मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : सेवा परम धर्म है

किस्सों का सबक : सेवा परम धर्म है

डॉ. दीनदयाल मुरारका

जब अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। अमेरिकी सेना की एक टुकड़ी में एक युवक काम करता था। सेना की उसी टुकड़ी में उस युवक का एक करीबी मित्र भी काम करता था। एक बार युवक का मित्र बीमार पड़ गया। मित्र के घर में कोई नहीं था। अब युवक को दो काम संभालने पड़ते थे। दिन में वह बीमार मित्र की सेवा में लगा रहता और रात में पहरेदारी करता था। एक दिन जब वह पहरा दे रहा था तो अत्यधिक थकान के कारण उसे नींद आ गई और वह काम पर ही सो गया।
कुछ ही देर में वह सोता हुआ पकड़ लिया गया। युवक को गिरफ्तार कर लिया गया और उसके खिलाफ सैन्य अदालत में मुकदमे की कार्रवाई शुरू हो गई। युवक ने किसी तरह अब्राहम लिंकन के पास प्रार्थना पत्र भेजकर निवेदन किया कि उसे क्षमा किया जाए। उसने अपने प्रार्थना पत्र में लिखा कि मित्र की सेवा में लगे होने के कारण ही उसके कर्तव्य पालन में कमी आई है। वह इसके लिए हृदय से क्षमाप्रार्थी है। उसके पत्र का लिंकन पर बहुत प्रभाव पड़ा। उन्होंने उस युवक से मिलने की इच्छा जताई। युवक से मिलकर अब्राहम लिंकन बोले- ‘तुम जानते थे यदि तुम दिन में मित्र की सेवा करोगे तो रात में पहरे पर जरूर सो जाओगे। फिर तुमने अपने मित्र की सेवा क्यों की?’ युवक बोला, ‘वह मेरा मित्र था। श्रीमान, उसके घर में उसकी देखभाल के लिए कोई नहीं था।’
एक मनुष्य का यह परम धर्म है कि जब उसका कोई अपना संकट में पड़े, तब वह उसकी सहायता अवश्य करे। लिंकन युवक के उत्तर से बहुत अधिक प्रसन्न हुए। उन्होंने युवक को क्षमादान देते हुए कहा, ‘देखो जब तक तुम सेना में काम करो। अपनी मनुष्यता को नहीं छोड़ना।’ लिंकन की क्षमाशीलता ने युवक को आगे सेना का एक उच्च अधिकारी बना दिया।

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