- गुरुत्वाकर्षण बल करता है काम
- न्यूयॉर्क की धरती भी धंस रही है
- ‘अर्थ्स फ्यूचर’ पत्रिका ने की गगनचुंबी इमारतों वाले शहरों की स्टडी
सामना संवाददाता / मुंबई
गगनचुंबी इमारतें मुंबई की पहचान बन चुकी हैं। इन इमारतों की ऊपरी मंजिलों पर रहना किसी सपने के सच होने जैसा ही है। ये इमारतें मुंबई की खूबसूरती बढ़ाती हैं। पिछले एक दशक में इनकी ऊंचाई ४० से होते हुए ८० माले तक पहुंच चुकी है। इनमें एक फ्लैट की कीमत २५ से ५० करोड़ साधारण बात है। मगर क्या आप जानते हैं कि इन ऊंची इमारतों के बोझ से मुंबई की जमीं कराहने लगी है। जी हां, मुंबई की धरती इन गगनचुंबी इमारतों के बोझ से धंसने लगी है। यह खुलासा ‘अर्थ्स फ्यूचर’ और ‘एजीयू एडवांसेस’ पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी से हुआ है।
असल में इन पत्रिकाओं में उन शहरों की स्टडी की गई है जहां सर्वाधिक गगनचुंबी इमारतें हैं। इनमें कई अमेरिकी शहरों का जिक्र है। इसने गगनचुंबी इमारतोंवाले शहरों की चिंता बढ़ा दी है। इसमें कहा गया है कि गगनचुंबी इमारतों के बोझ से धरती धंस रही है। स्टडी में पाया गया कि अमेरिका का न्यूयॉर्क शहर गगनचुंबी इमारतों के दबाव में हर साल थोड़ा-थोड़ा (लगभग २ मिमी) जमीन में धंस रहा है। इससे पहले २०२० में सैन प्रâांसिस्को में भी ऐसा ही कुछ सामने आया था, जब वहां के मिलेनियम टॉवर को झुकने और जमीन में धंसने से रोकने के लिए १० करोड़ डॉलर की परियोजना शुरू की गई थी।
धरती का गुरुत्वाकर्षण बल
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे में भूकंप वैज्ञानिक टॉम पार्सन्स का कहना है कि गांवों में घर दूर-दूर तक पैâले होते हैं, जिससे किसी एक केंद्र पर भार नहीं पड़ता है, जबकि शहरों में मौजूद ज्यादातर सामान इमारतों के अंदर ही रहते हैं। यह समस्या का एक बड़ा कारण है। इमारतों के वजन के अनुपात में धरती का गुरुत्वाकर्षण बल काम करता है। इसे किसी भी हाल में रोका नहीं जा सकता।
समुद्र पाटने का साइड इफेक्ट
समुद्र तटों पर बसे मुंबई जैसे शहरों में समुद्र को पाट कर जमीन बनाई जाती है, जिसे लैंड रिक्लेमेशन कहते हैं। नरीमन पॉइंट, बांद्रा में इस तरह के रिक्लेमेशन हैं। वैैज्ञानिकों का कहना है कि लोग, खास तौर पर शहरी योजनाकारों को अक्सर लगता है कि समुद्र एक खाली जगह है। ऐसा नहीं है। समुद्र की सेहत पर इंसानी और गैर इंसानी समुदायों की जिंदगी निर्भर रहती हैं।
इमारतों की भरमार
मुंबई की बात करें तो दादर से मुंबई सेंट्रल तक कभी मिलें आबाद थीं। आज मिलों की जमीन पर गगनचुंबी इमारतों की भरमार हो गई है। ऐसे में यहां इमारतों के भीतर भारी-भरकम वजन मौजूद है। टॉम पार्सन्स का कहना है कि किसी भी शहर में हर चीज के वजन का अनुमान लगा पाना काफी मुशिकल है, लेकिन सैन प्रâांसिस्को के खाड़ी क्षेत्र का मुआयना करते समय हम इस नतीजे पर पहुंचे कि सैन प्रâांसिस्को क्षेत्र की सभी इमारतों का सामूहिक वजन लगभग १.६ ट्रिलियन किलोग्राम या ३.५ ट्रिलियन पाउंड है। हो सकता है कि अकेले इसी कारण भूमि ८० मिलीमीटर या तीन इंच से अधिक धंस गई हो। मुंबई की इमारतों का सामूहिक वजन अभी भले ही तय नहीं किया गया है, लेकिन एक बात तय है कि इस वजन से धरती धंस रही है।
धंसती है हर नई इमारत
पार्सन्स कहते हैं कि नई इमारत बनने के तुरंत बाद ही ८ से १० मिलीमीटर तक धंस सकती है। समय के साथ इमारतें और विशेष रूप से बड़ी व भारी इमारतें धीरे-धीरे धंसकर स्थिर होना जारी रख सकती हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर इमारतों के नीचे की मिट्टी बहुत ज्यादा दबाव के कारण धीरे-धीरे दाएं-बाएं और नीचे की तरफ बहने लगती है। अगर इमारत की नीचे की मिट्टी थोड़ी रेतीली हो तो इसकी रफ्तार कुछ ज्यादा भी हो सकती है। ये धरती का गुरुत्वाकर्षण भी है, जो शहर को नीचे धंसा रहा है। इससे कोई भी नहीं लड़ सकता है। हालांकि, इसकी रफ्तार को घटाने के लिए कुछ किया जा सकता है। निर्माण के लिए चुनी गई भूमि लंबे समय में मायने रखती है। समुद्र तटीय इलाकों में शहर बसाने या भारी निर्माण करने की योजना पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। जलनिकासी की सही व्यवस्था न होने से पृथ्वी के आकार और रोटेशन में भी बदलाव आता है।
तो क्या डूब जाएंगे मुंबई-कोलकाता जैसे शहर?
अमेरिकी संस्थान क्लाइमेट सेंट्रल की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सदी के मध्य तक ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का जल-स्तर तेजी से बढ़ा तो हिंदुस्थान भी उससे अछूता नहीं रहेगा। २०५० तक समुद्र की सतह में इजाफा होने से दुनिया भर में जिन १० देशों की आबादी सबसे ज्यादा प्रभावित होगी, उनमें से ७ देश एशिया प्रशांत क्षेत्र के हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में हिंदुस्थान सबसे ऊपर है। देश के लगभग ४ करोड़ लोग जोखिम में होंगे। मुंबई, कोलकाता, सूरत, ओडिशा, केरल, तमिलनाडु पर ज्यादा खतरा बताया गया है।