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आज और अनुभव : `बांग्लार दिके कार नजर आच्छे?’ …आहत बांग्ला को राहत की दरकार

कविता श्रीवास्तव

बांग्लादेश में आरक्षण के बहाने आंदोलन और उसके बाद गृहयुद्ध जैसी स्थिति ने हिंसा, तोड़-फोड़, लूट-पाट और भारी अराजकता को उस चरम तक पहुंचाया कि अंतत: निर्वाचित प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपनी जान बचाते हुए देश से भागना पड़ा। उन्होंने फिलहाल भारत में शरण ली हुई है। ब्रिटेन ने उन्हें शरणार्थी बनाने से मना कर दिया है। उधर उपद्रवियों के आतंक और उनके जानलेवा हमले से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए संकट पैदा हुआ है। वे `मॉब लिंचिंग’ का शिकार हो रहे हैं। हिंदुओं के मंदिर, घर व उनकी अपनी जान पर वहां के उपद्रवियों की भीड़ आफत बनकर बरस रही है। सवाल उठता है कि क्या ये सभी आरक्षण के खिलाफ आंदोलन कर रहे सामान्य विद्यार्थी हैं या उनके नाम पर कोई समूह या विदेशी ताकतें बांग्लादेश को तहस-नहस करने पर अमादा हैं? वहां कुछ ही दिनों के विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों लोगों की मौत के बाद प्रधानमंत्री को देश छोड़ना पड़ा। बीते सोमवार को ७६ वर्षीय शेख हसीना वाजेद को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। नोबेल पुरस्कार विजेता बैंकर ८४ वर्षीय मुहम्मद यूनुस अंतरिम नेता के रूप में कार्यभार संभालने वाले हैं। वहां की अनेक सरकारी संस्थाओं को ध्वस्त कर दिया गया है। अब वहां के हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा है। मौजूदा समय में बांग्लादेश में हिंदुओं की कुल आबादी मात्र ७.९७ फीसदी बची है। अब वे भी पलायन का रास्ता ढूंढ़ रहे हैं। ऐसे वक्त में आम निर्दोष परिवार और उनकी जिंदगी कैसे तबाह होती है, यह मुंबई ने भी झेला है। बांग्लादेश की इन ताजा घटनाओं पर मुझे १९९२ में मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों का स्मरण होता है। उस वक्त अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। देशभर में सांप्रदायिकता की आग सुलग रही थी। मुंबई में भी उसी तरह का माहौल कई इलाकों में देखा गया था। कानून व व्यवस्था के बिगड़े हालात पर पुलिस को कई स्थानों पर कर्फ्यू लगाना पड़ा था। हम देखते हैं कि जब कहीं भीड़ उपद्रवी हो जाती है, तब पुलिस-प्रशासन सब लाचार से नजर आते हैं। ऐसे वक्त में `मॉब लिचिंग’ भी बहुत होती है। लोगों का हुजूम स्वयं ही कोई दिशा तय कर लेता है। हर आदमी भीड़ के जोश में आवेश बढ़ाकर कभी चलती वाहनों को निशाना बनाकर पत्थर मारता है तो कभी टायरों को जलाकर बस्तियों में दहशत का माहौल बनाता है। ऐसे वक्त कोई अपनी हरकत के लिए जिम्मेदारी नहीं समझता है। वह भीड़ का हिस्सा बनकर अमानवीय हरकतें करता है। हर तरफ बेखौफ लोग कहीं भी तोड़-फोड़ करके किसी का भी नुकसान कर देते हैं। १९९२ के दंगों में मुंबई में सांप्रदायिकता का आलम यह था कि समाज दो भागों में बंटा सा लगता था। दोनों ही तरफ के लोगों को एक-दूसरे से खौफ था। कई स्थानों पर हिंसा की घटनाएं हुई थीं, लेकिन जहां हिंसा नहीं हुई थी, वहां भी लोगों में दहशत का वातावरण था। इसी कारण कई लोग स्वयं को अकेला या संख्या में कम समझ कर हमले की आशंका से कहीं न कहीं पलायन जरूर कर गए। हमारी ही बस्ती के कई लोग जिनसे हमारे अच्छे संबंध हुआ करते थे, वे भी कहीं और चले गए। लोगों ने उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया, लेकिन उनके मन का भय उन्हें हमसे दूर ले गया। फिर सब कुछ सामान्य होने पर वापस आकर उन्होंने अपने मकान आदि बेच दिए और फिर उस बस्ती में कभी नहीं लौटे। परिवार ही नहीं, मुंबई से अनेक छोटे-मोटे उद्योग-धंधे, कल-कारखाने और उससे जुड़े ढेर सारे लोग मुंबई से पलायन कर गए। मुंबई के पश्चिमी उपनगरों में हीरे तराशने के अनेक कारखाने थे। वे सब धीरे-धीरे सूरत की ओर शिफ्ट हो गए और आज सूरत हीरा उद्योग का दुनिया का सबसे बड़ा `हब’ बन गया है। इसी तरह अनेक लोगों ने बंगलुरु की ओर पलायन कर लिया। मुंबई को हमने हमेशा ही सर्वधर्म समभाव की दृष्टि से देखा है। मुंबई में देश के अनेक स्थानों से लोग आकर काम-धंधे-व्यापार करते हैं। इसीलिए मुंबई को अपने आप में `मिनी भारत’ भी कहा जाता है। दंगों के बाद से कई लोगों ने मुंबई को छोड़ दिया था। ऐसा लगा मानो कुछ शक्तियां मुंबई को समाप्त करने पर आमादा हैं, लेकिन आज मुंबई फिर से अपनी पूरी रौनक के साथ खड़ी है और दुनिया की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अनगिनत मल्टीनेशनल कंपनियों के कारोबार का ठिकाना है मुंबई।
आज बांग्लादेश के हालात जरूर खराब हैं, लेकिन परिस्थितियां बदलते ही वहां भी स्थिति सामान्य होगी। वहां सत्ता परिवर्तन करके अपना हित साधने की ताक में बैठे पाकिस्तान, चीन, इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों का हाथ ताजा हिंसा में होने की शंकाएं भी व्यक्त की गई हैं। कुछ आतंकी संगठनों का हाथ होने की बातें भी सुनाई दे रही हैं। सन् १९७१ में पूर्वी पाकिस्तान को तोड़ कर बांगदेश बना। भारत और बांग्लादेश दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश हैं और दोनों के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण हैं। बांग्लादेश की सीमा तीन ओर से भारत द्वारा ही आच्छादित है। ये दोनों देश सार्क, बिम्सटेक, हिंद महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संघ और राष्ट्रकुल के सदस्य हैं। लेकिन भारत- बांग्लादेश मैत्री की विश्वसनीयता कुछ लोगों की आंखों की किरकिरी बनी हुई है। २०२१ में दुर्गा पूजा के दौरान और उसके बाद बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के घरों और मंदिरों पर भीड़ के हमलों ने दहशत पैâलाई थी। आज फिर वही हो रहा है। यही बात भारत को भी विचलित करती है। इसके पीछे सचमुच में कोई सोची-समझी रणनीति तो काम नहीं कर रही है, यही आशंका है। इस पर निगाहे होंगी, लेकिन फिलहाल बांग्लादेश के हताहतों को ढांढस, राहत और मदद की दरकार है।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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