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मोदी की निरंकुशता, क्या विपक्ष अब जेल से चुनाव लड़ेगा!

सुषमा गजापुरे
लोकसभा के चुनावों की घोषणा के बाद उम्मीद थी कि जांच एजेंसियों की कार्रवाई में थोड़ी शिथिलता आएगी, पर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मोदी पर किसी भी किस्म की आचार संहिता का कोई असर नहीं है। उनकी छापे मारने की कार्रवाई में और तेजी आ गई है और उनके आचार में एक आक्रोश/गुस्सा नजर आ रहा है, जो उनकी घबराहट और तिमिलाहट का प्रतीक माना जा रहा है। शायद उन्हें पहली बार इस बात का आभास हो रहा है कि इस बार सत्ता उनके हाथों से खिसक भी सकती है। यही बात उन्हें हर गुजरते दिन के साथ और निरंकुश बना रही है। या फिर ये कहा जाए कि विश्लेषक इन गिरफ्तारियों और छापों में एक पैटर्न देखते हैं कि छापे मारने की कार्रवाइयां मोदी सरकार के उस पैटर्न का हिस्सा हैं, जिसमें उनकी सरकार ने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया है।
अभी कुछ हफ्ते पहले वित्तीय अपराध एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पद से इस्तीफा देने के कुछ घंटों बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सोरेन पर भ्रष्टाचार का आरोप है। हालांकि, उनकी पार्टी ने इस आरोप से इनकार किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी निरंकुशता की शृंखला का एक हिस्सा ही तो है। इसी हफ्ते ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की विस्तृत रिपोर्ट में करीब-करीब २५ राजनेताओं की पूरी राजनैतिक कुंडली दी गई है, जिन्होंने अपना दल छोड़कर भाजपा को अपना लिया। इन सब पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे, पर भाजपा में जाने के बाद या तो उनकी फाइल्स बंद हो गर्इं या फिर उन्हें आनन-फानन में दोषमुक्त करार दे दिया गया। तात्पर्य यह कि ये सभी भाजपा की गंगा में स्नान करके पवित्र हो गए। इनमें प्रमुख नाम हिमंता बिस्वा सरमा, प्रफुल्ल पटेल, हसन मुश्रीफ, अजीत पवार, नारायण राणे, छगन भुजबल, अशोक चव्हाण, कृपाशंकर सिंह, बाबा सिद्दीकी, सुवेंदु चौधरी व अन्य कई नाम हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके सहयोगियों के विरुद्ध पिछले साल नवंबर में चुनाव से ठीक पहले ईडी अधिकारियों ने केस दायर किए थे। भाजपा ने उन पर अवैध कोयला खनन सौदे, महादेव ऐप सहित कई घोटालों का आरोप लगाया और इन आरोपों को राज्य चुनाव जीतने के लिए एक प्रमुख मुद्दे के रूप में इस्तेमाल किया। ये जांच एजेंसियां ​​भाजपा के लिए संपर्क सूत्र/वसूली तंत्र का हिस्सा बन गई हैं। वे अपनी ओर से मोदी सरकार के लिए सौदा करते हैं। यदि आप मोदी के साथ जाते हैं, तो आपको इन सबसे मुक्त कर दिया जाएगा और एक उज्ज्वल भविष्य का मौका मिलेगा। अगर ये बात नहीं माने तो इन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी। एक बात तो यहां पर पूरी तरह से तय है कि भाजपा कोई सीमा नहीं जानती और वे पूरी तरह से हमलावर मोड में हैं, विपक्ष पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों को हथियार बनाया जा रहा है।
२०१४ के बाद जब से मोदी सत्ता में आए हैं, सीबीआई और ईडी द्वारा उठाए गए ९५ प्रतिशत मामले विपक्ष के राजनेताओं के खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इनसे संबंधित याचिकाओं पर पैâसला देने से इनकार कर दिया है और ये कहा है कि राजनेताओं को नागरिकों से ऊंचे स्थान पर नहीं रखा जा सकता, वे कानून के तहत विशेष उपचार या गिरफ्तारी से छूट की मांग नहीं कर सकते। नरेंद्र मोदी का हर प्रतिद्वंद्वी एक प्रकार से अदालतों के ही चक्कर काट रहा है और राहत की उम्मीद कर रहा है, जो उसे निचली अदालतों में मिलती हुई कहीं से भी नजर नहीं आ रही है। यह भी एक प्रकार से मोदी की रणनीति है कि विपक्षी राजनेताओं को इतने अदालतों के चक्कर में फंसा दिया जाए कि वो चुनाव ही न लड़ सकें।
केजरीवाल की गिरफ्तारी ने हालांकि कई चुनावी समीकरण बदल दिए हैं। दिल्ली, हरियाणा, गुजरात व अन्य कई राज्यों में भाजपा अब बैकफुट पर जाती हुई नजर आ रही है। उसका मुख्य कारण जनता द्वारा मोदी सरकार की निरंकुश नीतियों की कटु आलोचना करना है। भाजपा के अंदर भी एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया है, जो मोदी की पूर्ण निरंकुशता से प्रसन्न नहीं है और इस किस्म के भितरघात से मोदी-शाह की जोड़ी अब थोड़ा आतंकित नजर आ रही है। जहां मोदी के विरोध में स्वर मुखर हो रहे हैं, वहीं मोदी अपने आक्रोश, आक्रमण और निरंकुशता को और बढ़ाते जा रहे हैं, परंतु अब ये सब कदम मोदी को हर राज्य में हानि पहुंचाते नजर आ रहे हैं। अभी आए कई ताजा सर्वे में भाजपा हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में बड़े नुकसान की ओर बढ़ रही है। संजय सिंह की रिहाई शायद इस दबाव का एक हिस्सा है, जहां राजनैतिक नुकसान को कम करने का प्रयास किया जा रहा है, पर शायद अब बहुत देर हो चुकी है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस सारे तंत्र में एक बहुत बड़ा निर्णायक हिस्सा जनता का भी है। आक्रोशित जनता ने पहले भी कई सत्ताधारियों को सत्ता से उखाड़ फेंका है और वो अब भी कुछ ऐसा करना चाहेगी, इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है। २०२४ का चुनाव निश्चय ही कई दलों और राजनेताओं की धड़कनों को रोकने वाला है।
(स्तंभ लेखक आर्थिक और समसामयिक विषयों पर चिंतक और विचारक हैं)

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