सामना संवाददाता / मुंबई
विकास और तमाम खर्चे के बहाने केंद्र की मोदी सरकार जब-तब आरबीआई से पैसे मांगती रहती है। अब एक बार फिर मोदी सरकार ने आरबीआई के सामने हाथ पसारे हैं। इसके बाद आरबीआई केंद्र की झोली में २.११ लाख करोड़ रुपए डालने जा रहा है।
मिली जानकारी के अनुसार, आरबीआई वित्त वर्ष २०२३-२४ के लिए केंद्र सरकार को २.११ लाख करोड़ रुपए देने जा रहा है। रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में बतौर लाभांश अब तक की सबसे अधिक रकम दिए जाने का पैâसला लिया गया। यह रकम केंद्रीय बजट में रिजर्व बैंक और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों से मिलने वाले अनुमानित लाभांश की दोगुनी है। इसके बाद भी रिजर्व बैंक ने आकस्मिक बफर ६.५ फीसदी के ऊंचे स्तर पर बरकरार रखा है। पिछले वित्त वर्ष में आरबीआई ने सरकार को ८७,४१६.२२ करोड़ रुपए सौंपे थे। बता दें कि
बिमल जालान समिति की सिफारिश के मुताबिक, नया आर्थिक पूंजी ढांचा लागू होने के बाद २०१८-१९ में केंद्रीय बैंक ने सरकार को १.७६ लाख करोड़ रुपए दिए थे। इस ढांचे के तहत यह पता लगाने का तरीका ईजाद किया गया था कि रिजर्व बैंक से सरकार को कितना अधिशेष मिलना चाहिए? महामारी के कारण पैदा हुई वृहद आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए और आर्थिक गतिविधियों को सहारा देने के लिए रिजर्व बैंक ने २०१८-१९ और २०२१-२२ के बीच आकस्मिक जोखिम बफर ५.५ फीसदी ही रखा था। २०२२-२३ में यह ६ फीसदी हो गया। वित्त वर्ष २०२४ में आरबीआई ने आकस्मिक जोखिम बफर बढ़ाकर ६.५ फीसदी कर दिया। जालान समिति ने इसे आरबीआई की बैलेंस शीट के ५.५ से ६.५ फीसदी के दायरे में रखने का प्रस्ताव दिया था। इस बारे में केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘बोर्ड ने वित्त वर्ष २०२३-२४ के लिए आकस्मिक जोखिम बफर बढ़ाकर ६.५ फीसदी करने का निर्णय लिया है।’ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, वित्त वर्ष २०२४ में देसी और विदेशी संपत्तियों से ज्यादा आय होने की वजह से आरबीआई के पास अधिक अधिशेष था। बार्कलेज की क्षेत्रीय अर्थशास्त्री श्रेया सोढानी ने कहा, ‘अधिशेष का भुगतान रिजर्व बैंक के मुनाफे से ही नहीं जुड़ा है बल्कि २०१९ में अपनाए गए आर्थिक पूंजी ढांचे के तहत यह पूंजी का प्रोविजन भी है।’