विधिवत सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात्।
कुलं स्वकीयमुद्धृत्य मामेवैष्यत्यसंशयम।।
अर्थ- पुरुषोत्तम मास में जो व्यक्ति व्रत, उपवास, पूजा, दान आदि शुभ कर्म करता है। वह अपने पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है।
पुरुषोत्तम मास
अधिक होने के कारण अधिक मास और अधिक मास में ही भगवान विष्णु की पूजा का महत्व है, जिनका नाम पुरुषोत्तम भी होने के कारण इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। क्योंकि इस मास के अधिपति श्रीहरि ही हैं।
अधिक मास, पुरुषोत्तम मास, खरमास और मलमास का क्या अर्थ है?
समय की धारणा को समझना थोड़ा कठिन है। इसमें सूर्य की गति के अनुसार सौरमास, चंद्र की गति के अनुसार चंद्रमास और नक्षत्र की गति के अनुसार नक्षत्र मास होता है। सभी के अनुसार ही तीज-त्योहार नियुक्त किए गए हैं। मूलत: चंद्रमास को देखकर ही तीज-त्योहार मनाए जाते हैं। अब यह समझते हैं कि यह अधिक मास, पुरुषोत्तम मास, खरमास और मलमास क्या होता है।
क्या है अधिक मास?
हिन्दू पंचाग के अनुसार सौर-वर्ष में 365 दिन, 15 घटी, 31 पल व 30 विपल होते हैं जबकि चंद्र वर्ष में 354 दिन, 22 घटी, 1 पल व 23 विपल होते हैं। सूर्य व चंद्र दोनों वर्षों में 10 दिन, 53 घटी, 30 पल एवं 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष में रहता है। इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में चंद्र-वर्ष में 1 माह जोड़ दिया जाता है। उस वर्ष में 12 के स्थान पर 13 महीने हो जाते हैं। इस बड़े हुए माह को ही अधिक मास कहते हैं। यह सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाता है। (अधिक मास के माह का निर्णय सूर्य संक्रांति के आधार पर किया जाता है। जिस माह सूर्य संक्रांति नहीं होती वह मास अधिक मास कहलाता है।)
मल मास क्या है
इस अधिक मास या पुरुषोत्तम माह के दौरान सभी कार्य वर्जित माने जाते हैं क्योंकि यह मास मलिन होता है इसलिए इसे मलमास भी कहते हैं।
खर मास क्या है
भारतीय पंचाग के अनुसार, जब सूर्य धनु राशि में संक्रांति करते हैं तो यह समय शुभ नहीं माना जाता इसी कारण जब तक सूर्य मकर राशि में संक्रमित नहीं होते तब तक किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते। पंचाग के अनुसार, यह समय सौर पौष मास का होता है, जिसे खर मास कहा जाता है। खर मास को भी मलमास का जाता है। खरमास में खर का अर्थ ‘दुष्ट’ होता है और मास का अर्थ महीना होता है। मान्यता है कि इस माह में मृत्यु आने पर व्यक्ति नरक जाता है।
दान करते समय ये बातें भी ध्यान रखें
पुरुषोत्तम मास में व्रत, उपवास, पूजा और दान करने का महत्व काफी अधिक है। अपनी शक्ति के अनुसार जरूरतमंद लोगों को दान करना चाहिए। ध्यान रखें दान किसी और की देखा-देखी नहीं करना चाहिए। रात में दान न करें। यज्ञ, विवाह, संक्रांति, चंद्र या सूर्य ग्रहण के समय रात में दान किए जा सकते हैं। इस माह में राशिनुसार दान करने से कुंडली से संबंधित ग्रह दोषों को शांत किया जा सकता है।
मेष से मीन राशि तक के लिए दान में देने योग्य चीजें…
मेष- मालपुए, घी, चांदी, लाल कपड़े, केले, अनार, सोना, तांबा, मूंगा और गेंहू, इस माह में दान कर सकते हैं। वृषभ- सफेद वस्त्र, चांदी, सोना, मालपुए, मावा, शकर, चावल, केले, गाय, हीरा, मोती, वाहन दान में दिए जा सकते हैं। मिथुन- पन्ना, मूंग की दाल, सोना, मूर्ति के लिए छत्र, तेल, कांसे के बर्तन, केले, सेवफल, मालपुए, कंगन, सिंदूर, साड़ी का दान कर सकते हैं। कर्क- मोती, चांदी, किसी प्याऊ में मटके, तेल, सफेद कपड़े, सोना, गाय, मालपुए, मावा, दूध, शकर, चावल दान में दे सकते हैं। सिंह- लाल कपड़े, तांबा, पीतल, सोना, चांदी, गेंहू, मसूर, माणिक्य, धार्मिक पुस्तकें, अनार, सेवफल दान में दिए जा सकते हैं। कन्या- मूंग की दाल, सोना, छत्र, तेल, केले, सेवफल, गौशाला में धन और घास का दान कर सकते हैं। तुला- सफेद कपड़े, मालपुए, मावा, शकर, चावल, केले का दान कर सकते हैं। वृश्चिक- घी, लाल कपड़े, मौसमी फल, अनार, तांबा, मूंगा, गेंहू का दान कर सकते हैं। धनु- पीले कपड़े, चने की दाल, लकड़ी के सामान, घी, तिल, अनाज, दूध का दान करें। मकर और कुंभ राशि- तेल, दवाइयां, नीले कपड़े, केले, औजार, लोहा, मौसमी फल का दान करें। मीन- पीले कपड़े, चने की दाल, घी, दूध और दूध से बनी मिठाई, शिक्षा से जुड़ी चीजें दान करें।