मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : वास्तविक मेहनताना

किस्सों का सबक : वास्तविक मेहनताना

डॉ. दीनदयाल मुरारका

बेंजामिन फ्रैंकलिन का शुरुआती जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण था। उन्हें हमेशा अपने भाई के ताने सुनने को मिलते थे। एक दिन अपने भाई के व्यवहार से तंग आकर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। वह बोस्टन से न्यूयॉर्क पहुंचे। काफी कोशिशों के बावजूद उन्हें कोई काम नहीं मिला। आखिरकार कई जगह भटकने के बाद वह कीमर नामक छापेखाने में पहुंचे। वहां के कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि यहां कोई काम नहीं मिल सकता।
वहां से जब वह निराश लौट रहे थे, तभी प्रेस के मालिक कीमर ने उन्हें आवाज दी और कहा, `मेरी एक मशीन खराब पड़ी है। क्या तुम उसे ठीक कर सकते हो?’ मशीन को देखकर फ्रैंकलिन ने कहा, `मैं इसे ठीक कर सकता हूं, पर इसको ठीक करने में दिनभर लग सकता है।’
किमर ने उसे दिनभर की मजदूरी देने का वादा किया, लेकिन बेंजामिन ने मशीन को दोपहर के पहले ही ठीक कर दिया। मालिक ने उन्हें पूरे दिन की मजदूरी देकर विदा करना चाहा, पर फ्रैंकलिन ने यह कह कर आधे पैसे वापस कर दिए कि मैं आधे पैसे का हकदार हूं, क्योंकि मैंने आधे दिन ही मजदूरी की है।
उसकी इस बात का मालिक पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने बेंजामिन को एक और बिगड़ी हुई मशीन ठीक करने को कहा और मशीन ठीक करने के साथ ही बेंजामिन ने किमर का दिल भी जीत लिया। तुम्हारे अंदर परिश्रम और ईमानदारी ऐसे गुण हैं, जो तुम्हें भविष्य में बहुत आगे ले जाएंगे। तुम दुनिया के लिए बहुत कुछ करोगे। उसकी यह बात सही निकली। अपने इन्हीं गुणों के सहारे प्रैंâकलिन ने अभूतपूर्व उपलब्धियां अर्जित कीं।

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