पी. जायसवाल
मुंबई
चुनाव के दौरान टीवी पर एक चर्चा में एक युवक की बातचीत सुनने को मिली। उसमें भूमि के बदले मुआवजा पर उसका मत था कि उसे मुआवजा नहीं चाहिए, जमीन चाहिए या जमीन के बदले जमीन। क्योंकि उस जमीन से उसकी आने वाली पीढ़ियां भी कमा-खा सकती हैं, जबकि पैसा तो खत्म भी हो सकता है। लब्बोलुआब यह है कि किसान के लिए यह जमीन किसी कारखाने से कम नहीं और उसकी मिट्टी उस कारखाने की किसी प्लांट मशीनरी से कम नहीं, जिसमें एक छोटा सा बीज डालने पर मिट्टी मशीन की तरह प्रोसेस कर एक उत्पाद की तरह उसे बाहर निकालती है। अत: यह भूमि प्रकृति के द्वारा प्रदत्त एक कारखाना है और मिट्टी इसकी मशीन। अत: कृषि को उद्योग, खेत को कारखाना और मिट्टी को मशीन समझ युवाओं को वैसे इसके लिए तैयार करना चाहिए, ताकि कृषि से विमुख हो रहे युवा इसकी तरफ मुड़ सकें।
आज के एमबीए एवं इंजीनियरिंग या आईआईटी में भी पोस्ट हार्वेस्टिंग के कोर्स और रोजगार की जानकारी ज्यादा मिलेंगी। कोर्स की ड्राफ्टिंग में ही कृषि एवं खाद्य इंजीनियरिंग को एक साथ जोड़ देने से शिक्षा एवं रोजगार का अधिक फोकस मशीन आधारित खाद्य इंजीनियरिंग वाले पक्ष पर ज्यादा चला गया। इसीलिए रोजगार मशीन आधारित खाद्य इंजीनियरिंग में ज्यादा मिलेंगे, लेकिन प्रकृति प्रदत्त कारखाने पर काम करने वाले किसान को कृषि उद्यमी बनने के विकल्प नहीं मिलते, जबकि दुनिया में सबसे अधिक उत्पादन कृषि का है। दुनिया के प्रत्येक देशों की जीडीपी महंगाई और अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि उत्पादन है। दुनिया के कई देशों मे कृषि उत्पादन नगण्य है। मसलन, खाड़ी देश जहां निर्यात की अनंत संभावना है। यह पूरी दुनिया का एक ऐसा उत्पादन है, जिसकी पूंजीगत और मशीनरी लागत अन्य उद्योगों की तुलना में नगण्य है। कृषि की मांग कभी भी कम नहीं हो सकती है, आबादी बढ़ने के साथ ही इसकी मांग बढ़ती जाती है। उपभोग के मामले में यह उत्पादों की श्रेणी में पूरे भारत एवं विश्व मे १०० प्रतिशत व्यक्ति और यहां तक जानवरों के द्वारा दिन-रात उपभोग किया जाता है।
कृषि संभावनाओं के दृष्टिकोण से बात करें तो हम आज भी अपने कृषि एवं मानव संसाधन क्षमता का कुछ प्रतिशत ही मूल्य प्राप्त कर पाते हैं, क्योंकि इन कृषि उत्पादों के लिए न तो अनुकूल राज्य की नीतियां न तो अनुकूल कृषि बाजार न भंडारण की व्यवस्था है और न ही यहां का युवा वर्ग रोजगार के अवसर के रूप में कृषि को अपना रहा है और न ही वह यहां टिक रहा है। अब तो हालत यह है कि देश का किसान भी यही चाहता है कि उसका बेटा या बेटी आगे चल के खेती न करे।
कृषि की तरफ युवा उदासीनता का एक प्रमुख कारण शैक्षिक पाठ्यक्रमों में चाहे वो एमबीए हो या इंजीनियरिंग हो इसको इसकी महत्ता से परिचित नहीं कराना है। कृषि की तरफ युवा उदासीनता का दूसरा कारण भारत में पेशेवर शिक्षा के बाद युवा वर्ग बहुतायत गांव में रहना नहीं चाहता है, कारण गांव में शहरों जैसी सुविधा नहीं है। युवाओं की इस उदासीनता के कारण कृषि भूमि का सर्वोत्तम प्रयोग नहीं हो पा रहा है, पैदा किए जा सकने वाले संभावित उत्पादों और स्थानीय श्रम और ब्रेन का उपयोग नहीं हो पा रहा है, पलायन हो रहा है।
अगर सरकार शहरों की तरह पलायन रोककर इन मूलभूत और आधारभूत सुविधावों को गांवों और गांवों के आस-पास बसे कस्बों के इर्द- गिर्द विकसित कर दे। जैसे कि २४ घंटे बिजली, इंटरनेट बच्चों के लिए अच्छा स्कूल, अच्छी चिकित्सा सुविधा और परिवहन के लिए अच्छी सड़क। अगर कस्बों को विकसित करने पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो एक बड़े आबादी को वहां पर रोका जा सकता है। गांव के लिए उनका प्रथम शहर और प्रथम बाजार कस्बा ही होता है। अत: कस्बों को ध्यान में रखकर कृषि उद्यमिता पर कार्य करना चाहिए। ऐसे करने से युवा अपने बूढ़े होते हुए मां-बाप के साथ रहेगा। युवा अपनी पत्नी और बड़े होते बच्चे के साथ रहेगा, जिससे बड़े होते हुए नौनिहालों को पिता का प्यार और दादा-दादी का मार्गदर्शन और संचित ज्ञान मिलेगा। युवा और उनके नौनिहालों को स्वस्थ वातावरण मिलेगा तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा और पूरा परिवार डिप्रेशन से दूर रहेगा। परिवार और समाज में सहकारिता का विकास होगा, जिससे जोतों का बंटवारा नहीं होगा। परिवार और समाज में सौहार्दता के साथ समृद्धि और खुशहाली आएगी। युवा के वहां पर निवास करने से वहां खरीददारी ज्यादा होगी और नकदी संकट की समस्या समाप्त होगी। स्थानीय लोगों का जागरूक युवाओं के साथ रहने से उन्हे नूतन मार्गदर्शन और तकनीक का ज्ञान होता रहेगा। रियल इस्टेट की महंगाई की समस्या समाप्त हो जाएगी। युवा अपनी कमाई का मोटा हिस्सा शहर में फिर से एक नए आशियाने बसाने में खर्च करने से बच जाएगा और यही बचत कहीं पर वह चल पूंजी के रूप मे प्रयोग करके ज्यादा लाभ कमाएगा। युवाओं के गांव में रहने से गांव को भी इनके सानिध्य और सामर्थ्य के अनेक लाभ मिलेंगे और ये युवा अपने नए सोच से अपने क्षेत्र की राजनीति से लेकर अर्थ तक क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे। जीवन यापन के खर्च भी कम होंगे अत: बचत ज्यादा होगी, बचत ज्यादा होगी तो विनियोग ज्यादा होगा और विनियोग ज्यादा होगा तो देश की जीडीपी बढ़ेगी और सर्वांगीण ग्रोथ होगा।
(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री व सामाजिक तथा राजनैतिक विश्लेषक हैं।)