सामना संवाददाता / नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव-२०२४ के आखिरी चरण के मतदान तक आते-आते एक बात साफ हो गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच चुनावी प्रचार में सीधा मुकाबला हुआ है। हालांकि, दोनों ओर से कई दूसरे महारथी भी मैदान में डटे रहे लेकिन अगर चेहरों की बात करें तो आखिर तक आते आते चुनाव मोदी बनाम राहुल पर आकर ही खत्म हुआ है। अब ४ चार जून को नतीजे बताएंगे कि कौन किस पर भारी पड़ा और किसकी बात पर जनता ने ज्यादा भरोसा किया।
राहुल ने किया नेतृत्व
राहुल अपनी इस ताकत को समझते हैं इसलिए उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के राष्ट्रीय स्तर पर खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ लड़ाई में झोंक दिया। अपनी ‘भारत जोड़ो’ पदयात्रा से राहुल ने न सिर्फ अपनी छवि बदली, बल्कि उन मुद्दों को भी धार दी, जो अब विपक्ष के प्रमुख चुनावी मुद्दे बन चुके हैं। अपनी दूसरी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी ने उन दलों को भी अपने साथ जोड़ा, जो पिछली यात्रा में साथ आने से कतराते रहे थे। नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने के नारे के साथ शुरू हुआ उनका सफर चुनाव आते-आते बेरोजगारी, महंगाई, अग्निवीर, महिला सशक्तीकरण और संविधान बचाने के धारदार मुद्दों में बदल गया। जहां कांग्रेस के प्रभाववाले क्षेत्रों में तो राहुल चुनाव प्रचार की कमान संभाले रहे, वहीं बिहार में तेजस्वी, उत्तर प्रदेश में अखिलेश, तमिलनाडु में स्टालिन, झारखंड में चंपई सोरेन, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ चुनाव प्रचार साझा करके राहुल गांधी विपक्षी दलों का केंद्र बिंदु बन गए और जाने-अनजाने मोदी के मुकाबले जनता ने राहुल गांधी को खड़ा कर दिया और इसमें क्षत्रपों की ताकत भी शामिल हो गई।