डॉ. दीनदयाल मुरारका
भारत के प्रतिभाशाली इंजीनियर डॉ. विश्वेश्वरैया अपने जीवन में इस बात का ध्यान रखते थे कि वे कभी भी किसी नियम का उल्लंघन अपने हित में ना करें। वे भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक थे। उन्होंने कहा था कि अपनी संस्कृति से जुड़े रहकर, मातृभूमि की सेवा का संकल्प करके ही कोई भी व्यक्ति अपने देश का आदर्श नागरिक कहला सकता है।
भारत सरकार ने डॉ. विश्वेश्वरैया को ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत करने की घोषणा की। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद उनकी उपलब्धियों से बहुत प्रभावित थे। वे उन्हें ऋषि तुल्य बताकर उनका सम्मान करते थे।
विश्वेश्वरैया राष्ट्रपति भवन में आयोजित अलंकरण समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली आए। तीसरे दिन उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। चौथे दिन प्रात:काल तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से डॉ. विश्वेश्वरैया बोले, ‘अब मुझे जाने की इजाजत दीजिए।’ राजेंद्र बाबू चाहते थे कि डॉ. विश्वेश्वरैया उनके पास दो-चार दिन और ठहरें, ताकि उनसे बौद्धिक चर्चा करने का सौभाग्य प्राप्त हो। डॉ. विश्वेश्वरैया ने कहा, ‘मुझे पता है कि यह नियम है कि कोई भी सरकारी अतिथि तीन दिन से ज्यादा राष्ट्रपति भवन में नहीं रुक सकता। मैं उस नियम का उल्लंघन कदापि नहीं कर सकता।’ राजेंद्र बाबू ने जोर दिया कि ‘यह नियम पुराना है। इस पर आप ध्यान नहीं दीजिए और यह नियम आपके ऊपर लागू नहीं होता है।’ जिस तरह डॉ. विश्वेश्वरय्या वक्त के पाबंद थे। उसी तरह नियम पालन के भी बड़े पक्के थे। राजेंद्र बाबू उनके नियम पालन की धुन को देखकर बेहद प्रभावित हुए। इस तरह समय का हिसाब रखनेवाले डॉ.विश्वेश्वरैया ने १०१ वर्ष का यशस्वी जीवन जिया और आधुनिक भारत के नवनिर्माण में अप्रतिम भूमिका निभाई।