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मुंबई हाई कोर्ट ने एमएटी का फैसला पलटा!…जिला सूचना अधिकारी नियुक्ति विवाद में सरकार की लापरवाही उजागर

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई हाई कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (एमएटी) के फैसले को खारिज करते हुए चार उम्मीदवारों की जिला सूचना अधिकारी पद पर नियुक्तियों को सही ठहराया। ये नियुक्तियां २००८ में हुई थीं, जिन्हें एमएटी ने आरक्षण नीति के उल्लंघन और चयन प्रक्रिया में खामियों के आधार पर अवैध करार दिया था। इस फैसले के बाद महाराष्ट्र सरकार की प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठने लगे हैं। महाराष्ट्र सूचना और जनसंपर्क विभाग ने २००८ में जिला सूचना अधिकारी के आठ पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। इन पदों में एक पद अनुसूचित जाति (एससी) के लिए, तीन पद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए और चार पद ओपन कैटेगरी के लिए रखे गए थे, जिनमें से तीन पद महिलाओं के लिए और एक पद खिलाड़ियों के लिए आरक्षित था। इस पद के लिए अधिकतम आयु सीमा ३५ वर्ष निर्धारित की गई थी। संजय भोकरडोले, जो उस समय ३७ वर्ष के थे, ने आयु सीमा में छूट की मांग करते हुए परीक्षा में हिस्सा लिया, लेकिन उन्हें मौखिक परीक्षा के लिए नहीं बुलाया गया। इसके बाद, भोकरडोले ने महाराष्ट्र प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में याचिका दाखिल की और चयन प्रक्रिया को चुनौती दी। एमएटी ने चारों नियुक्तियों को अवैध ठहराते हुए कहा कि ओपन कैटेगरी की तीन पोस्ट महिलाओं के लिए आरक्षित करना गलत था। एमएटी ने माना कि नियमानुसार केवल एक पोस्ट महिलाओं के लिए आरक्षित होनी चाहिए थी। इसके अलावा, एमएटी ने यह भी कहा कि भोकरडोले का पर्यवेक्षणीय अनुभव चयनित उम्मीदवारों से बेहतर था। एमएटी ने यह निर्देश दिया कि उनकी उम्मीदवारी पर दोबारा विचार किया जाए। मुंबई हाई कोर्ट ने एमएटी के फैसले को पलटते हुए चारों उम्मीदवारों की नियुक्तियों को वैध ठहराया। अदालत ने कहा कि भोकरडोले यह साबित करने में असफल रहे कि उनकी आयु छूट की याचिका को गलत तरीके से खारिज किया गया। हाई कोर्ट ने एमएटी के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चयन प्रक्रिया मनमानी थी। अदालत ने कहा कि एमएटी ने यह साबित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं दिए कि चयन समिति ने जानबूझकर पक्षपात किया।
प्रशासनिक विफलता
यदि नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और सटीक तरीके से लागू किया गया होता, तो यह मामला एमएटी और फिर हाई कोर्ट तक नहीं पहुंचता। आरक्षण नीति के सही अनुपालन और चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित करने में सरकार विफल रही।

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