मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : कमीशन

किस्सों का सबक : कमीशन

डॉ. दीनदयाल मुरारका

प्राचीन बड़ौदा राज्य के मेहसाणा जिले में ए.आर. शिंदे नामक जज कार्यरत थे। वे अत्यंत ईमानदार और स्पष्टवादी थे। बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव के हृदय में शिंदे के प्रति गहरी श्रद्धा थी। महाराज जब भी विदेश जाते, उन्हें अपने निजी सहायक के रूप में हमेशा अपने साथ अवश्य ले जाते। एक बार प्रâांस की यात्रा के दौरान महाराज ने शिंदे की सलाह पर पेरिस के एक बड़े ज्वेलरी शॉप से अत्यंत कीमती रत्न खरीदे।
अगले दिन दुकानदार का एक प्रतिनिधि शिंदे के पास आया और उनसे बोला, सर आपका कमीशन चेक से दिया जाए या नकद भुगतान से? प्रतिनिधि की बात सुनकर शिंदे हैरान रह गए। वे प्रतिनिधि से बोले, कमीशन किस बात का? प्रतिनिधि बोला, सर्राफा की दुकानों में यह चलन है कि अच्छे ग्राहक लानेवालों को कमीशन दिया जाता है। शिंदे ने जवाब दिया कि आपके यहां जो भी प्रथा हो, किंतु मैं सरकारी कर्मचारी हूं और कमीशन नहीं ले सकता। प्रतिनिधि ने फिर जोर देकर कहा कि यह तो हमारी दुकान की परिपाटी है। मैं यह बात महाराजा के समक्ष भी स्पष्ट कर सकता हूं।
शिंदे ने कहा, आप कमीशन की राशि को महाराजा के बिल में से कम करके बिल बना दीजिए। कमीशन पर तो ग्राहक का हक होना चाहिए, न कि उस व्यक्ति का जो उसे दुकान में लाता है। शिंदे के आगे प्रतिनिधि की एक भी नहीं चली। उसने कमीशन काटकर बिल बना दिया और बोला, सर आपकी ईमानदारी की सूचना महाराष्ट्र तक अवश्य जानी चाहिए। शिंदे ने कहा, इस बात का कभी किसी से जिक्र न करें। इस बात को यहीं दबा दें। इस पर प्रतिनिधि ने कहा धन्य है भारत और धन्य है वहां के लोग।

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