मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : बिस्किट और पानी के टिन

मुंबई का माफियानामा : बिस्किट और पानी के टिन

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

दयाशंकर (डीएस) तस्करों को पकड़ने में यकीन नहीं रखते थे। वे कहते थे–
इनका माल पकड़ता रहूंगा…
उनके पीछे लगा रहूंगा…
उन्हें इलाके में काम नहीं करने दूंगा…
वे बचकर भागते रहेंगे… भागते रहेंगे…
मैं उनका पीछा करता रहूंगा… उनके लिए खौफ बना रहूंगा…
एक बात और जो डीएस के साथ काम करने वाले अफसरान और अधीनस्थ के लिए सोने पर सुहागा जैसी थी। वे डीएस के साथ पूरी ईमानदारी से काम इसलिए करते थे क्योंकि वे कहते थे कि मेरे साथ ईमान से काम करो, इसकी रॉयल्टी बाद में मिलेगी। मेरे जाने तक यहां इतने मुकदमे बन चुके होंगे कि उन्हें खराब करने के लिए तस्कर मोटी रकम चुकाएंगे। अभी सरकारी इनाम हासिल कर लो। बाद की बाद में देखना।
वे जब किसी खास काम पर निकलते, तो पारले बिस्किटों का एक टिन जीप में रखते। बिस्किटों के पुराने खाली तीन-चार पीपों में पीने का पानी भर लेते। वे उन गांवों की ओर निकल पड़ते, जहां तस्करी होती थी।
उनके पास न आधुनिक उपकरण थे, न लंबी-चौड़ी फौज थी, न तेज गति वाहन थे, न गोपनीय निधि थी, न ऊपर-नीचे के सहयोगियों का अच्छा सहयोग था। उनके हथियार थे, उनके मुखबिर, उनकी ईमानदारी, उनकी कर्तव्यनिष्ठा, उनका अदम्य साहस, उनकी हिम्मत और सबसे बड़ी चीज – उनकी सादगी।
उनके लिए डीएस के साथ काम करना यानि तलवार की धार पर चलना था। लेकिन कोई डर न था। क्यों:
– वो डीएस थे, डीएस। जुबान के पक्के, इरादों के मजबूत।
(एबी की जुबानी)

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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