मुख्यपृष्ठस्तंभबेरोजगारी के मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार

बेरोजगारी के मोर्चे पर नाकाम मोदी सरकार

राजेश माहेश्वरी
लखनऊ

वैश्विक महामारी कोविड-१९ और लॉकडाउन की वजह से हिंदुस्थान में पिछले तीन वर्षों में रोजगार सृजन की स्थिति काफी खराब रही है। लेकिन सच यह भी है कि देश में रोजगार के हालात कभी भी अच्छे नहीं रहे हैं और महामारी के पहले भी ये लगातार बद से बदतर होते गए हैं। यहां यह भी समझना होगा कि बेरोजगारी के आंकड़ों का संग्रहण करते समय केवल उन्हीं लोगों को रिपोर्ट किया जाता है, जो कहते हैं कि वे नौकरी पाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोई काम नहीं मिल पा रहा है। सरकार के लाख दावों के बावजूद स्थिति में कोई बड़ा बदलाव होता दिखता नहीं है।
भारत एक विशाल जनसंख्या वाला राष्ट्र है। जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है, व्यक्तियों का आर्थिक स्तर और रोजगार के अवसर उतनी ही तेज गति से गिरते जा रहे हैं। हिंदुस्थान जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए यह संभव नहीं है कि वह इतनी बड़ी जनसंख्या को रोजगार दिलवा सके। रोजगार की तलाश में दिन-रात एक कर रहे व्यक्तियों की संख्या, साधनों और उपलब्ध अवसरों की संख्या से कहीं अधिक है। यही कारण है कि आज भी अधिकांश युवा बेरोजगारी में ही जीवन व्यतीत करने के लिए विवश है।
आजादी के बाद शिक्षा के कुशल प्रबंधन से आज देश की शिक्षा दर में सराहनीय इजाफा हुआ है। आजादी के समय भारत की साक्षरता दर मात्र १२ फीसदी थी, जो बढ़कर लगभग ७४ज्ञ् हो गई है। भारत फिलहाल अमेरिका और चीन की तुलना में युवा देश है और आगामी दशकों में भी इसके युवा बने रहने की संभावना है। भारत की ५० फीसदी से अधिक आबादी की उम्र २५ साल या उससे अधिक है। देश की ४६.९ फीसदी आबादी की उम्र २५ साल से कम है। हर साल युवा वर्ग बड़ी संख्या में अपनी शिक्षा पूर्ण कर निकल रहे हैं। एक बहुत बड़ी भीड़ के रूप में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।
बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जब कोई व्यक्ति रोजगार की तलाश कर रहा है पर दुर्भाग्यवश रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे है। शिक्षित बेरोजगारी किसी भी देश की प्रगति में एक बहुत बड़ी बाधा होती है। शिक्षित बेरोजगारी तब होती है जब किसी शिक्षित व्यक्ति को उसकी योग्यतानुसार नौकरी नहीं मिल पाती है। जब बड़ी संख्या में युवा वर्ग ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त करते हैं लेकिन सीमित नौकरी के अवसर उन्हें हताश कर देते हैं। शिक्षित बेरोजगारी की दर भारत और अन्य देशो में हर साल बढ़ रही है। युवाओं को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है और कुछ एक को ही नौकरी मिल पाती है और शेष को अपनी योग्यता से निम्न पदों की नौकरी करनी पड़ती है।
बेरोजगारी से जुड़ा मसला केवल बढ़ती जनसंख्या तक ही सीमित नहीं है। हमारी व्यवस्था और उसमें व्याप्त कमियां भी इसके लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं। भ्रष्टाचार ऐसी ही एक सामाजिक और नैतिक बुराई है, जिसका अनुसरण हमारी सरकारें और व्यवस्था बिना किसी हिचक के करती हैं। हमारी सरकारें यह आश्वासन देती हैं कि उद्योग की स्थापना हो जाने के बाद किसानों, जिनकी भूमि अधिग्रहित की गई है, के परिवार में से एक व्यक्ति को उसी उद्योग में नौकरी दी जाएगी। इसके विपरीत होता यह है कि उद्योग लग जाने तक किसान मुआवजे की राशि से परिवार का पालन-पोषण करता है और जब उसे किसी भी प्रकार की नौकरी नहीं मिलती तो गरीबी और तंगहाली के जीवन से मुक्ति पाने के लिए वह आत्महत्या के लिए विवश हो जाता है। पिछले नौ वर्षों में ऐसे मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है।
मोदी सरकार को केंद्र की सत्ता संभाले लगभग नौ वर्ष का समय हो गया है। आम चुनाव के समय भाजपा ने देश के युवाओं को करोड़ों रोजगार देने की बात की थी, लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। सरकार के उपाय आबादी की जरूरत के लिहाज से ऊंट के मुंह में जीरा ही कहे जा सकते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में उच्च बेरोजगारी दर और अकुशल कार्यबल के कारण शिक्षित युवा अकुशल श्रमिक वर्ग की नौकरी पाने हेतु संघर्ष कर रहे हैं। इसलिए गरीब और अकुशल कार्यबल के पास कोई काम नहीं बचा है। बेरोजगार युवाओं की तेजी से बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी है। और नरेंद्र मोदी की सरकार को तुरंत इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए। देश में बेरोजगारी की दर कम किए बिना विकास का दावा करना कभी भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।

(लेखक उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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