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मोदी के दावे जमीं पर… भारत के लिए ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनना आसान नहीं

यह कहना दुस्साहस है कि भारत मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में ग्लोबल लीडर बन जाएगा। दुर्भाग्य से भारत जैसे देश में सार्वजनिक प्रशासन में प्रतिक्रिया समय, पारदर्शिता, जवाबदेही, गति और उत्कृष्टता में अभी भी सुधार की जरूरत है।’

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही यह दावा कर रहे हों कि भारत तेजी से ग्लोबल मैन्युपैâक्चरिंग हब के रूप में उभर रहा है, लेकिन अब उनके दावे जमीं पर धड़ाम होते नजर आ रहे हैं। दरअसल, इन दिनों इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति का बयान इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। देश की प्रमुख आईटी कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने मैन्युपैâक्चरिंग क्षेत्र में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने की भारत की क्षमता पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि चीन की जीडीपी भारत से छह गुना ज्यादा है। ऐसे में भारत के लिए मैन्युपैâक्चरिंग हब जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना एक दुस्साहस है। देश में मैन्युपैâक्चरिंग क्षेत्र में विकास के लिए सरकार की भागीदारी और सार्वजनिक प्रशासन में सुधार लाना जरूरी है।
नारायण मूर्ति ने आगे कहा कि चीन को पीछे छोड़ने और भारत को ग्लोबल मैन्युपैâक्चरिंग हब बनाने के सपनों में देश को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत के लिए मैन्युपैâक्चरिंग हब और ग्लोबल लीडर जैसे भारी-भरकम शब्दों के इस्तेमाल पर आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि चीन पहले ही दुनिया की फैक्ट्री बन चुका है। दुनिया के सुपरमार्केट्स और घरों में लगभग ९० प्रतिशत चीन में निर्मित वस्तुओं का इस्तेमाल हो रहा है। चीन का जीडीपी भारत की तुलना में छह गुना अधिक है। ऐसे में यह कहना हमारे लिए बहुत ही दुस्साहस है कि भारत मैन्युपैâक्चरिंग क्षेत्र में ग्लोबल लीडर बन जाएगा। जीडीपी वह महत्वपूर्ण चुनौती है, जिसे भारत को पाटने की जरूरत है।

चीन में काम करते हैं, हमारी तरह बहस नहीं
बंगलुरु में इलेक्ट्रॉनिक्स सिटी इंडस्ट्रीज असोसिएशन के टेक समिट-२०२४ में कहा है, `चीन का जीडीपी भारत का ६ गुना है। वहां लोग काम करते हैं, हमारी तरह बहस नहीं करते।’ उन्होंने कहा, `चीन पहले ही दुनिया की पैâक्ट्री बन चुका है।’ बकौल मूर्ति, भारत का ग्लोबल मैन्युपैâक्चरिंग हब बनने का सपना अभी बहुत दूर है। समिट के दौरान नारायण मूर्ति ने कहा कि जहां आईटी इंडस्ट्री निर्यात पर फलता-फूलता है। वहीं, मैन्युपैâक्चरिंग क्षेत्र घरेलू योगदान और सरकारी समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर करता है। मैन्युपैâक्चरिंग के लिए कुल मिलाकर घरेलू योगदान अधिक है।

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