सामना संवाददाता / मुजफ्फरपुर
बिहार के पूर्व नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा और उनके पुत्रों ने बेशकीमती सरकारी जमीन बेच दी। यह मामला तब उजागर हुआ जब जमीन खरीदने वाले के दाखिल खारिज का आवेदन मुशहरी अंचल से अस्वीकृत हो गया। बताया गया कि पूर्व मंत्री और उनके परिवार के लोगों द्वारा बेची गई जमीन के तीन टुकड़ों में एक बिहार सरकार की है। इसका रकबा ४.२ डिसमिल है।
जमीन खरीदने वाले सूतापट्टी निवासी ऋषि कुमार ने मामले की शिकायत डीएम सुब्रत कुमार सेन से करते हुए इसकी जांच और विधि सम्मत कार्रवाई का आग्रह किया। डीएम के निर्देश पर जांच कराई गई। मुशहरी के अंचलाधिकारी महेंद्र प्रसाद शुक्ला ने जांच रिपोर्ट में जमीन के बिहार सरकार के नाम दर्ज होने की पुष्टि की है। डीएम को दिए आवेदन में ऋषि कुमार ने कहा कि तिलक मैदान स्थित जमीन की खरीद के लिए ब्रोकरों के माध्यम से बात हुई। तीन अगस्त २०१९ को ४.२० डिसमिल, ०.३२ डिसमिल एवं ३.९८ डिसमिल जमीन के लिए बात तय हुई। इसका मुख्तारनामा किया गया। तीनों टुकड़े की जमीन की कीमत दो करोड़ १५ लाख रुपए तय हुई। राशि देने के बाद १९ मई २०२० को जमीन के तीनों टुकड़ों का निबंधन उसके और अंकित रोशन के नाम से किया गया। अंचल कार्यालय में इसकी जमाबंदी के लिए आवेदन दिया गया। इसमें यह पता चला कि खेसरा संख्या ३२९/५७१ की ४.२० डिसमिल जमीन बिहार सरकार की है। उसे धोखे में रखकर बिहार सरकार की जमीन की बिक्री की गई, जबकि वर्ष २००२-०३ में ही तत्कालीन मुशहरी सीओ की रिपोर्ट में उक्त भूमि को बिहार सरकार का बताया गया था। इसके बावजूद पूर्व मंत्री का उक्त जमीन पर कब्जा रहा। बाद में इसकी बिक्री कर दी। इसे देखते हुए पूर्व मंत्री, उनकी पत्नी एवं उनके पुत्र राजीव कुमार शर्मा, संजीव कुमार शर्मा पर विधि सम्मत कार्रवाई की जाए।
शक के घेरे में निबंधन और अंचल के तत्कालीन सीओ
डीएम को दिए गए आवेदन एवं मुशहरी सीओ की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व मंत्री और उनके परिवार ने उक्त जमीन अन्नपूर्णा देवी, पति महंत श्याम नारायण दास से ली थी। वर्ष २००२ में जमीन के दाखिल खारिज के लिए दिए गए आवेदन को मुशहरी अंचल कार्यालय ने स्वीकृति दे दी थी। मगर इसमें खेसरा संख्या ३२९/५७१ को बिहार सरकार की बताते हुए इसका १,८७० वर्गफीट क्षेत्र छोड़कर ६,७८९ वर्गफीट हिस्से की जमाबंदी की स्वीकृति दी थी। करीब १८ साल बाद जमीन की बिक्री के दौरान निबंधन कार्यालय में इस गड़बड़ी को नहीं पकड़ा गया। अस्वीकृत किए गए हिस्से की भी रजिस्ट्री कर दी गई। इसके बाद वर्ष २०२१ में तत्कालीन मुशहरी सीओ की कार्यशैली भी शक के घेरे में आ गई है। यह इसलिए कि तत्कालीन सीओ सुधांशु शेखर ने ३० जनवरी २०२१ को तीनों टुकड़ों के दाखिल खारिज के आवेदक ऋषि कुमार के आवेदन को अस्वीकृत कर दिया। इसके बाद पुन: मुशहरी अंचल कार्यालय में ही दाखिल खारिज का आवेदन दिया गया। इसमें ४.२० डिसमिल रकबा वाले भाग को छोड़कर अन्य दो हिस्सों के दाखिल खारिज का आवेदन दिया गया।