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महाराष्ट्र में नहीं चलेगा मोदी का मैजिक

एग्जिट पोल को इंडिया पर भरोसा राज्य में चली सत्ता विरोधी लहर

३३५ से सट्टा बाजार की हुई थी शुरुआत
२९० सीटों पर आकर रुकी गणना
३०० सीटों पर परसेप्शन मैनेजमेंट के बाद पहुंची

सामना संवाददाता / मुंबई

चुनाव आयोग ने अचानक मतदान प्रतिशत के बारे में बुनियादी जानकारी देने पर रोक लगा दी, जबकि पहले यह नियमित रूप से जारी किया जाता रहा था। इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। एक कारण यह भी है कि मोदी और शाह अपनी साख खो रहे हैं। खासकर, महाराष्ट्र में मोदी-शाह का प्रभाव लगातार कम हो रहा है। इस बात की जानकारी मोदी-शाह को भी है। खासकर, ४८ लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में मोदी-शाह और भाजपा को सबसे तीव्र सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा है। महाराष्ट्र विपक्षी गठबंधन के पक्ष में रुझान देनेवाला सबसे बड़ा राज्य साबित हो सकता है। यह भविष्य में मोदी और भाजपा के खिलाफ विपक्षी राजनीति की मजबूत एकजुटता का भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

शायद इसीलिए चुनाव आयोग ने मतदाताओं के मतदान से जुड़ी जानकारी आम करने से रोक दिया है। जानकारों की मानें तो मोदी इस नैरेटिव को नियंत्रित और कमजोर करना चाहते थे कि कम मतदान का आशय है कि प्रधानमंत्री अपनी चमक खो रहे हैं और २०१४ तथा २०१९ में भाजपा को सत्ता में लाने वाले मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं। पूरे भारत से खबरें आ रही है कि वर्ष २०१४ और २०१९ का ‘मोदी मैजिक’ इस बार गायब है, क्योंकि चुनाव व्यापक रूप से लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र और राज्य स्तर पर लड़े गए हैं, जहां बेरोजगारी, महंगाई और ग्रामीण संकट पूरे भारत में आम विषय रहे।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो महाराष्ट्र में गुस्सा मुख्य रूप से केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ है। मोदी और शाह महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के खिलाफ इस असंतोष से अच्छी तरह वाकिफ हैं। एक जानकार ने बताया कि मोदी ने महाराष्ट्र में नकारात्मक माहौल को शायद बहुत पहले ही भांप लिया था और इसीलिए चुनाव की घोषणा के बाद से उन्होंने राज्य का करीब १८ बार दौरा किया। यह अभूतपूर्व है। अगर कोई सोलापुर, छत्रपति संभाजीनगर और नासिक जिलों से गुजरता है तो सड़कों पर लोगों का गुस्सा साफ देखा जा सकता है। नासिक जिले के लासलगांव स्थित एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी में किसानों, व्यापारियों और अन्य संबद्ध आर्थिक एजेंटों का एक बड़ा इको सिस्टम है। वे इस बात से बहुत परेशान हैं कि केंद्र ने छह महीने पहले प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और प्याज की कीमतें ७५ प्रतिशत से अधिक गिर गर्इं, जिससे उनका जीवन और आजीविका प्रभावित हुर्इं। लासलगांव प्याज मंडी के अध्यक्ष बालासाहेब रामनाथ क्षीरसागर ने कहा कि पहले प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण सरकारें गिरती थीं। इस बार प्याज की कीमतों में गिरावट के कारण सरकार गिरेगी। उन्होंने जोड़ा कि मोदी सरकार ने भारतीय प्याज के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य तय करके पाकिस्तान को वैश्विक प्याज बाजार पर कब्जा करने की अनुमति दी है, यह निर्यात मूल्य पाकिस्तान द्वारा दुनियाभर में निर्यात किए जा रहे प्याज की कीमतों से कहीं अधिक है। पाकिस्तान ने भारत को बाजार से बाहर कर दिया है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो पहले चरण के मतदान के बाद कुछ हफ्तों तक शेयर बाजारों में गिरावट का रुख भी यही संकेत दे रहा था कि नतीजे मोदी और शाह द्वारा आधे-अधूरे राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद से किए गए ‘४०० पार’ के दावों से अलग हो सकते हैं। सट्टा बाजार की शुरुआत भाजपा की ३३५ सीटों से हुई थी, लेकिन तीसरे चरण तक यह घटकर २९० पर आ गई और मोदी-शाह के ‘परसेप्शन मैनेजमेंट’ के बाद अब यह फिर से ३०० पर पहुंच गई है।

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