• हावर्ड स्कूल की स्टडी का खुलासा
• रील्स और वीडियो बना रहे हैं बीमार
मोबाइल फोन आज हर किसी की जरूरत बन चुका है। इसके बिना काम ही नहीं चलता। इससे अपने दूरदराज के परिजनों से बातचीत तो
होती ही है, दुनिया के तमाम उद्योग-व्यवसाय इसीके सहारे चल रहे हैं। मगर सोशल मीडिया की एंट्री ने मोबाइल फोन के इस्तेमाल का दायरा काफी विस्तृत कर दिया है। फेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, टिंडर आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने अब लोगों को हर वक्त बिजी कर दिया है। वे मोबाइल फोन पर अपनी निगाहें टिकाए रहते हैं। सुबह उठने के साथ हाथ में मोबाइल और रात को सोने के वक्त भी मोबाइल पर टिकी निगाहों ने इसे एक बीमारी में तब्दील कर दिया है। इससे लोगों की न सिर्फ आंखें खराब हो रही हैं बल्कि कलाई, गर्दन व कमर के दर्द को भी बढ़ा दिया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, लोग अपने मोबाइल पर वीडियो और रील्स पर रील्स देखकर थक चुके हैं, लेकिन आदत से मजबूर हैं। अगर आपको भी ऐसी आदत है तो बदल डालिए। हावर्ड मेडिकल स्कूल की स्टडी के मुताबिक रील्स देखते रहने और बनाते रहने वाली दुनिया मास साइकोजेनिक इलनेस की मरीज हो सकती है। स्टडी के मुताबिक जरूरत से ज्यादा वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्मों पर रहने वाले लोगों में इस रोग के लक्षण हैं। ऐसे लोग अक्सर दूसरों के सामने बातचीत करते वक्त टांगे हिलाते रहते हैं। ये एक तरह का हाइपर एक्टिव रेस्पांस है और ये इस बीमारी का पहला लक्षण है।
आपने देखा होगा कि ज्यादातर लोग किसी वीडियो को लंबे समय तक नहीं देख पाते और दो से तीन मिनट में एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे और चौथे वीडियो पर चले जाते हैं। लगातार ऐसा करते रहने से इंसान का दिमाग किसी भी चीज पर अटेंशन के साथ फोकस न करने का आदी हो जाता है और बेचैन रहता है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर कमेंट्स और लाइक्स ऐसे लोगों को असल दुनिया से दूर कर देते हैं। कम लाइक्स और कमेंट्स लोगों को डिप्रेशन के शिकार भी बनाते देखे गए हैं।
दूसरी बीमारियां
नींद की कमी, सिर दर्द, माइग्रेन। ये वो बातें हैं जो हर कोई समझ सकता है कि ६-७ इंच की स्क्रीन में तेज लाइट में देर तक रहने से लोगों में सिर दर्द और थकान बढ़ रही है। माइग्रेन के मरीजों को तो डॉक्टर रोशनी से दूर रहने की सलाह देते हैं। मोबाइल की रोशनी भी उसमें शामिल है। लगातार झुक कर मोबाइल की स्क्रीन में देखते रहने से गर्दन और कमर का दर्द बढ़ जाता है। सोशल मीडिया इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। न्यूयॉर्क स्पाइन एंड रीहैब सेंटर के अनुसार, आपकी गर्दन जितनी ज्यादा झुकती जाती है, उसके ऊपर उतना ही बोझ पड़ता है और लगातार पड़ रहा बोझ रीढ़ की हड्डी की बनावट को स्थायी तौर पर बिगाड़ सकता है।
रीढ़ की हड्डी पर वजन
गर्दन बिल्कुल न झुकी हो तो रीढ़ की हड्डी को ५ किलो के बराबर वजन का अहसास होता है। गर्दन १५ डिग्री झुकने पर १२ किलो, ३० डिग्री झुकने पर १८ किलो, ४५ डिग्री झुकने पर २२ किलो और ६० डिग्री झुकने पर २७ किलो वजन रीढ़ की हड्डी पर पड़ सकता है।
फेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, टिंडर आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने अब लोगों को हर वक्त बिजी कर दिया है। वे मोबाइल फोन पर अपनी निगाहें टिकाए रहते हैं। सुबह उठते के साथ हाथ में मोबाइल और रात को सोने के वक्त भी मोबाइल पर टिकी निगाहों ने इसे एक बीमारी में तब्दील कर दिया है।’