हैं, उन्हें टारगेट किया जाता है। उनसे ऐप के जरिए बातचीत की जाती है और फिर उन्हें स्लीपर सेल बना लिया जाता है।